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________________ वन्दना का विवेक ५७४ वन्दना के दोष ९. मनसा प्रदुष्ट-मन से दूसरे को हीन मानकर २. किसी ने देखा या किसी ने नहीं देखा, इस असूया से वन्दन करना अथवा 'इसको मैं एकान्त प्रकार शीघ्रता से वन्दन करना। में वन्दन करूंगा' ऐसा सोचना ।। २४. शृंग-१. मस्तक के एक पार्श्व से वन्दन करना। १०. वेदिकाबद्ध -१. घटनों पर हाथ रखकर वंदन २. अनेक साधुओं के साथ जैसे-तैसे वन्दन करना। करना। २. घटनों के नीचे हाथ रखकर वंदन २५. राजकर-वन्दना को ऋण मानकर, वेठ मानकर करना। ३. घुटनों के पार्श्व में हाथ रखकर वंदन वन्दन करना, निर्जरा मानकर नहीं। करना। ४. गोद में हाथों को रखकर वंदन करना। २६. मोचन-वंदना किए बिना मोक्ष नहीं मिलता५. एक घटने को दोनों हाथों के बीच रखकर वंदन यह मानकर वन्दन करना। करना। २७. आश्लिष्ट-अनाश्लिष्ट-इसके चार विकल्प हैं११. भय-संघ, कुल, गण, गच्छ तथा क्षेत्र से मुझे कोई १. हाथों से रजोहरण पकड़ हाथों को शिर पर निकाल न दे-इस भय से वन्दन करना। लगाना। १२. भजत् --यह मेरा भक्त है, इस दृष्टि से वन्दन २. केवल रजोहरण पकड़ना, शिर पर नहीं लगाना। करना। ३. हाथों को शिर पर लगाना, रजोहरण को नहीं। १३. मैत्री-यह मेरा मित्र है अथवा मैं इसके साथ ४. न रजोहरण को हाथों से पकड़ना, न शिर पर मित्रता करूं-यह सोचकर वन्दन करना । लगाना । पहला भंग प्रशस्त है शेष अप्रशस्त । १४. गौरव -गौरव के लिए वन्दन करना-यह सोचना २८. न्यून -व्यंजन और 'आवश्यकों' से न्यून । ___कि ये मुझे जानें कि मैं सामाचारी कुशल हूं। २९. उत्तरचूडा वंदन कर 'मस्तक से वंदना करता हूं' इस प्रकार उच्च स्वर से बोलना। १५. कारण -यह मुझे सूत्र, अर्थ, वस्त्र, पुस्तक देगा ---- इस प्रयोजनवश वंदन करना । ३०. मूक-आलापकों का अनुच्चारण करते हुए वंदन करना। १६. स्तन्य-१. अपने आपको गुप्त रखकर चोर की भांति वन्दन करना। २. यदि देखता है तो वन्दन ३१. ढड्ढर-उच्च स्वर से आलापकों को बोलते हुए करता है, अंध- कार के कारण नहीं देखता है तो वंदन करना। वन्दन नहीं करता। ३२. चुडली--किनारे से रजोहरण को पकड़कर, १७. प्रत्यनीक-गुरुओं को संज्ञाभूमि में जाते समय या ___ अलात की भांति घूमाते हुए वंदन करना । अथवा आहार करते समय वंदन करना । हाथ को लंबा पसारकर वंदन करना अथवा हाथों १८. हष्ट-क्रोधावेश में वंदन करना। को घमाते हए 'सवको वंदना करता हं' कहते हए १९. तजित-१. तुम पत्थर की मूर्ति की भांति न प्रसन्न वंदन करना। होते हो और न क्रुद्ध होते हो- इस प्रकार तर्जना है. वन्दना का विवेक करते हुए वन्दन करना। २. अंगुली से तर्जना करते वक्खित्तपराहुत्ते अ पमत्ते मा कया हु वंदिज्जा । हुए वन्दन करना। आहारं च करितो नीहारं वा जइ करेइ॥ २०. शठ-१. शठता से वन्दन करना। २. रोगी होने पसंते आसणत्थे य, उवसंते उवट्ठिए । का बहाना कर सम्यक् वन्दन न करना । अणुन्नवित्तु मेहावी, किइकम्मं पउंजए । २१. हीलित-तिरस्कार करते हुए वन्दन करना। (आवनि ११९८, ११९९) २२. पलिकंचित-वन्दना करते हए विकथा करना। मुनि पीठ पीछे से, क्लांत और अनुपशांत अवस्था में २३. दृष्टादृष्ट-१. आचार्य आदि के न देखने अथवा तथा आहार-नीहार के समय वन्दना न करे। . अंधकार का व्यवधान होने पर वन्दन करना। मेधावी मुनि अनुज्ञा प्राप्त कर कृतिकर्म का प्रयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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