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भाषक, विभाषक और भाष्यकार
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• सूत्र - अनुगम : सूत्र के गुण निर्युक्ति- अनुगम उपोद्घातनिर्युक्ति सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति
• व्याख्या के लक्षण
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५. अनुयोग के चार विभाग
६. अपृथक्त्व अनुयोग पृथक्त्व अनुयोग ७. अनुयोगविधि
१ अनुयोग
निर्वाचन और परिभाषा -
अणुओयणमणुओगो, सुयस्स नियएण जमभिधेएणं । वावारो वा जोगो, जो अणुरूवोऽणुकूलो वा ॥ अहवा जमत्थओ थोव - पच्छभावेहि सुयमणुं तस्स । अभिधेये वावारो, जोगो तेण व संबंधो ॥ ( विभा १३८६, १३८७) सूत्र की अर्थ के साथ योजना करना अनुयोग है । सूत्र के अभिधेय का कथन योग है । वह सूत्र के अनुरूप होने पर अनुयोग कहलाता है ।
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• सूत्र का अर्थ के बाद कथन होता है। सूत्र संक्षिप्त होता है, इसलिए उसका नाम अनु । उस अनु का अपने अभिधेय / प्रतिपाद्य के साथ संयोजन अनुयोग है । अध्ययनार्थकथनविधिरनुयोगः । ( अनुहावृ पृ २६ ) अनुयोग का अर्थ है -- अध्ययन के अर्थ की प्रतिपादन पद्धति ।
पर्याय
अणुओगो य नियोगो, भास विभासा य वत्तियं चेव । अणुओगस उ एए, नामा एआ पंच ॥ ( आवनि १३१ )
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अनुयोग के पांच पर्याय हैंअनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वार्तिक । वार्तिक (भाष्य) के अर्थ
वित्तीए वक्खाणं वत्तियमिह सव्वपज्जवेहिं वा । वित्तीओ वा जायं जम्मि वजह वत्तए सुते || (विभा १४२२ ) वृत्तेः सूत्रविवरणस्य व्याख्यानं भाष्यं वार्तिकमुच्यते । यथा इदमेव विशेषावश्यकम् । अथवा उत्कृष्टश्रुतवतो गणधरादेर्भगवतः सर्व पर्यायैर्यद् व्याख्यानं तद् वार्तिकम् ।
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वृत्तेर्वा सूत्रविवरणाद् यदायातं सूत्रार्थानुकथनरूपं तद् वार्तिकम् । यदि वा यस्मिन् सूत्रे यथा वर्तते सूत्रस्यैवोपरि गुरु पारम्पर्येणायातं व्याख्यानं तद् वार्तिकमिति ॥
( विभामवृपृ ५२८ ) १. सूत्र की वृत्ति की व्याख्या वार्तिक या भाष्य कहलाता है । जैसे - विशेषावश्यक भाष्य ।
२. उत्कृष्ट श्रुतपारगामी गणधर आदि वस्तु का समग्र पर्यायों से जो व्याख्यान करते हैं, वह वार्तिक कहलाता है ।
३. सूत्र की वृत्ति (विवरण) से जो ज्ञात होता है, उसके आधार पर सूत्र और अर्थ के अनुरूप कथन करना वार्तिक कहलाता है ।
४. जिस सूत्र का जो अर्थ है, उसकी गुरु-परम्परा से प्राप्त जो व्याख्या है, वह वार्तिक कहलाता है । वार्तिक के अधिकारी
उक्कोस सुयनाणी, निच्छयओ वत्तियं वियाणाइ । जो वा गप्पाणो, तओं व जो गिरहए सव्वं ॥ ( विभा १४२३ )
वार्तिक के अधिकारी तीन हैं। १. उत्कृष्ट श्रुतज्ञानी, जैसे – गणधर ।
२. युगप्रधान आचार्य, जैसे -- भद्रबाहुस्वामी ।
३. युगप्रधान से जो समग्रता से श्रुतग्रहण करते हैं, जैसे - स्थूलभद्रस्वामी ।
भाषक, विभाषक और भाष्यकार
ऊणं सममहियं वा, भणियं भासंति भासगाइया । अहवा तिष्णवि साहेज्ज कटुक माइनाहिं ||
पोंड - देसिए चेव ।
कट्ठे पोत्थे चित्ते, सिरिघरिए भासग - विभासए वा
य आहरणा ||
वत्तीकरणे ( विभा १४२४, १४२५ ) अनुयोगाचार्य शिष्य को जितना पढ़ाते हैं, उससे कम मात्रा में वह दूसरों को बता पाता है, वह भाषक कहलाता है । आचार्य जितना पढ़ाते हैं, उतना ही दूसरों को बता देता है, वह विभाषक है । अनुयोगाचार्य से प्राप्त श्रुत को जो अपनी प्रज्ञा के अतिशय से अधिक विस्तार के साथ दूसरों को बता सकता है, वह वार्तिककार / भाष्यकार कहलाता है ।
निर्युक्तिकार ने भाषक, विभाषक और वार्तिककार के भेद को छह दृष्टांतों से समझाया है—
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