________________
श्रुतज्ञान
६४२
श्रुतकरण : बद्ध-अबद्धश्रुत
सरिसगमं णाम जहा-कोहस्स उदयनिरोहो कायव्वो भूआपरिणयविगए सद्दकरणं तहेव न निसीहं । उदयपत्तस्स विफलीकरणं कायव्वं ति तहा माणमाया- पच्छन्नं तु निसीहं निसीहनामं जहऽज्झयणं । लोभाणवि।
__ (आवचू १ पृ ३४) अग्गेणीअंमि जहा दीवायण जत्थ एग तत्थ सयं । गमिक के दो प्रकार हैं-भंगगमिक और गणित जत्थ सयं तत्थेगो हम्मइ वा भुजए वावि ।। गमिक । सदश पाठ भी गमिक कहलाते हैं। अतः तीसरा
(आवनि १०२१, १०२२) विकल्प सदृश गमिक बन जाता है।
वस्तु उत्पन्न होती है, नष्ट होती है, स्थिर रहती • भंग गमिक-एक भंग, दो भंग, तीन भंग आदि। है-यह कथन स्पष्ट प्रतिभासित-प्रकाशित होने से अनि• गणित गमिक-एक जीवा और धनुपृष्ठ के गणित के शीथ (शब्दकरण) है। निशीथ वह है जो प्रच्छन्न है,
अनुसार अन्य जीवा और धनुपृष्ठ का भी गणित जिसका सूत्रपाठ और अर्थ गूढ़ रहस्यमय है, जैसे-निशीथ कर लेना चाहिए।
अध्ययन। • सदश गमिक—क्रोध के उदय का निरोध करना अथवा गुप्त अर्थ निशीथ कहलाता है। जैसे-अग्राय
चाहिए और उदय प्राप्त क्रोध का विफलीकरण णीय पूर्व में एक पाठ है-"अग्गेणीअम्मि.......... || करना चाहिए। इसी प्रकार मान, माया, लोभ जहां एक द्वीपायन खाता है, वहां सौ द्वीपायन खाते का निरोध और विफलीकरण करना चाहिए।
हैं। जहां सौ द्वीपायन खाते हैं, वहां एक द्वीपायन खाता २०. श्रुतकरण : बद्ध-अबद्ध श्रत
इसी प्रकार जहां सौ द्वीपायन आहत होते हैं, वहां जीवकरणं तु विहं सयकरणं चेव नो य सूयकरणं ।
एक द्वीपायन आहत होता है। (सम्प्रदायाभावान्न प्रतन्यते बद्धमबद्धं च सुअं निसीहमनिसीहबद्धं तु॥
-परम्परा विच्छिन्न होने के कारण इसकी व्याख्या ज्ञात (उनि २०३)
नहीं है--आवहाव १ पृ ११०) जीवकरण के दो प्रकार हैं-श्रुतकरण और नोश्रुत- ये लोकोत्तर बद्धश्रुत हैं। आरण्यक, महाभारत करण । श्रुतकरण के दो भेद हैं -बद्धश्रुत और अबद्ध- जामिनोनित
आदि लौकिक बद्धश्रुत हैं। श्रुत।
अबद्धश्रुत : पांच सौ आदेश बद्धमबद्धं तु सुअं बद्धं तु दुवालसंग निद्दिढें । तविवरीअमबद्धं निसीहमनिसीहबद्धं तु ॥
.."बद्धमबद्धं आएसाणं हवंति पंचसया । (आवनि १०२०)
जह एगा मरुदेवी अच्चंतत्थावरा सिद्धा ।। बद्धाबद्धं च पुणो सत्थासत्थोवएसभेयाओ ।
(आवनि १०२३) एक्केक्कं सद्दनिसीहकरणभेयं मुणेयव्वं ।।
लोए अणिबद्धाइं अड्डिय-पच्चड्डियाइं करणाई । उत्ती उ सद्दकरणं पगासपाढं च सरविसेसो वा ।
पंचादेससयाई मरुदेवाईणि उत्तरिए । गूढत्थं तु निसीहं रहस्ससुत्तत्थमहवा जं ।।
(विभा ३३५७) (विभा ३३५५,३३५६) अत्र वृद्धसम्प्रदायः......"बिइयं सयंभुरमणे समुद्दे श्रुत के दो प्रकार हैं
मच्छाणं पउमपत्ताण य सव्वसंठाणाणि अत्थि वलयसंठाणं .. बद्ध-गद्य-पद्य में निबद्ध शास्त्रोपदेश ।
मोत्तुं । • अबद्ध-अशास्त्रोपदेशरूप, केवल कंठों से श्रावणीय। . तइयं विण्हस्स सातिरेगजोयणसयसहस्सविउव्वणं ।
इन दोनों के दो-दो भेद हैं-शब्दकरण और . चउत्थं करडओकुरुडा दोसट्रियरुवझाया, कुणालानिशीथकरण ।
णयरीए निद्धमणमूले वसही। वरिसासु देवयाणुशब्दकरण का अर्थ है-उक्तिविशेष, स्पष्ट पाठ कंपणं । नागरेहि निच्छुहणं । करडेण रुसिएण अथवा उदात्त आदि स्वरविशेष ।
वुत्तं-'वरिस देव ! कुणालाए, उक्कुरुडेण भणियंनिशीथकरण का अर्थ है - गूढार्थ, रहस्यपूर्ण सूत्रार्थ । 'दस दिवसाणि पंच य' पूणरवि करडेण भणियं
.
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org