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संस्थान
संस्थान के प्रकार
तुल्यारोहपरिणाहः सम्पूर्णलक्षणोपेताङ्गोपाङ्गावयवः पताका संस्थान से संस्थित हैं। विकलेन्द्रिय, नैरयिक, स्वङगूलाष्टाधिकशतोच्छयः सर्वसंस्थानप्रधानः पञ्चेन्द्रिय- सम्मूच्छिम तियंच, सम्मूच्छिम मनुष्य-इनके हण्ड जीवशरीराकारविशेषः । नाभेरुपरि न्यग्रोधवन्मण्डल- संस्थान होता है। शेष पंचेन्द्रिय तिथंच और मनुष्य छहों माद्यसंस्थानलक्षणयुक्तत्वेन विशिष्टाकारं न्यग्रोधमण्डलं, संस्थान वाले होते हैं। देवों का संस्थान समचतुरस्र होता न्यग्रोधो-- वटवृक्षः, यथा चायमुपरि वृत्ताकारतादिगुणोपेत- है। देखें-पण्णवणा पद २१) । त्वेन विशिष्टाकारो भवत्यधस्तू न तथा एवमेतदपीति
२. वृषभ संस्थान वाली वसति भावः । सह आदिना नाभेरधस्तनकायलक्षणेन वर्तते सादि। ......"यत्र पाणिपादशिरोग्रीवं समग्रलक्षणपरिपूर्ण शेषं तु
सिंगक्खोडे कलहो ठाणं पूण नेव होइ चलणेसुं । हृदयोदरपृष्ठलक्षणं कोष्ठं लक्षणहीनं तत् कुन्जम् । यत्र तु
अहिठाणि पोट्टरोगो पुच्छंमि अ फेडणं जाण ।। हृदयोदरपृष्ठं सर्वलक्षणोपेतं शेषं तु हीनलक्षणं तद्वामनं,
(ओभा ७६) कुब्जविपरीतमित्यर्थः । यत्र सर्वेऽप्यवयवाः प्रायो लक्षण
• वृषभ रूप क्षेत्र के श्रृंगप्रदेश में वसति (प्रवास विसंवादिन एव भवन्ति तत्संस्थानं हुण्डम् ।।
स्थल) होने से कलह होता है । (अनुमवृ प ९३)
० पादप्रदेश में वसति होने से अवस्थिति नहीं संस्थान के छह प्रकार हैं
होती। समचतुरस्र-जिसमें चारों कोण समान होते हैं,
• अपानप्रदेश में वसति होने से उदर रोग होते शरीर की ऊंचाई और चौड़ाई समान होती है, सम्पूर्ण अवयव प्रमाणोपेत होते हैं, ऊंचाई आत्मांगुल से १०८
० पुच्छ प्रदेश में होने से वसति छीन ली जाती है । अंगुल होती है, वह समचतुरस्र संस्थान कहलाता है । यह ० मुख प्रदेश पर होने से पर्याप्त आहार की प्राप्ति केवल पंचेन्द्रिय जीवों के होता है।
होती है। ___ न्यग्रोधपरिमंडल --न्यग्रोध (वटवृक्ष) की तरह।
, • शिर (शृङ्ग मध्य) और ककुद भाग में होने से जिसमें नाभि से ऊपर के अवयव प्रमाणोपेत होते हैं और
पूजा-सत्कार होता है। नाभि से नीचे के अवयव प्रमाणोपेत नहीं होते, वह
० स्कन्ध और पृष्ठ प्रदेश पर होने से वसति समागत न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान है।
साधुओं से समाकीर्ण रहती है। सादि-जिसमें नाभि से नीचे का भाग लक्षण युक्त
० उदर प्रदेश में होने से तृप्ति मिलती है । हो, वह सादि संस्थान है।
(वाम पार्श्व में पूर्वाभिमुख उपविष्ट वृषभ रूप क्षेत्र कुब्ज-जिसके हाथ, पैर, सिर और ग्रीवा लक्षण- की कल्पना के आधार पर उपर्युक्त कथन है।) युक्त हों, हृदय, उदर और पीठ लक्षणहीन हों, पीठ
३. पौद्गलिक संस्थान पर पुद्गलों का अधिक संचय हो, वह कुब्ज संस्थान है। वामन–जिसमें हृदय, उदर और पीठ लक्षणयुक्त
संतिष्ठतेऽनेन रूपेण पुद्गलात्मकं वस्त्विति संस्थानम्
----आकारविशेषः ।""संतिष्ठन्त एभिस्कन्धादय इति हों, शेष अवयव लक्षणहीन हों, वह वामन संस्थान है।
संस्थानानि ।
(उसुवृ प २६, ६७७) हुण्ड-जिसमें सब लक्षण विसंवादी होते हैं, शरीर
पौद्गलिक वस्तुओं अथवा पुद्गलस्कन्धों के जो के सब अवयव प्रायः प्रमाणहीन और असंस्थित होते हैं,
विविध आकार हैं, वे संस्थान कहलाते हैं । बह हुण्ड संस्थान है।
(आहारक शरीर का संस्थान समचतुरस्र तथा ४. संस्थान के प्रकार औदारिक आदि शरीरों का संस्थान नाना प्रकार का इत्थमित्थं तिष्ठति इत्थंस्थं, न तथा अनित्थंस्थम, होता है।
अनेन नियतपरिमण्डलाद्यन्यतराकारं संस्थानं शेषोऽनियतातेजस्काय सूचीकलाप संस्थान से तथा वायुकाय ऽऽकारस्तु स्कन्धः ।
(उशावृ प २७)
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