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संस्थान संरचना"
संस्थान
संस्थान के दो प्रकार हैं
१. ओजःप्रदेश प्रतरवृत्त ३. ओजःप्रदेश घनवृत्त १. इत्थंस्थ-परिमण्डल आदि नियत आकार ।
२. युग्मप्रदेश प्रतरवृत्त ४. युग्मप्रदेश घनवृत्त । २. अनित्थंस्थ-अनियत आकार ।
परिमण्डलादि प्रत्येक जघन्यमत्कृष्टं च, तत्रोत्कृष्टं संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । सर्वमनन्ताणुनिष्पन्नमसंख्यप्रदेशावगाढं चेत्येकरूपतयापरिमण्डला य वट्टा, तंसा चउरंसमायया ॥ अनुक्तमपि सम्प्रदायाज्ज्ञातुं शक्यमिति तदुपेक्ष्य जघन्यं तु
(उ ३६।२१) प्रतिभेदमन्यान्यरूपतया न तथेति तदुपदर्शनार्थमाहपरिमण्डलं-बहिर्वृत्ततावस्थितप्रदेशजनितमन्तः
पंचग बारसगं खलू सत्तग बत्तीसगं तु वटॅमि । शुषिरः यथा वलयस्य । वृत्तं तदेवान्तःशुषिरविरहितं
तिय छक्कग पणतीसा चत्तारि य हंति तंसंमि ।। यथा कुलालचक्रस्य । व्यस्रं-त्रिकोणं, यथा शङ्गाटकस्य ।
नव चेव तहा चउरो सत्तावीसा य अट्र चउरंसे । चतुरस्रं -चतुष्कोणं, यथा कुम्भिकायाः । आयतं-दीर्घ,
तिगद्गपन्नरसेवि य छच्चेव य आयए हंति ।। यथा दण्डस्य।
(उशावृ प २७)
पणयालीसा बारस छब्भेया आययंमि संठाणे । पौद्गलिक संस्थान के पांच प्रकार हैं
वीसा चत्तालीसा परिमंडलि हंति संठाणे ।। १. परिमण्डल-वलय की तरह बाहर से गोल और भीतर से शुषिर।
__इत्थं चैषां प्ररूपणमितोऽपि न्यूनदेशतायां यथोक्त
संस्थानासम्भवात्, न चैतान्यतीन्द्रियत्वेनातिशायिगम्यत्वात् २. वृत्त-कुलालचक्र की तरह बाहर से गोल तथा __अन्दर से पोलाल रहित ।
सर्वथाऽनुभवमारोपयितुं शक्यन्ते, स्थापनादिद्वारेण च ३. त्यस्र-सिंघाड़े की तरह त्रिकोण ।
कथञ्चिच्छक्यानीति तथैव दशितानि । ४. चतुरस्र-कुम्भिका की तरह चतुष्कोण ।
(उनि ३९-४१ शावृ प २७-२९) ५. आयत-दण्ड की तरह दीर्ष ।
परिमण्डल आदि पांचों संस्थान जघन्य और उत्कृष्ट परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ ।
-दोनों प्रकार के होते हैं । जो उत्कृष्ट हैं, वे सब अनंत गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ वि य॥ अणुनिष्पन्न और असंख्य प्रदेशावगाढ होने से एक रूप हैं,
( 361४) अतः परम्परा से जाने जा सकते हैं । जो पुद्गल संस्थान से परिमण्डल है, (वत्त, त्रिकोण,
जघन्य परिमंडल आदि संस्थानों के भेदों में एकचतुष्कोण अथवा आयत है) वह वर्ण, गन्ध, रस और रूपता नहीं है। प्रत्येक भेद की भिन्नता इस प्रकार उपस्पर्श से भाज्य होता है।
दशित है५. संस्थानसंरचना : परमाणओं का इतरेतर वृत्त संस्थान संयोग
१. ओजःप्रदेश प्रतरवृत्त-यह पांच अणुओं से निष्पन्न, परिमंडले य वट्टे तंसे चउरंसमायए चेव ।
पांच आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है-एक अणु घणपयर पढमवज्जं ओयपएसे य जुम्मे य ।।
मध्य में और चार अणु चार दिशाओं में स्थापित (उनि ३८)
किये जाते हैं। परिमण्डल, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र और आयत-इन २. युग्मप्रदेश प्रतरवृत्त-यह बारह अणुओं से निष्पन्न पांच संस्थानों के दो-दो प्रकार हैं-प्रतर और घन।
और बारह आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है-चार प्रतर और धन के दो-दो प्रकार हैं
प्रदेशों पर मध्य में निरन्तर चार अणु और उसके ओजःप्रदेश (विषम संख्यक परमाणु) और युग्म- परिक्षेप में आठ अणु स्थापित किये जाते हैं। प्रदेश (समसंख्यक परमाणु)।
३. ओजःप्रदेश धनवृत्त-यह सात अणुओं से निष्पन्न परिमण्डल समसंख्यक अणुओ में ही होता है, अतः और सात प्रदेशों में अवगाढ होता है--पांच अणुओं परिमण्डल वजित वत्त आदि के चार-चार भेद होते हैं, वाले प्रतरवृत्त के मध्य स्थित अणु के ऊपर और जैसे
नीचे एक-एक अणु की स्थापना ।
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