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सामायिक
१. सामायिक की परिभाषा
आया खलु सामाइयं पञ्चवखायंतओ हवइ आया।... ( आवनि ७९० ) सामाइयभावपरिणइभावाओ जीव एव सामइयं । '''' (विभा २६३६)
सावद्य योग का प्रत्याख्यान करने वाला आत्मा सामायिक है । सामायिक भाव में परिणत होने से आत्मा सामायिक है। जो न विवट्ट रागे नवि दोसे दोन्ह मझवारम्भि सो होइ उ मकत्वो सेसा सम्बे अमज्झत्या | ( आवनि ८०३ )
जो न राग में वर्तन करता है और न द्वेष में वर्तन करता है, दोनों से स्पृष्ट न होकर मध्य में रहता है, वह मध्यस्थ होता है । शेष सभी अमध्यस्थ होते हैं । सामायिक का उद्देश्य
सावज्जजोग परिवज्जणट्ठा सामाइयं केवलियं पसत्थं । गिहत्यधम्मा परमंति णच्चा कुज्जा बुही आयहियं परत्थं ॥ ( आवनि ७९९ ) सावद्ययोग से बचने के लिए सामायिक एकमात्र पूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है । यह गृहस्थ के अन्यान्य धर्मों में प्रधान है, परम है। आत्महित और मोक्ष के लिए इसकी आराधना करनी चाहिए।
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सामायिक की अर्हता
पियधम्मो दढधम्मो संविग्गोऽवज्जभीरू असढो य । तो दंतो गुत्तो पिरग्यय जिइंदिओ उज्जू ॥ असढो तुलासमाणी समिओ तह साहुसंगहरओ य गुणसंपओववीओ जुग्गो सेसो अजुग्गो य ॥ (विमा ३४१०, ३४११ ) प्रियधर्मा, दृढधर्मा, संविग्न, पापभीरु, अशठ, क्षान्त, दान्त, गुप्त, स्थिरव्रती जितेन्द्रिय ऋजु, मध्यस्थ, समित और साधुसंगति में रत- इन गुणों से सम्पन्न शिष्य सामायिक ग्रहण करने के योग्य होता है, शेष अयोग्य हैं।
जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ इइ केवलिभासियं ॥ जो समो सम्बभूएसु तसेसु थावरेसु य तस्स सामाइयं होइ इइ केवलिभासियं ॥
( अनु ७०८ / गाथा १, २ ) जिस व्यक्ति की आत्मा संयम, नियम और तप में
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सामायिक के निर्वाचन
जागरूक है, उसके सामायिक होता है जो त्रस और स्थावर सब प्राणियों के प्रति समभाव रखता है, उसके सामायिक होता है। यह केवली द्वारा भाषित है । २. सामायिक के आठ निर्वाचन
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सामाइयं समइयं सम्मावाओ समास संखेवो । अणवज्जं च परिष्णा पञ्चनखाणे व ते अट्ठ ॥ ( आवनि ०६४)
'सामायिक' शब्द के आठ निक हैं-
१. सामायिक- - जिसमें सम - मध्यस्थभाव की आय -- उपलब्धि होती है, वह सामायिक ( आत्मा का एकान्ततः प्रशमभाव) है।
२. समयिक - सभी जीवों के प्रति सम्यक् - दयापूर्ण प्रवर्तन |
३. सम्यवाद राग-द्वेष शून्य होकर यथार्थ कथन
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करना । ४. समास - सं + आस - जीव की संसार समुद्र से पारगामिता अथवा कर्मों का सम्यक क्षेपण ।
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५. संक्षेप - महान् अर्थ का अल्पाक्षरों में कथन यह चौदह पूर्वो का सार है ।
६. अनवद्य-पापशून्य प्रक्रिया |
७. परिक्षा पाप के परित्याग का संपूर्ण ज्ञान ।
८. प्रत्याख्यान- गुरु की साक्षी से परिहरणीय प्रवृत्ति से निवृत्ति |
आठ निरुक्तों के आठ उदाहरण
दमते मेयज्जे कालयपुच्छा चिलाय अत्तेय । धम्मरुद्द इला तेवलि सामाइए
अदुदाहरणा ॥ ( आवनि ८६५)
१. बत
हस्तीशीर्ष नगर में राजा दमदन्त राज्य करता था । हस्तिनापुर में पांडवों का राज्य था दमदन्त का उनके साथ वैरभाव था। एक बार राजा दमदन्त राजगृह गया हुआ था, तब पांडवों ने उसके राज्य को लूट लिया और राजधानी को जला डाला । दमदंत ने प्रतिशोधन हस्तिनापुर पर आक्रमण कर दिया । उसके भय से कोई बाहर नहीं आया तब दमदंत पुनः अपने देश लौट आया। संयोगवश अतिसंवेग से वह प्रव्रजित हो एकलविहार प्रतिमा की साधना करते हुए हस्तिनापुर आया और गांव के
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