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इन्द्रिय
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आगम विषय कोश-२
. त्यभा
एव दयम
१. इन्द्रियावरण-ज्ञानावरण के भेद ।
बधिर आदि जीव हैं या अजीव? प्रत्यत्तर में कहा गयाइंदियावरणे चेव, नाणावरणे इय। वे जीव हैं। श्रोत्रावरण मात्र से जीवत्व नष्ट नहीं होता। बधिर तो नाणावरणं चेव, आहितं तु दु पंचधा॥ आदि की भांति चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और एकेन्द्रिय भी सोइंदियआवरणे, नाणावरणं च होति तस्सेव।। जीव हैं। इनमें क्रमशः एक-एक इन्द्रिय की हानि होती है।
गं, णेयव्वं जाव फासो त्ति॥ चक्षुइन्द्रिय का उपघात होने पर त्रीन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय के उपघात
. (व्यभा ४६११, ४६१२) से द्वीन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय के उपघात से एकेन्द्रिय होता है। ० इन्द्रियावरण-शब्द आदि इन्द्रियविषय संबंधी सामान्य कोई पुरुष क्रमश: इन्द्रियों के उपहत होने पर एक ही उपयोग (दर्शन) को आवृत करने वाला कर्म।
इन्द्रिय वाला रह गया हो, तब भी जब तक उपकरण इन्द्रिय ० ज्ञानावरण-इन्द्रियविषय संबंधी विशेष उपयोग (ज्ञान) उपहत नहीं होती, तब तक वह औषध आदि के प्रयोग से को आवृत करने वाला कर्म। इनके पांच-पांच भेद हैं
सर्वइन्द्रियों से स्वस्थ हो सकता है। इन्द्रियावरण
ज्ञानावरण
३. इन्द्रियावरण होने पर भी विज्ञान अनावृत श्रोत्रेन्द्रियावरण १. श्रोत्रेन्द्रियज्ञानावरण
सण्णिस्सिंदियघाते वि, तन्नाणं नावरिज्जति। चक्षुरिन्द्रियावरण २. चक्षरिन्द्रियज्ञानावरण
विण्णाणं नऽत्थऽसण्णीणं, विज्जमाणे वि इंदिए। ३. घ्राणेन्द्रियावरण ३. घ्राणेन्द्रियज्ञानावरण
जो जाणति य जच्चंधो, वण्णे 5वे विकप्पसो। रसनेन्द्रियावरण ४. रसनेन्द्रियज्ञानावरण
नेत्ते वावरिते तस्स, विण्णाणं तं तु चिट्ठति ॥ स्पर्शनेन्द्रियावरण ५. स्पर्शनेन्द्रियज्ञानावरण
पासंता वि न जाणंति, विसेसं वण्णमादिणं। २. इन्द्रियावरण-विज्ञानावरण का विषय विभाग
बाला असण्णिणो चेव, विण्णाणावरियम्मि उ॥ बहिरस्स उ विण्णाणं, आवरियं न पुण सोतमावरियं।
(व्यभा ४६१७-४६१९) अपडुप्पण्णो बालो, अतिवुड्डो तध असण्णी वा।
संज्ञी जीवों की इन्द्रियां उपहत होने पर भी उनका विण्णाणावरियं तेसिं, कम्हा जम्हा उ ते सुणेता वि। न वि जाणते किमयं, सद्दो संखस्स पडहस्स॥
ज्ञान आवृत नहीं होता। असंज्ञी जीवों के इन्द्रियां होने पर किं ते जीवअजीवा, जीवं ति य एव तेण उदियम्मि।
भी उनका विज्ञान आवृत होता है।
एक जन्मांध व्यक्ति के नेत्रावरण होने पर भी वह भण्णति एव विजाणसु, जीवा चउरिंदिया बेंति॥ एवं चक्खिदिय-घाण, जिब्भ-फासिंदिउवघातेहिं।
वर्ण-रूप-विशेषों को स्पर्श के द्वारा स्पष्ट जान लेता है। एक्केक्कगहाणीए, जाव उ एगिंदिया नेया॥
बाल और असंज्ञी जीव देखते हुए भी विज्ञानावरण के इंदियउवघातेणं, कमसो एगिदि एव संवुत्तो।
__ कारण वर्ण आदि के विशेष धर्मों को नहीं जानते। अणुवहते उवकरणे, विसुज्झती ओसधादीहिं ।
(इस पूरे विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन्द्रिय
उपघात होने पर भी विज्ञानोपघात नहीं होता और विज्ञानोपघात (व्यभा ४६१३-४६१६, ४६२०)
होने पर भी इन्द्रियोपघात नहीं होता। यही विज्ञान और इन्द्रिय बधिर व्यक्ति को शब्द का विशेष परिज्ञान नहीं होता,
का भेद है तथा आवरणों का भी भेद है। इस प्रकार ज्ञानावरण क्योंकि उसका श्रोत्रेन्द्रियविज्ञान आवत होता है। जिसकी श्रोत्रेन्द्रिय
दस प्रकार का होता है।) आवृत नहीं होती, वह शब्द को सामान्य रूप से सुनता है। जो अपटूप्रज्ञ, बाल, अतिवद्ध या अमनस्क पञ्चेन्द्रिय
___ * इन्द्रिय के प्रकार : विषय ग्रहण की क्षमता आदि जीव हैं, वे शब्द सुनते हुए भी यह नहीं जान पाते कि यह शब्द
___द्र श्रीआको १ इन्द्रिय शंख का है या पटह का है। उनके श्रोत्रेन्द्रियविज्ञानावरण का उत्सर्ग सूत्र-वह सूत्र, जिसमें आचार-विषयक सामान्य उदय होता है।
विधि का प्रतिपादन हो। द्र सूत्र
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