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सम्यक्त्व का निर्वचन
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सम्यक्त्व
प्रकार के होते हैं-सम्मूछिम तथा ।
१८. सम्यक्त्व से ज्ञान विशोधि गर्भज । सम्मूच्छिम मनुष्य मनुष्य के
० सम्यक्त्व और ज्ञान में भेद मल, मूत्र आदि चौदह अशुचि स्थानों | १९. सम्यक्त्व और चारित्र में उ
२०. सम्यक्त्व (दर्शन) की महत्ता सम्यक्त्व - सम्यक् दृष्टिकोण । तत्त्व के प्रति | २१. सम्यक्त्व के परिणाम यथार्थ रुचि।
* सम्यक्त्व : सामायिक का एक भेद
* सम्यक्त्व के आकर्ष, विरहकाल, क्षेत्रस्पर्शना", १. सम्यक्त्व का निर्वचन
(द्र. सामायिक) २. सम्यक्त्व का स्वरूप ० हाथी का दृष्टांत
१. सम्यक्त्व का निर्वचन * प्रथिभेद और सम्यक्त्व की प्राप्ति (करण) जीवादिवस्तुबोधं प्रति समिति सम्यग् अवपरीत्येन, ३. सम्यक्त्व के पर्यायवाची
अञ्चति प्रवर्तते इति सम्यक, तस्य भावः सम्यक्त्वम् । ४. सम्यक्त्व के प्रकार
(विभामवृ १ पृ २४३) ५. औपशमिक सम्यक्त्व
तत्त्वबोध के प्रति जो सम्यक् रूप से प्रवृत्त होता है, * प्रथम बार सम्यक्त्व प्राप्ति : तीन अभिमत वह सम्यक्त्व है।
(उ.करण) | सम्यग् इति प्रशंसार्थः, दर्शनं दष्टिः सम्यगविपरीता ६. सास्वादन सम्यक्त्व
दृष्टि: सम्यग्दृष्टि: ‘अर्थानां' इति गम्यते । ७. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व
(विभामवृ २ पृ १७५) • कोद्रव का दृष्टांत
सम्यक् शब्द प्रशंसार्थक अव्यय है । पदार्थ के प्रति ० अनम्तानुबन्धी कषाय सम्यक्त्व का बाधक नहीं अविपरीत दृष्टि सम्यग्दृष्टि---- सम्यक्त्व है । * अनन्तानुबन्धी कषाय : सम्यक्त्व का अभिघात ।
२. सम्यक्त्व का स्वरूप (द्र. कषाय)
तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं । *क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की स्थिति (द्र. सामायिक)
भावेणं सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ।। * क्षयोपशम भाव (द्र. भाव)
(उ २८।१५) ८. वेदक सम्यक्त्व
नौ तत्त्वों के सदभाव के निरूपण में जो अन्तःकरण ९. क्षायिक सम्यक्त्व
से श्रद्धा करता है, उसके सम्यक्त्व होता है। ० अग्नि का दृष्टांत
दश्यते तत्त्वमस्मिन्निति दर्शनम्। इदमपि सम्यग्रूप१०. सम्यक्त्व के प्रकार : अभिगम आदि ११. कारक-रोचक-दीपक सम्यक्त्व
मेव दर्शनमोहनीयक्षयक्षयोपशमोपशमसमुत्पादितमहदभि -
हित जीवादितत्त्वरुचिलक्षणात्मशुभभावरूपम् । १२. सम्यक्त्व के लक्षण ० संवेग के परिणाम
(उशावृ प ५५६) ० निर्वेद के परिणाम
जिसमें तत्त्व सही रूप में दृष्टिगत होते हैं, वह १३. सम्यक्त्व के आचार
सम्यग् दर्शन है । इसकी उत्पत्ति का कारण है -- दर्शन___ * सम्यग दर्शन : आचार का एक भेद (द. आचार) | मोहनीय कर्म का क्षय, क्षयोपशम अथवा उपशम । इसका १४. सम्यक्त्व के अतिचार
लक्षण है-अर्हतों द्वारा निरूपित जीव, अजीव आदि १५. सम्यक्त्व : आयुबन्ध और गति
तत्त्वों में रुचि । १६. उत्कृष्ट आयुस्थिति में सम्यक्स्व-प्राप्ति
मिच्छत्तमयसमूह सम्मत्तं जं च तदुवगारम्मि। १७. मिथ्यावृष्टि-सम्यगदष्टि की श्रद्धा में अन्तर
वटइ परसिद्धंतो तो तस्स सओ ससिद्धंतो॥ * मिथ्यादृष्टि, सम्यग्-मिथ्यावृष्टि (व. गुणस्थान)
(विभा ९५४)
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