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शासन-भेद
सचेल और अचेल
शरीरपर्याप्ति-शरीर के योग्य पुद्गलों का ग्रहण कुमारश्रमण केशी ने पूछा---गौतम ! हमारा एक
परिणमन और उत्सर्ग करने वाली ही उद्देश्य है, फिर इस भेद का क्या कारण है ? धर्म
पौद्गलिक शक्ति । (द्र. पर्याप्ति) के इन दो प्रकारों में तुम्हें संदेह कैसे नहीं होता ? शान्ति-सोलहवें तीर्थंकर। (द्र. तीर्थंकर) गौतम ने कहा-पहले तीर्थंकर के साधु ऋजु और
जड़ होते हैं। अन्तिम तीर्थंकर के साधु वक्र और जड़ शासन-भेद-अर्हत् पार्श्व और श्रमण महावीर के होते हैं । बीच के तीर्थंकरों के साधु ऋजु और प्राज्ञ होते
शासन में होने वाला आचार-भेद और हैं, इसलिए धर्म के दो प्रकार किए हैं। व्यवस्था-भेद।
पूर्ववर्ती साधुओं के लिए मुनि के आचार को यथावत्
ग्रहण कर लेना कठिन है। चरमवर्ती साधुओं के लिए १. चातुर्याम और पंचयाम
मुनि के आचार का पालन कठिन है । मध्यवर्ती साधु उसे ० भेव का कारण
यथावत् ग्रहण कर लेते हैं और उसका पालन भी वे • रात्रिभोजनविरमण और शासनभेद
सरलता से कर लेते हैं। (द्र. रात्रिभोजनविरमण) २. सामायिक और छेदोपस्थापनीय
२. सामायिक और छेदोपस्थापनोय ३. प्रतिक्रमण का भेद
बावीसं तित्थयरा सामाइयसंजमं उवइसति । ४. सचेल और अचेल
छओवट्ठावणयं पुण वयति उसभो य वीरो य । ५. वेश के प्रति दृष्टिकोण
(आवनि १२४६) ६. अचेलता के परिणाम ७. परिहारविशुद्धि चारित्र
बाईस तीर्थंकर सामायिक चारित्र का व्यवस्थापन
करते हैं । अर्हत् ऋषभ तथा महावीर छेदोपस्थानीय की १. चातुर्याम और पंचयाम
भी व्यवस्था करते हैं। चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुणी ।।।
३. प्रतिक्रमण का भेद
(उ २३११२) सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । धर्म के दो प्रकार हैं
मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ।। १. चातुर्याम धर्म २. पंचयाम धर्म ।
(आवनि १२४४) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, बाह्य-आदान-विरति-इस प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय में प्रतिक्रमण चातुर्याम धर्म का प्रतिपादन अर्हत् पार्श्व ने किया है। करना अनिवार्य है-उनका धर्म सप्रतिक्रमण धर्म है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह- इस पंच शेष तीथंकरों के शासन में कारण (अतिचार आदि) होने शिक्षात्मक धर्म का प्रतिपादन भगवान महावीर ने किया पर प्रतिक्रमण किया जाता है।
भेद का कारण
एगकज्जपवन्नाणं विसेसे कि न कारणं ?। धम्मे दुविहे मेहावि, कहं विप्पच्चओ न ते ?|| पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उज्जुपन्ना य, तेण धम्मे दुहा कए । पुरिमाणं दुव्विसोझो उ, चरिमाण दुरणपालओ। कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसोझो सुपालओ।
(उ २३।२४,२६,२७)
४. सचेल और अचेल
अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महाजसा ।।
(उ २३।२९) ___ महामुनि वर्धमान ने जो आचार-धर्म की व्यवस्था की है वह अचेलक है और महान् यशस्वी पार्श्व ने जो यह आचार-धर्म की व्यवस्था की है वह सान्तर (अन्तर् वस्त्र) तथा उत्तर (उत्तरीय वस्त्र) है ।
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