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प्रायोपगमन
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अनशन
सीमित अवधि तक किया जाने वाला अल्पकालिक शरीर की परिचर्या, शुश्रुषा की जाती है, वह सपरिकर्म अनशन इत्वरिक कहलाता है। इसकी अवधि है -उपवास अनशन है ।। से छह मास पर्यन्त ।
जिसमें शारीरिक परिचर्या, शुश्रूषा नहीं की जाती, जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छव्विहो।
वह अपरिकर्म अनशन है। सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ।
यद्वा परिकर्म-संलेखना सा यत्रास्ति तत्सपरितत्तो य वग्गवग्गो उ, पंचमो छट्ठओ पइण्णतवो ।
कर्म। व्याघाते गिरिभित्तिपतनाभिघातादिरूपे मणइच्छियचित्तत्थो, नायव्वो होइ इत्तरिओ॥ संलेखनामविधायव भक्तप्रत्याख्यानादि क्रियते तदपरिकर्म। (उ ३०/१०,११)
(उशावृ प ६०३) इत्वरिक तप संक्षेप में छह प्रकार का है
संलेखनापूर्वक किया जाने वाला अनशन सपरिकर्म १. श्रेणितप
४. वर्गतप २. प्रतरतप ५. वर्गवर्गतप
शिलाखंड, भित्तिपतन आदि का व्याघात होने पर ३. धनतप ६. प्रकीर्णतप
संलेखना किये बिना जो तत्काल अनशन किया जाता है, इत्वरिक तप नाना प्रकार के मनोवांछित फल देने वह अपरिकर्म है। वाला होता है।
(द्र तप) प्रकार ३. यावत्कथिक अनशन : सविचार-अविचार... आवकहियं-जावज्जीविगं, तं तिविहं.---. जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया ।
पादोवगमणं इंगिणिमरणं भत्तपच्चक्खाणं । सवियारअवियारा, कायचिट्ठ पई भवे ।
(दअचू पृ १२) अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया।
यावत्कथिक-यावज्जीवन अनशन के तीन प्रकार नीहारिमणीहारी, आहारच्छेओ य दोसु वि ॥
(उ ३०/१२, १३) प्रायोपगमन, इंगिनीमरण, भक्तप्रत्याख्यान । कायचेष्टा के आधार पर यावत्कथिक (यावज्जीवन) ४. प्रायोपगमन अनशन की परिभाषा अनशन के दो भेद होते हैं
पाओवगमणं णाम जो निप्पडिकम्मो पादउब्व जओ सविचार-हलन-चलन सहित ।
पडिओ तओ पडिओ चेव ।
(दजिचू पृ २१) अविचार --निश्चल, स्थिर ।
प्रायोपगमन अनशन निष्प्रतिकर्म होता है। इसको अथवा इसके दो भेद होते हैं
स्वीकार करने वाला साधक जहां अनशन स्वीकार करता सपरिकर्म-शुश्रूषा या संलेखना सहित ।
है, वहीं वृक्ष की भांति निश्चेष्ट होकर पड़ा रहता है। अपरिकर्म --शुश्रुषा या संलेखना रहित ।
तं चिय होइ तहच्चिय णवरं चलणं परप्पओगाओ। अविचार अनशन के दो भेद होते हैं
वायाईहिं तरुस्स व पडिणीयाईहिं तह तस्स ।। निर्हारि - उपाश्रय में किया जाने वाला।
(उशा प ६०३) अनिर्हारि-उपाश्रय के बाहर गिरिकन्दरा आदि
पर-प्रयोग के द्वारा ही उसमें हलन-चलन होती है । एकान्त स्थानों में किया जाने वाला।
जैसे वायु के द्वारा वृक्ष प्रकंपित होता है, वैसे ही वह आहार का त्याग दोनों (सविचार, अविचार अथवा
साधक प्रत्यनीक -देवकृत, मनुष्यकृत अथवा अन्यकृत सपरिकर्म, अपरिकर्म) में होता है ।
परिस्थितियों से ही प्रकम्पित होता है। सपरिकर्म-अपरिकर्म
प्रकार सह परिकर्मणा -- स्थाननिषीदनत्वग्वर्तनादिना तं दुविहं-वाघातिमं निवाघातिमं च । विश्रामणादिना च वर्तते यत्तत्सपरिकर्म अपरिकर्म च
(दअचू पृ १२) तद्विपरीतम् ।
(उशावृ प ६०२) प्रायोपगमन अनशन के दो प्रकार हैंजिसमें उठना, बैठना, सोना आदि क्रियाएं होती हैं, १. सव्याघात २. निर्व्याघात ।
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