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प्रस्तुति
कोश का महत्व
लाक्षणिक साहित्य में कोश का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । किसी भी भाषा की समृद्धि का ज्ञान उसके शब्दकोश से किया जा सकता है । जिस प्रकार यत्र तत्र बिखरा पानी कोई उपयोगी नहीं होता तथा अधिक मात्रा होने पर वह बाढ़ का रूप भी ले सकता है, लेकिन उसी पानी को एक स्थान पर बांधकर विद्युत् पैदा की जा सकती है तथा अनेक स्थानों पर सिंचाई आदि का कार्य किया जा सकता है । इसी प्रकार इधर उधर बिखरी हुई शब्द सम्पत्ति निरुपयोगी होती है । कोश के माध्यम से निरुपयोगी और मृत शब्दावली भी व्यवस्थित होकर जीवन्त और उपयोगी हो जाती है। इसलिए प्राचीन काल से कोश निर्माण का कार्य होता रहा है।
संस्कृत व प्राकृत आदि भाषाओं की यह विशेषता है कि शब्द प्रायः धातुओं से निष्पन्न होते हैं । इस विशेषता के आधार पर कौन शब्द किस अर्थ को ध्वनित करता है यह जानने में कोश ही एक मात्र सहायक होता है । एक ही धातु कहीं कहीं अनेक अर्थों में प्रयुक्त होती है, वहां प्रसंगानुसार भिन्न-भिन्न अर्थों का वास्तविक ज्ञान कोश द्वारा ही संभव है । अनेक स्थलों पर व्याकरण द्वारा व्युत्पत्ति का अर्थ शब्द के मूल अर्थ से बहुत दूर चला जाता है। वहां कोश ही वास्तविक अर्थ का ज्ञान देता है। जैसे पृश-पालनपूरणयोः' धातु से 'ऊष' प्रत्यय लगाने पर 'परुष' शब्द बनता है । धातु का अर्थ पालन व पूरण है लेकिन शब्द का अर्थ कठोर है, जो कि धातु के अर्थ से मेल नहीं खाता। इसी प्रकार अन्य अनेक रूढ शब्दों का ज्ञान कोश से ही संभव है।
__ भाषा विज्ञान के अनुसार प्रत्येक शब्द के अर्थ का अपकर्ष और उत्कर्ष होता रहता है । जैसे पाषण्डी (पाखण्डी) शब्द प्राचीन काल में व्रती के लिए प्रयुक्त था लेकिन आज उसके अर्थ का अपकर्ष हो गया । कोश के . माध्यम से शब्द का इतिहास जाना जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक कोशकार केवल शब्द संचय ही नहीं बल्कि अपने पूर्वज कोश का भी सहारा लेता है।"
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