SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम विषय कोश-२ ३३५ परिहारतप अथवा आहार परिमित हो. साध विभागकशल न हो. वैयावृत्त्य का उद्यम करने के प्रसंग में गणी (गच्छाधिपति) परिहारी आहारवितरण में कशल हो, तब आचार्य उसे आहार- और आचार्य (अनयोगाचार्य-उपाध्याय परिवेषण की अनुज्ञा देते हैं। नाना प्रकार का प्रचुर आहार प्राप्त होने गया? संघ का वैयावृत्त्य पारिहारिक भिक्षु भी करता है तो फिर पर, अगीतार्थ की व्यामोहनिवृत्ति के लिए आचार्य कहते हैं- गणी, आचार्य आदि क्यों नहीं करते? वे करते हैं किन्तु आचार्य आर्य! तुम आहार का संविभाग कर साधुओं को परोसो। आदि अपने पद से मुक्त होकर परिहारतप का वहन करते हैं। उस विकृति-अनुज्ञा-आहार वितरण के पश्चात् उसके संसृष्ट हाथ समय वे भी नियमतः सामान्य भिक्षु होते हैं। को दूसरा साधु चाटकर साफ करता है या वह उस लिप्त हाथ को : "तप का स्थगन दीवार या काष्ठ से साफ करता है या गुरु की अनुज्ञा बिना स्वयं परिहारिओ उ गच्छे, सुत्तत्थविसारओ सलद्धीओ। चाटकर साफ करता है-इन सबमें वह लघुमासिक प्रायश्चित्त का अन्नेसिं गच्छाणं, इमाइ कज्जाइ जायाई॥ भागी होता है। वह आचार्य की अनुज्ञा मिलने पर स्वयं हाथ को अकिरिय जीए पिट्टण, संजमबद्धे य भत्तमलभंते। चाटता है और शेष बचे हुए आहार को अनुज्ञा से ही खाता है । जैसे भत्तपरिणगिलाणे, संजमऽतीते य वादी य॥ सूपकार (रसोइया) बचे हुए भोजन का स्वामी की आज्ञा से स्वयं नवि य समत्थो वन्नो, अहयं गच्छामि निक्खिविय भूमिं। परिभोग करता है। यह परिहारी की आचार-मर्यादा है कि सरमाणेहि य भणियं, आयरिया जाणगा तुझं ॥ शक्तिसंवर्धन के लिए वह ऐसा कर सकता है। जाणंता माहप्पं, कहेंति सो वा सयं परिकधेति। १२. पारिहारिक द्वारा गच्छ की सेवा तत्थ स वादी हु मए, वादेसु पराजितो बहुसो॥ मयण च्छेव विसोमे, देति गणे सो तिरो व अतिरो वा। अक्रियावादी नास्तिकवादी स राजसमक्षं वादं याचते। तब्भाणेस सएस व.............॥ जीए त्ति जीविते साधूनां प्राणेषु वा राजा केनापि कारणेन छेवकम-अशिवं तिरोहितं नाम–स आनीयानपारि- प्रद्विष्टः।"दुर्भिक्षे वा समापतिते भक्तमतीव दुर्लभं जातम्। हारिकस्य ददाति"""कल्पस्थितस्यापि ग्लानत्वेऽतिरोहितं (व्यभा ६९४-६९७ वृ) स्वयमेव गच्छस्य ददाति। (बृभा ५६१५ वृ) पारिहारिक साधु सूत्रार्थविशारद तथा लब्धि-सम्पन्न होता है। उसे इन प्रयोजनों से अन्य गच्छों में भेजा जाता हैमदन-कोद्रव आदि खाने से साधु ग्लान हो गए हों, महामारी ० कोई नास्तिकवादी राजा के समक्ष वाद करने की याचना करे। से गच्छ ग्रसित हो गया हो अथवा शत्रु के द्वारा विष दे दिया गया ० साधुजीवन के प्रति द्वेषभाव रखने वाले राजा आदि के द्वारा किसी हो-ऐसे कारण उत्पन्न होने पर पारिहारिक मुनि गच्छ के लिए साधु के मारण-पिट्टन-बंधन-उत्प्राव्रजन आदि का प्रंसग हो। आहार-पानी लाकर दे। आहार आदि उनके ही पात्रों में लाए। ०दर्भिक्ष आदि के कारण आहार-प्राप्ति न हो। उनके अभाव में अपने पात्रों का उपयोग करे। आहार आदि लाकर ० किसी साधु ने अनशन किया हो। (पारिहारिक अच्छा निर्यापक अनुपारिहारिक को अर्पित कर दे, उसके ग्लान होने पर कल्पस्थित होता है।) प्रवचन के आधारभूत आचार्य आदि ग्लान हो गये हों। को, उसके अभाव में वह स्वयं ही गच्छ को अर्पित करे। (पारिहारिक वैद्यकलाकुशल होता है।) १३. तप वहन काल में आचार्य द्वारा वैयावृत्त्य ० राजा आदि ने किसी मुनि को संयम से उत्प्रव्रजित कर पकड़ वेयावच्चुज्जमणे गणि-आयरियाण किण्णु पडिसेधो। लिया हो, उसे छुड़ाना हो। भिक्खपरिहारिओ वि हु, करेति किमुतायरियमादी॥ ० अन्य मतावलम्बी शास्त्रार्थ करना चाहता हो। जम्हा आयरियादी निक्खिविऊणं करेति परिहारं। इनमें से किसी भी कारण के उत्पन्न होने पर गच्छवासी तम्हा आयरियादी, वि भिक्खुणो होंति नियमेणं॥ अपने संघाटक को भेजते हैं। यह संघाटक आचार्य को निवेदन (व्यभा ६९२, ६९३) करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy