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________________ सामाचारी ६८९ सामायिक * * २.क्षपण-तपस्या के लिए । ३. सामायिक के प्रकार यह उपसम्पदा इत्वरिक अथवा यावत्कथिक होती | सम्यक्त्व सामायिक (द्र. सम्यक्त्व ) श्रुतसामायिक (5. श्रुतज्ञान) ४. सामाचारी का महत्त्व * देशविरत सामायिक (द्र. श्रावक) सामायारि पवक्खामि, सव्वदुक्खविमोक्खणि। * सर्वविरत सामायिक (व्र. चारित्र) (उ २६।१) ४. सामायिक का निर्गम एवं सामायारि जंजंता चरणकरणमाउत्ता। ० कर्ता साह खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमणंतं ॥ • लक्षण (ओनि ८१०) ०काल सामाचारी सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाली है। ० स्थिति चारित्र और समिति-गुप्ति में सावधान साधु ५. सामायिक : आवरण क्षय सामाचारी का प्रयोग करता हआ अनेक भवों में संचित ६. सामायिक और नय अनन्त कर्मों को क्षीण कर देता है। ७. सामायिक और लोक (दसविध सामाचारी की सम्यक परिपालना से व्यक्ति • महाविदेह आदि में सामायिक में निम्न गुण उत्पन्न होते हैं ० अकर्मभूमि और सामायिक १-२. आवश्यिकी और नषेधिकी से निष्प्रयोजन गमना • अन्तरकाल गमन पर नियंत्रण रखने की आदत पनपती है। ० विरहकाल ३. मिच्छाकार से पापों के प्रति सजगता के भाव पनपते ० अविरहकाल ०भव ४-५. आपृच्छा और प्रतिपृच्छा से श्रमशील तथा दूसरों। ० आकर्ष के लिए उपयोगी बनने के भाव बनते हैं । ८. सामायिक और क्षेत्रस्पर्शना ६. छन्दना से अतिथि सत्कार की प्रवृत्ति बढ़ती है। ० भावस्पर्शना ७. इच्छाकार से दूसरों के अनुग्रह को सहर्ष स्वीकार | ९. सामायिक और ज्ञान करने तथा अपने अनुग्रह में परिवर्तन करने की कला १०. सामायिक और उपयोग आती है । दूसरों के अनुग्रह की हार्दिक स्वीकृति ११. सामायिक और कर्मस्थिति स्वयं में विनय पैदा करती है। १२. सामायिक और संज्ञी-असंज्ञी ८. उपसम्पदा से परस्पर-ग्रहण की अभिलाषा पनपती ० आहारक-पर्याप्तक ० संस्थान, संहनन, अवगाहना ९. अभ्युत्थान (गुरु-पूजा) से गुरुता की ओर अभिमुखता ० आयुष्य होती है। • चार गति १०. तथाकार से आग्रह की आदत छट जाती है. विचार | १३. सामायिक के ग्राह्य और वर्जनीय नक्षत्र करने के लिए प्रवृत्ति सदा उन्मुक्त रहती है।) • ग्राह्य और वर्जनीय तिथियां • प्राह दिशाएं सामायिक- समता की साधना। • प्रशस्त-अप्रशस्त क्षेत्र १. सामायिक की परिभाषा १४. सामायिकसूत्र १५. सामायिक का महत्त्व ० अर्हता ० चौवह पूर्वो का सार २. सामायिक के आठ निर्वचन * सामायिक : आवश्यक का एक भेद (द. आवश्यक) • आठ उदाहरण * सामायिक और लेश्या (द्र. लेश्या ) ० उद्देश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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