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परिशिष्ट २
इत्यादि । इस प्रकार ये सारे शब्द क्षीणता की विभिन्न पर्यायों के वाचक
हैं ।
अविण्णादाण ( अदत्तादान )
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प्रश्नव्याकरण सूत्र में अदत्तादान के तीस पर्याय शब्दों का उल्लेख हुआ है । अदत्त का अर्थ है - चोरी । प्रस्तुत नामों की सूची में चौरिक्य, परहृत, अदत्त, तस्करत्व, अपहार आदि शब्द इसके स्पष्ट वाचक हैं ।
अदत्त ग्रहण में मानव की आकांक्षा, गृद्धि आदि वृत्तियां कार्य करती हैं, अतः कारण में कार्य का उपचार कर अदत्तादान की प्रेरक वृत्तियों को भी अदत्तादान मान लिया गया है । जैसे—- परलाभ, लौल्य, कांक्षा, लालपन, प्रार्थना, इच्छा, मूर्च्छा, तृष्णा, गृद्धि, आदियणा आदि ।
असंयम, अप्रत्यय व अवपीड भी चोरी की ही फलश्रुति है, क्योंकि असंयमी व्यक्ति पदार्थ - प्रतिबद्धता के कारण चोरी करता है । जो चोरी करता है, वह अप्रत्यय - अविश्वास का कारण बनता है तथा जिसका धन चुराया जाता है, उसको पीड़ा होती है । इसलिए अप्रत्यय व अवपीड शब्द भी सार्थक हैं । आक्षेप, क्षेप और विक्षेप भी चोरी के ही वाचक हैं, क्योंकि इनमें दूसरों के धन का प्रक्षेप होता है ।
चोरी माया के बिना नहीं हो सकती, अतः कूट, हस्तलघुत्व, निकृतिकर्म आदि शब्द भी इसके पर्याय हैं ।
अम्मfreete (अधर्मास्तिकाय)
यह लोकव्यापी अजीव द्रव्य है । अधर्म द्रव्य स्थिति / अवस्थिति का माध्यम है । यहां उल्लिखित दो अभिवचनों (अधर्म और अधर्मास्तिकाय) के अतिरिक्त शेष - प्राणातिपात अविरमण से काय-अगुप्ति तक के सारे शब्द अधर्म के द्योतक हैं । अधर्मास्तिकाय के अधर्म शब्द की सदृशता के कारण यहां उनको पर्यायवाची मान लिया गया है ।
अबंभ ( अब्रह्म)
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प्रश्नव्याकरण सूत्र में अब्रह्मचर्य के तीस एकार्थक बताए हैं । इनमें कुछ शब्द अब्रह्म की उत्पत्ति के साधन तथा कुछ शब्द उसकी परिणति के द्योतक हैं । मैथुन, संसर्गि, रति, कामगुण आदि शब्द उसके स्वरूप के वाचक हैं । इन शब्दों का अर्थबोध इस प्रकार है
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