________________
विनीत शिष्य की उपलब्धियां
जो व्यवहार धर्म से अर्जित हुआ है, जिसका तत्त्वज्ञ आचार्यों ने सदा आचरण किया है, उस व्यवहार का आचरण करता हुआ मुनि कहीं भी गर्हा को प्राप्त नहीं होता ।
अमोहं वयण कुज्जा, आयरियस्स महप्पणो । तं परिगिज्भ वायाए, कम्मुणा उववायए ।।
(द ८/३३) मुनि महान् आत्मा आचार्य के वचन को सफल करे । ( आचार्य जो कहे ) उसे वाणी से ग्रहण कर कर्म से उसका आचरण करे ।
नीयं सेज्जं गइं ठाणं, नीयं च आसणाणि य । नीयं च पाए वंदेज्जा, नीयं कुज्जा य अंजलि ॥ (द ९/२०१७ )
शिष्य ( आचार्य से ) नीची शय्या करे, नीची गति करे, नीचे खड़ा रहे नीचा आसन करे, नीचा होकर आचार्य के चरणों में वन्दना करे और नीचा होकर अञ्जलि करे- हाथ जोड़े ।
४. आचार्य के समीप बैठने की विधि
न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्ठओ । न जुंजे ऊरुणा ऊरुं, सयणे नो पडिस्सुणे ॥ नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिंड व संजए । पाए पसारिए वावि, न चिट्ठे गुरुणंतिए ।
( उ १११८, १९) आचार्य के बराबर न बैठे, आगे और पीछे भी न बैठे, उनके ऊरु से अपना ऊरु सटाकर न बैठे, बिछौने पर बैठा हुआ ही उनके आदेश को स्वीकार न करे । किन्तु उसे छोड़कर स्वीकार करे ।
संयमी मुनि गुरु के समीप पालथी लगाकर ( घुटनों और जंघाओं के चारों ओर वस्त्र बांधकर ) न बैठे । पक्षपिण्ड कर (दोनों हाथों से घुटनों और साथल को बांधकर ) तथा पैरों को फैलाकर न बैठे ।
आसणे उवचिट्ठेज्जा, अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुष्ट्ठाई निरुट्ठाई, निसीएज्जप्पकुक्कुए ||
Jain Education International
६११
५. आचार्य के साथ वार्तालाप की विधि
रिएहि वाहतो, सिणीओ न कयाइ वि । पसायपेही नियागट्ठी, उवचिट्ठे गुरुं सया || आलवंते लवंते वा न निसीएज्ज कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥ आसणगओ न पुच्छेज्जा, नेव सेज्जा-गओ कया 1 आगमुक्कुडओ संतो, पुच्छेज्जा पंजलीउडो ॥ ( उ ११२०-२२ ) आचार्यों के द्वारा बुलाए जाने पर किसी भी अवस्था में मौन न रहे। गुरु के प्रसाद को चाहने वाला मोक्षाभिलाषी शिष्य सदा उनके समीप रहे ।
स देवगंधव्वमणुस्स पुइए ( उ १।३० ) जो के आसन से नीचा हो, अकंपमान हो और सिद्धे वा हवइ सासए, गुरु स्थिर हो, (जिसके पाये धरती पर टिके हुए हों) वैसे आसन पर बैठे, प्रयोजन होने पर भी बार-बार न उठे और प्रयोजन के बिना तो उठे ही नहीं, बैठे तब स्थिर एवं शांत होकर बैठे, हाथ-पैर आदि से चपलता न करे ।
शिष्य
धृतिमान् शिष्य गुरु के साथ आलाप करते और प्रश्न पूछते समय कभी भी बैठा न रहे, किंतु वे जो आदेश दें, उसे आसन को छोड़कर संयत में यत्नपूर्वक स्वीकार करे ।
मुद्रा
आसन पर अथवा शय्या पर बैठा-बैठा कभी भी गुरु से कोई बात न पूछे। उनके समीप आकर ऊकडू बैठ, हाथ जोड़कर पूछे ।
अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अंतरा । पिट्ठिमंसं न खाएज्जा, मायामोसं विवज्जए । (द ८४६ ) बिना पूछे न बोले, बीच में न बोले, पृष्ठमांसचुगली न खाए और कपटपूर्ण असत्य का वर्जन करे । ६. विनीत शिष्य की उपलब्धियां
वित्ते अचोइए निच्चं, खिप्पं हवइ सुचोइए । जहोवइट्ठ सुकयं किच्चाई कुव्वई सया || नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए । हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा || पुज्जा जस्स पसीयंति, संबुद्धा पुण्वसंथुया । पन्ना लाभइस्संति, विलं अट्टियं सुयं ।। पुज्जत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्ठई कम्मसंपया । तवोसमायारिसमा हिसंवडे, महज्जुई पंचवयाइं पालिया ॥
चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । देवे वा अप्पर महिड्दिए || (38188-85) जो विनय से प्रख्यात होता है वह सदा बिना प्रेरणा दिए ही कार्य करने में प्रवृत्त होता है । वह अच्छे प्रेरक गुरु की प्रेरणा पाकर तुरन्त ही उनके उपदेशानुसार
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org