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प्रस्तुति
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अंतर्द्रष्टा आचार्यप्रवर ने कोशगत शब्द-अर्थ संबंधी अनेक दुर्गम स्थलों को प्रज्ञालोक से प्रकाशित कर सुगम बनाया है। आज्ञापुरुष पूज्य युवाचार्यप्रवर की समाधानमयी जिज्ञासा से यह कोश परिष्कृत-उपकृत हुआ है। धारणाकुशल साहित्यस्रोतस्विनी पूज्या महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्रीजी के व्यवस्था कौशल ने, वात्सल्यमयी संपृच्छा ने-अब यह कार्य कितना शेष है, कब पूरा करोगी?-इस प्रश्नमयी प्रेरणा ने कोशकार्य की शीघ्र सम्पूर्ति के लिए पुन:-पुनः संप्रेरित किया है। करुणा की इस कामधेनु ने उदारता के साथ विकास के अनेक अवसर दिए हैं, दे रही हैं, देती रहेंगी।
प्रस्तुत कोश की समग्र सम्पन्नता में सर्वाधिक श्रेयोभागी हैं आगम मनीषी मुनिश्री दुलहराजजी, जिन्होंने अकार से सकारपर्यन्त प्रत्येक विषय के प्रत्येक पृष्ठ की वीक्षा-समीक्षा में अपने अमूल्य क्षणों का नियोजन किया है।
साध्वी दर्शनविभाजी ने पाठग्रहण, न्यूनाधिक हिन्दी अनुवाद, प्रतिलिपि, प्रूफरीडिंग और परिशिष्ट-निर्माण में निष्ठापूर्ण श्रम किया है। समणी उज्ज्वलप्रज्ञाजी ने अत्यंत तत्परता से सैकड़ों-हजारों कार्डों की प्रतिलिपि, परिशिष्टनिर्माण और प्रूफ को मूल ग्रंथ से मिलाने में जो निष्ठापूर्ण श्रम किया, वह मूल्याह है। समणी चिन्मयप्रज्ञाजी और मुमुक्षु शिल्पा का आंशिक प्रूफ अवलोकन आदि में अच्छा सहयोग रहा।
परमाराध्य पूज्यप्रवर द्वारा आलेखित भूमिका कोश की मूल्यवत्ता को लक्षगुणित करने वाली है। मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी ने भूमिका का आंग्लभाषा में अनुवाद किया है। प्रस्तुत कोश में पाठक को तद्-तद्विषयक विपुल सामग्री एक स्थान पर उपलब्ध हो जाए-इस भावना से आचारांगभाष्य, भगवतीभाष्य, तत्त्वार्थभाष्य, चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता आदि अनेक ग्रंथों का उपयोग किया गया है। उन सब सूत्रकारों, भाष्यकारों और ग्रंथकारों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता। जिन साधु-साध्वियों, समणियों, मुमुक्षु बहिनों, प्राध्यापकों आदि का इस कोशकार्य में यत्किंचित् भी सहयोग रहा है, उन सबके प्रति कृतज्ञता।
पुनश्च पूज्यप्रवरत्रयी के प्रेरणा-प्रोत्साहन-मार्गदर्शन के असंदीन दीप हमारे ज्ञान-दर्शन-चरणपथ को निरंतर आलोकित करते रहें। इस विलक्षण अभिनव रत्नत्रयी के पुण्य प्रसाद से हम अतल श्रुत-सागर की गहराइयों में अवगाहन कर उसका यत्किंचित् तलस्पर्श कर सकें-यही अभिलषणीय है। दिव्यात्मा पुण्यात्मा परमाराध्य श्री तुलसी की आशीर्वादमयी अध्यात्म मुद्रा एवं आत्मप्रदेशों में अभिनव परिस्पन्दन पैदा करने वाली वात्सल्यमयी दृष्टि के स्मरण-दर्शन से श्रुतयात्रा में हमारी निरंतर गतिशीलता बनी रहे-यही हार्दिक अभिलाषा है।
लाडनूं २६.१.२००५
विनयावनत साध्वी विमलप्रज्ञा साध्वी सिद्धप्रज्ञा
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