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.... १. गाथा वर्गीकरण व पद्यानुक्रमणिका (भाष्य, नियुक्ति व चूणि में
आयी गाथाओं का अकारादि क्रम से निर्देश, जिससे शोधकर्ताओं
को गाथा खोजने में सुगमता हो सके ।) २. धर्मकथासंग्रह-व्याख्या ग्रंथों में आयी कथाओं का संकलन । ३. सूक्तिसंग्रह। ४. सभ्यता-संस्कृति के मुख्य तत्त्वों का चयन । ५. इतिहास-परम्परा। ६ चिकित्सा विज्ञान सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकलन । ७. स्वास्थ्य विज्ञान तथा मनोविज्ञान के स्थलों का चयन । ८. दार्शनिक व शैक्षणिक तथ्य। ६. सम्प्रदाय-प्राचीन सम्प्रदायों के अस्तित्व, मान्यता, आचार्य आदि
विषयक जानकारी। १०. साधना विषयक जानकारी। ११. वैज्ञानिक तथ्य । १२. जीवविज्ञान । १३. आहारविज्ञान ।
कार्य अपनी गति से चलता रहा, लेकिन उसके साथ परीक्षण भी अनिवार्य था, अत: समय समय पर कार्य का परीक्षण व निरीक्षण करने . आचार्य प्रवर और युवाचार्यश्री वर्द्धमान ग्रंथागार पधारते रहते थे।
इसी वर्ष समण श्रेणी की स्थापना हुई, जिसमें कार्य करने वाली कुछ मुमुक्षु बहिनें समणियां बन गयीं । कालान्तर में आगम कोश के कार्य की गति मंथर देखकर युवाचार्य प्रवर ने मुस्कराते हुए फरमाया-'कार्य दो साल में पूरा करना है, भले ही इसके लिए रोटी-पानी छोड़ना पडे ।' हमने निवेदन किया यदि युवाचार्य प्रवर की लाडनूं में सतत सन्निधि मिले तो यह कार्य संभव हो सकता है, अन्यथा कार्य में बार-बार अवरोध उत्पन्न होता है और अनेक स्थल प्रश्नचिह्न बने रहते हैं।' युवाचार्य प्रवर ने फरमाया 'समस्या के समाधान के लिए हमारे पास आया जा सकता है, इसी बीच आचार्य प्रवर भी पधारे और हमें नयी प्रेरणा देकर लाडन से मारवाड़ की ओर प्रस्थान कर दिया। अब कार्य मुख्य रूप से साध्वियों और समणियों के जिम्मे था।
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