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पचार
अनाचार
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बावन अनाचार अनाचार-विहित आचार का अतिक्रमण । १. औद्देशिक-निर्ग्रन्थ के निमित्त बनाया गया आहार
आदि लेना। १. अनाचार के अर्थ
२. क्रीतकृत-निर्ग्रन्थ के निमित्त खरीदा गया आहार २. बावन अनाचार
आदि लेना। ३. अनाचार के हेतु
३. नित्याग्र-आदरपूर्वक निमन्त्रित कर प्रतिदिन * औद्देशिक आदि अनाचार : एषणा के दोष
दिया जाने वाला आहार आदि लेना।'
(द्र. एषणा) • अनाचीर्ण का प्रतिक्रमण
४. अभिहृत-निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया
(उ. प्रतिक्रमण) * आचार के स्थान
(द्र. आचार)
गया आहार आदि लेना।
५. रात्रि-भक्त-रात्रि-भोजन करना। १. अनाचार के अर्थ
६. स्नान-नहाना। अणायारो अकरणीयं वत्थु । (दअचू पृ १९३) ७. गंध-गंध सूंघना या गंध-द्रव्य का विलेपन अणायारो उम्मग्गोत्ति वुत्तं भवइ ।
करना। (दजिचू पृ २८५) ८. माल्य-माला पहनना। अनाचारं सावद्ययोगम् । (दहावृ प २३३) ९. वीजन-पंखा झलना।
अनाचार के तीन अर्थ हैं.---अकरणीय कार्य, १०. सन्निधि-खाद्यवस्तु का संग्रह करना--रात-बासी उन्मार्ग-गमन और सावध प्रवृत्ति ।।
रखना। २.बावन अनाचार
११. गृहि-अमत्र-गृहस्थ के पात्र में भोजन करना । उद्देसियं कीयगडं, नियागमभिहडाणि य ।
१२. राजपिण्ड-मूर्धाभिषिक्त राजा के घर से भिक्षा राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य वीयणे ।।
लेना । सन्निही गिहिमत्ते य, रायपिंडे किमिच्छए । १३. किमिच्छक --'कौन क्या चाहता है ?' यों पूछकर संबाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य॥
दिया जाने वाला भोजन आदि लेना। अट्ठावए य नालीय, छत्तस्स य धारणढाए । १४. संबाधन-अंग-मर्दन करना । तेगिच्छं पाणहा पाए, समारंभं च जोइणो ।। १५. दंत-प्रधावन-दांत पखारना । सेज्जायरपिंडं च, आसंदीपलियंकए । १६. संप्रच्छन-गृहस्थ को कुशल पूछना । गिहतरनिसेज्जा य, गायस्सुव्वट्टणाणि य ।। १७ देह-प्रलोकन-दर्पण आदि में शरीर देखना। गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया। १८. अष्टापद- शतरंज खेलना । तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ १९. नालिका-नलिका से पासा डाल कर जुआ मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखंडे अनिव्वुडे ।
खेलना। कंदे मूले य सच्चित्ते, फले बीए य आमए । २०. छत्र-विशेष प्रयोजन के बिना छत्र धारण सोवच्चले सिंधवे लोणे, रोमालोणे य आमए ।
करना। सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए । २१. चैकित्स्य-रोग का प्रतिकार करना, चिकित्सा धवणेत्ति वमणे य, वत्थीकम्म विरेयणे ।
__ करना। अंजणे दंतवणे य, गायाभंगविभूसणे ॥ २२. उपानत्-जूते पहनना।
(द ३२-९) २३. ज्योतिःसमारम्भ-अग्नि जलाना। बावन अनाचार जो निर्ग्रन्थ के लिए अनाचीर्ण हैं वे २४. शय्यातरपिण्ड-स्थान-दाता के घर से भिक्षा इस प्रकार हैं
लेना।
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