________________
भाषा
४९४
भाषासमिति
१२. अव्याकृत-अति गम्भीरतायुक्त बोलना, जो कि नहीं। भाषा के द्रव्य वज्र संस्थान से संस्थित और वर्णसमझ में आना कठिन हो जाए।
गंध-रस-स्पर्शयुक्त होते हैं। इनका प्रभव (उद्भव) शरीर ११. श्रुतभावभाषा
से होता है। इनका खंड, प्रतर आदि पांच प्रकार से भेद
होता है। सुतधम्मे पुण तिविधा सच्चा मोसा असच्चमोसा य ।
एकेन्द्रिय जीव और सिद्ध अभाषक होते हैं, शेष सम्माद्दिट्टी तु सुते उवयुत्तो भासए सच्चं ।।
जीव भाषक और अभाषक-दोनों प्रकार के होते हैं। सम्मद्दिट्ठी तु सुतम्मि अणुवयुत्तो अहेतुगं चेव ।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव व्यवहार जं भासति सा मोसा मिच्छाहिटी वि य तहेव ॥
भाषा बोलते हैं, शेष जीव सत्य आदि चारों प्रकार की भवति तु असच्चमोसा सुतम्मि उवरिल्लए तिणाणम्मि ।
भाषा बोल सकते हैं। सत्यभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों जं उवउत्तो भासति ........... ||
का निसर्ग भी सत्य भाषा के रूप में ही होता है। देखें(दनि १८१-१८३)
पन्नवणापद ११)। श्रुतभावभाषा के.तीन प्रकार हैं१. सत्य-श्रुत में उपयुक्त सम्यग्दृष्टि की भाषा ।
भाषापर्याप्ति-भाषा के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, २. मृषा-श्रुत में अनुपयुक्त सम्यग्दृष्टि की अहेतुक
परिणमन और उत्सर्ग करने वाली ___ भाषा अथवा मिथ्यादृष्टि की भाषा ।
पौद्गलिक शक्ति । (द्र. पर्याप्ति) ३. असत्यमृषा (व्यवहार)-अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी भाषासमिति-भाषा का सम्यक प्रयोग।
और केवलज्ञानी के वचनों की तरह श्रुतज्ञानोपयुक्त के द्वारा दी जाने वाली वाचना आदि ।
१. भाषासमिति की परिभाषा
२. भाषा के प्रकार १२. चारित्रभावभाषा
३. मुनि के लिए विहित भाषा पढम-बितिया चरित्ते भासा दो चेव होंति णायव्वा । ४. मुनि के लिए निषिद्ध भाषा सचरित्तस्स तु भासा सच्चा, मोसा तु इयरस्स ॥ ५. भाषा सम्बन्धी विधि-निषेध
(दनि १८४) ० संबोधन चारित्रभावभाषा के दो प्रकार हैं --
० क्रय-विक्रय १. सत्य-वह भाषा. जिससे चारित्र शुद्ध हो अथवा ० प्रकृति चारित्र की प्राप्ति हो।
० वनस्पति २. मृषा-वह भाषा, जिससे चारित्र शुद्ध न हो अथवा ० निश्चयकारिणी चारित्र की प्राप्ति न हो।
६. भाषा के आठ वर्जनीय स्थान १३. भाषा के दो प्रकार
७. भाषा चपल के प्रकार
८. वाक्यशुद्धि को निष्पत्ति सव्वा वि य सा दुविधा पज्जत्ता खलु तहा अपज्जत्ता।
* भाषा : समिति का एक भेद (द्र. समिति) पढमा दो पज्जता उवरिल्ला दो अपज्जत्ता॥
* सत्य आदि चार भाषाओं के प्रकार (द्र. भाषा) अत्थावधारणसमत्था पज्जत्तिगा। तबिवक्खिया अपज्जत्तिगा।
(दनि १८० अचू पृ १६१) १. भाषासमिति की परिभाषा _ भाषा के दो प्रकार हैं
भाषासमिति म हितमितासन्दिग्धार्थभाषणम् । १. पर्याप्ता-जो अर्थ के अवधारण में समर्थ है।
(आवहावृ २ पृ८४) जैसे -सत्य और मृषाभाषा।
बोलते समय हित, परिमित और असंदिग्ध वाक्यों २. अपर्याप्ता-जो अर्थ के अवधारण में असमर्थ है। का प्रयोग करना भाषा समिति है। जैसे--मिश्र और व्यवहार भाषा।।
२. भाषा के प्रकार (जीव भाषाद्रव्य के अनंतप्रदेशी स्कन्धों को ग्रहण
सच्च सच्चामोसं, मोसं च असच्चमोसं च ॥ करता है, एक प्रदेशी यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों को
(आवनि ९)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org