________________
श्रमण
शयनविधि
मुझे क्या करना चाहिए ? भंते ! मैं चाहता हूं कि आप रात्रि के प्रथम प्रहर में सब साधु स्वाध्याय करते हैं। मुझे वैयावृत्त्य या स्वाध्याय में से किसी एक कार्य में प्रथम और दूसरे प्रहर में गीतार्थ साधु, तीसरे प्रहर में नियुक्त करें।
__ आचार्य तथा चतुर्थ प्रहर में पूनः सब साधु स्वाध्याय वैयावृत्त्य में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से करते हैं ।
(द्र. कालप्रतिलेखना) वैयावृत्त्य करे अथवा सर्व दुःखों से मुक्त करने वाले स्वा- पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया । ध्याय में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से स्वाध्याय सज्झायं तओ कुज्जा, अबोहेंतो असंजए । करे।
पोरिसीए चउब्भाए, वंदिऊण तओ गुरुं । पढम पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । पडिक्कमित्तु कालस्स, कालं तु पडिलेहए ।। तइयाए भिक्खायरियं पूणो चउत्थीए सज्झायं ।।
आगए कायवोस्सग्गे, सव्वदुक्खविमोक्खणे ।। (उ २६।१२)
काउस्सग्गं तओ कूज्जा, सव्वदुक्खविभोक्खणं ।। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे में ध्यान करे।
(उ २६४४४-४६) तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुन: स्वाध्याय करे ।
चौथे प्रहर में काल की प्रतिलेखना कर असंयत चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं ।
व्यक्तियों को न जगाता हआ स्वाध्याय करे। चौथे प्रहर सज्झायं तओ कूज्जा, सव्वभावविभावणं ।।
के चतुर्थ भाग में गुरु को वन्दना कर, काल-प्रतिक्रमण पोरिसीए चउब्भाए, वंदित्ताण तओ गुरुं । कर (स्वाध्याय काल से निवत्त होकर) काल की प्रतिपडिक्क मित्ता कालस्स, सेज्जं तु पडिलेहए ॥ लेखना करे । कायोत्सर्ग का समय आने पर सर्व दुःखों पासवणुच्चारभूमि च, पडिले हिज्ज जयं जई।
से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥
७. शयनविधि (उ २६।३६-३८)
पोरिसिआपुन्छणया सामाइय उभयकायपडिलेहा । चौथे प्रहर में भाजनों को प्रतिलेखनपूर्वक बांधकर
साहणिअ दुवे पट्टे पमज्ज भूमि जओ पाए । रख दे, फिर सर्व भावों को प्रकाशित करने वाला स्वाध्याय
अणुजाणह संथारं बाहुवहाणेण वामपासेणं । करे।
कुक्कुडिपायपसारण अतरंत पमज्जए भूमि ॥ __ चौथे प्रहर के चतुर्थ भाग में पौन पौरुषी बीत जाने
संकोए संडासं उव्वत्तंते य कायपडिलेहा । पर स्वाध्याय के पश्चात् गुरु को वन्दना कर, काल का
दवाईउवओगं
णिस्सासनिरंभणालोयं ॥ प्रतिक्रमण कर (स्वाध्यायकाल से निवृत्त होकर) शय्या
(ओनि २०४-२०६) की प्रतिलेखना करे।
आचार्य के समीप जाकर शिष्य निवेदन करे-भंते ! यतनाशील यति फिर प्रस्रवण और उच्चारभूमि की
प्रथम प्रहर व्यतीत हो गया है, अब मुझे संस्तारक पर प्रतिलेखना करे। तदनन्तर सर्व दुःखो से मुक्त करने वाला जाने-सोने की आज्ञा दें। फिर तीन बार सामायिक पाठ कायोत्सर्ग करे।
का उच्चारण कर शयन करे। पढमं पोरिसिं सज्झायं, वीयं झाणं झियायई।
भजा का उपधान कर वाम पार्श्व से शयन करे। पैरों तइयाए निद्दमोक्खं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥
को कुक्कुटी की तरह पहले आकाश में फैलाये। यदि ऐसा (उ २६।१८)
करने में समर्थ न हो तो भूमि का प्रमार्जन करके भूमि पर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान,
स्थापित करे । यदि पून: पैरों का संकोच करना हो तो तीसरे में नींद और चौथे में पूनः स्वाध्याय करे ।
ऊरुसन्धि का प्रमार्जन करे। स्वाध्याय-क्रम
अजयं सयमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसई । सब्वेवि पढमजामे दोन्नि उ वसभा उ आइमा जामा । बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।। तइओ होइ गुरूणं चउत्थओ होइ सम्वेसि ।।
(द ४। गाथा ४) (ओनि ६६०) आउंटण-पसारणादिसू पडिलेहणपमज्जण अकरितस्स
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org