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अज्ञान
ज्ञान अज्ञान क्यों?
अचक्षुदर्शन–(द्र. दर्शन)
अज्ञान-१. ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होने अचित्त महास्कन्ध-केवली-समुद्घात के पांचवें
वाला ज्ञान का अभाव । २. ज्ञानावरणीय समय में समूचे लोक में व्याप्त कर्म के क्षयोपशम से होने वाला होने वाला कर्मपुद्गलस्कंध । मिथ्यात्वी का ज्ञान। (द्र. केवलीसमुद्घात)
१. अज्ञान आवरण है स्वाभाविक रू
२. ज्ञान भी अज्ञान में व्याप्त होने वाला पुद्गल
* मिथ्यादष्टि : प्रथम गुणस्थान (द्र. गुणस्थान) स्कन्ध । (द्र. वर्गणा)
३. ज्ञान अज्ञान क्यों ? अचेल--(द्र. शासनभेद)
४. अज्ञान भी क्षयोपशमभाव अजितनाथ-वर्तमान चौबीसी के दूसरे तीर्थंकर ।
५. मति-श्रुत : ज्ञान, अज्ञान दोनों (द्र. तीर्थंकर)
६. विभंगज्ञान अजीव-अचेतन द्रव्य ।
७. अज्ञान तीन ही क्यों ? अजीवदव्वा''दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---अरूवि- * अनुत्तर देवों में अज्ञान नहीं (द. देव) अजीवदवा य रूविअजीवदव्वा य। (अनु ४४२) अजीवद्रव्य के दो प्रकार हैं-अरूपी अजीवद्रव्य
१. अज्ञान आवरण है और रूपी अजीवद्रव्य ।
न हि स्वयं स्वच्छस्फटिकवदति निर्मलस्य प्रकाश
रूपस्यात्मनोऽप्रकाशकत्व किन्तु ज्ञानावृतिवशत एव । अरूपी अजीवद्रव्य के प्रकार
उक्तं हि-- अरूविअजीवदव्वादसविहा पण्णत्ता, तं जहा ..... तत्र ज्ञानावरणीयं नाम कर्म भवति येनास्य । धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स
तत्पञ्चविधं ज्ञानमावृतं रविरिव मेघैस्तथा । पएसा, अधम्मत्थिकाए अधम्म त्थिकायस्स देसा अधम्म
(उशावृ प १२६) त्थिकायस्स पएसा, आगासस्थिकाए आगासत्थिकायस्स
आत्मा स्वच्छ स्फटिक मणि की तरह अत्यंत निर्मल देसा आगासत्थिकायस्स पएसा, श्रद्धासमए । (अनु ४४३) और प्रकाश स्वभाव वाली है। ज्ञान के आवरण के अरूपी अजीवद्रव्य के दस प्रकार हैं-धर्मास्ति
कारण आत्मा अज्ञान का अनुभव करती है।
ज्ञानावरणीय कर्म के द्वारा मति आदि पांच ज्ञान काय, धर्मास्तिकाय के देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश:
वैसे ही आवृत हैं, जैसे बादलों से सूर्य । अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय के देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश: आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय के देश. २. ज्ञान भा अज्ञान आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय-काल ।
जह दुव्वयणमवयणं कुच्छियसील असीलमसईए । (द्र. अस्तिकाय) भण्णइ तह नाणं पि ह मिच्छडिट्रिस्स अण्णाणं ।।
(विभा ५२०) रूपी अजीवद्रव्य के प्रकार
जैसे दुर्वचन को अवचन और असती के कुत्सित रूविअजीवदव्वा'चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा - शील को अशील कहा जाता है, वैसे ही मिथ्यादष्टि के खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला ।
ज्ञान को भी अज्ञान कहा जाता है।
(अनु ४४४) ३. ज्ञान अज्ञान क्यों? रूपी अजीवद्रव्य के चार प्रकार हैं-स्कन्ध, सदसदविसेसणाओ भवहेउजदिच्छिओवलंभाओ। स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल ।
नाणफलाभावाओ मिच्छहिट्रिस्स अण्णाणं ॥ (द्र. पुद्गल)
(विभा ११५) मिथ्यादृष्टि का ज्ञान अज्ञान कहलाता है। उसके चार हेतु हैं -
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