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अनाचार के हेतु
२५. आसंदी - मञ्चिका पर बैठना ।
२६. पर्यंक -- पलंग पर बैठना ।
२७. गृहांतर निषद्या - भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर में बैठना ।
२८. गात्र - उद्वर्तन- उबटन करना ।
३०. आजीववृत्तिता
२९. गृहि-वैयापृत्य – गृहस्थ को भोजन का संविभाग देना, गृहस्थ की सेवा करना । जाति, कुल, गण, शिल्प और कर्म का अवलम्बन ले भिक्षा प्राप्त करना ।
३१. तप्त - अनिर्वृतभोजित्व - अर्ध पक्व सजीव वस्तु का उपभोग करना ।
३२. आतुरस्मरण – आतुर - दशा में भुक्त भोगों का
स्मरण करना ।
३३- ३९. सजीव मूली, अदरक, इक्षुखंड, कंद और मूल; अपक्व फल और बीज - इन्हें लेना व खाना । ४०-४५. अपक्व सौवर्चल नमक, सैन्धव नमक, रुमा नमक, समुद्र का नमक, ऊषर भूमि का नमक तथा काला नमक -- इन्हें लेना व खाना ।
४६. धूम - नेत्र - धूम्रपान की नलिका रखना । ४७. वमन – रोग की संभावना से बचने के लिए तथा रूप-बल आदि को बनाए रखने के लिए वमन करना।
४८. वस्तिकर्म - विरेचन – अपान-मार्ग से तैल आदि चढ़ाना और विरेचन करना । ४९. अंजन - आंखों में अंजन आंजना । ५०. दंतवण - दांतों को दतीन से घिसना । ५१. गात्र - अभ्यंग - शरीर पर तैल-मर्दन करना । ५२. विभूषण--- शरीर को अलंकृत करना । ३. अनाचार के हेतु
उद्देसियादि विभूसतं अणायरणकारणाणि उद्देसिते सत्तवहो । कीतकडे गवादिअहिकरणं । णीताए तदट्ठमुपक्खडणं । आहडे छक्कायवहो । रातिभत्ते सत्तविराहणा । सिणाणे विभूसा उप्पीलावणादि । गंध-मल्ले सुहुमघाय - उड्डाहा । वीयणे संपादिमवायुवहो । सणिही ए हिय णट्ठे पिपी लियादिवहो । गिहिमत्ते आउक्कायवहो, य दवावणं । रायपिंडे संबाहेण विराहणा उक्कोसलंभे बाह सुत्तत्पलिमंथो
य
एसणाघात ।
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(अ) तब्भावणं च दंतपधोवणे दंत विभूसा । संपुच्छणे पावाणुमोदणं । संलोयणेण बंभपीडा । अट्ठावय-णालीयाए हणादतो उड्डाहो य । छत्ते उड्डाहो गव्वो य । तेगिच्छे सुत्त त्यपमिंथो । उवाहणाहि गव्वादि । जोतिसमारंभे काय हो । सेज्जातरपिंडे एसणादोसा । आसंदी - पलियं सु सुसिरदोसा । गिहंतरणिसेज्जाए अगुत्ती बंभचेरस्स संकातो । गाउव्वट्टणाए गायविभूसा । गिहिणो वेतावडिए अहिकरणं । आजीववित्ती अणिस्संगता । तत्तानिव्वुडभोइयत्ते सत्तवहो । आउरसरणे उपव्वावणादि । मूला दिग्गहणे वणस्सतिघातो । सोवच्चलादीणं पुढविकाय हो । धूवणादि विभूसा । एते दोसा इति । (दअचू पृ ६२, ६३ )
अनाचार
अनाचार के हेतु—
१. औद्दे शिक - जीववध |
२. क्रीतकृत - अधिकरण ।
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३. नित्याय – मुनि के लिए भोजन का समारंभ । ४. आहृत - षट्जीवनिकाय का वध । ५. रात्रिभक्त - जीववध ।
- विभूषा और उत्प्लावन ।
६. स्नान -
७. गंधमाल्य-सूक्ष्म जीवों की घात और लोकापवाद । ८. वीजन - संपातिम वायु का वध ।
९. सन्निधि - पिपीलिका आदि जीवों का वध । १०. गृहस्थ का भाजन - अपकायिक जीवों का वध ।
कोई उस पात्र का हरण कर
ले या नष्ट हो जाए तो दूसरा दिलाना होता है ।
११. राजपिंड - भीड़ के कारण विराधना । उत्कृष्ट भोजन के प्राप्त होने से एषणा का घात ।
१२. संबाधन – सूत्र और अर्थ की हानि तथा शरीरासक्ति का विकास ।
१३ दंतधावन - दंत-विभूषा । १४. संप्रश्न - पाप का अनुमोदन । १५. संलोकन - ब्रह्मचर्य का घात ।
१६. द्यूत - निग्रह आदि तथा लोकापवाद । १७. नालिकाद्यूत - निग्रह आदि तथा लोकापवाद ।
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