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भाषा
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द्रव्यभावभाषा के प्रकार
८. अवगाहना वर्गणा
अवगाहना एकैकस्य भाषाद्र व्यस्कन्धस्याऽऽधारभूताऽसंख्येयप्रदेशात्मकक्षेत्रविभागरूपा, तासामवगाहनानाम नन्नभाषाद्रव्यस्कन्धाश्रयभूतक्षेत्रविशेषरूपाणां वर्गणा समुदायस्ता अवगाहनावर्गणाः। (विभामव १ पृ१८६) __ भाषा द्रव्य के एक-एक स्कन्ध के आधारभूत असंख्येय प्रदेशात्मक क्षेत्र का नाम है --अवगाहना । वैसी अनन्त भाषा द्रव्य के स्कन्धों की आधारभूत अवगाहनाओं के समुदाय का नाम है-अवगाहनावर्गणा । ६. भावभाषा के प्रकार
...भावे दव्वे य सुते चरित्त... ॥ (दनि १७३)
भावभाषा के तीन प्रकार हैं - द्रव्य, श्रुत और चारित्र । १०. द्रव्यभावभाषा के प्रकार
आराहणी यु दव्वे सच्चा मोसा विराहणी होति । सच्चामोसा मीसा असच्चमोसा य पडिसेधो ।।
(दनि १७४) द्रव्यभावभाषा के चार प्रकार हैं१. आराधनी (सत्य)-यथार्थ का प्रतिपादक वचन । २. विराधनी (मृषा)-अयथार्थ का प्रतिपादक वचन । ३. आराधनी-विराधनी (सत्यमृषा)-यथार्थ और
अयथार्थ का प्रतिपादक वचन ।। ४. आराधन-विराधन विरहित (असत्यमृषा)-विधि
निषेध (व्यवहार) का प्रतिपादक वचन । सत्यभाषा के प्रकार
जणवत समुति ट्ठवणा णामे रूवे पडुच्चसच्चे य । ववहार भाव जोगे दसमे ओवम्मसच्चे य॥
(दनि १७५) सत्यभाषा के दस प्रकार हैं - . जनपद सत्य --जिस देश में जैसी भाषा बोलने में काम आती है, उस देश में वह जनपद सत्य है। जैसे -- 'चोखा' शब्द मारवाड़ में 'अच्छे' के अर्थ में
और मेवाड़ में 'चावल' के अर्थ में व्यवहृत है। २. सम्मत-सत्य ... प्राचीन विद्वानों ने जिस शब्द का जो
अर्थ मान लिया है, उस अर्थ में वह शब्द सम्मत सत्य है । कमल और मेंढक दोनों ही पंक (कीचड़) में उत्पन्न होते हैं तो भी पंकज कमल को ही कहते हैं, मेंढक को नहीं।
३. स्थापना-सत्य-किसी भी वस्तु की स्थापना करके
उसे उस नाम से कहना । जैसे- शतरंज के मोहरों
को हाथी, घोड़ा, वजीर आदि कहना । ४ नाम-सत्य-गुण-विहीन होने पर भी किसी व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष का वैसा नाम रखकर, उस नाम से पुकारना। जैसे-धनहीन को लक्ष्मीपति कहना। ५. रूप-सत्य--किसी रूप-विशेष को धारण करने पर
उस रूप-विशेष से पुकारना । जैसे साधु का वेश
देखकर किसी व्यक्ति को साधु कहना। ६. प्रतीति-सत्य (अपेक्षा सत्य)-एक वस्तु की अपेक्षा
से दूसरी वस्तु को छोटी-बड़ी, हल्की-भारी आदि कहना। अनामिका अंगूली को कनिष्ठा की अपेक्षा
से बड़ी और मध्यमा की अपेक्षा से छोटी कहना। ७. व्यवहार-सत्य-जो बात व्यवहार में बोली जाए, वह व्यवहार सत्य है । जैसे पहुंचती तो है गाड़ी
और कहते हैं लाडनूं आ गया। ८ भाव-सत्य-किसी वस्तु में जो भाव मुख्य रूप से मिलता है, उसे लेकर उसका प्रतिपादन करना । जैसे-तोते में कई रंग होते हैं, फिर भी उसे हरा कहना। ९. योग-सत्य-योग अर्थात वस्तु के सम्बन्ध से किसी व्यक्ति-विशेष को उस नाम से पुकारना । जैसे
छत्रधारी को छत्री कहना। १०. उपमा सत्य-किसी एक बात में समानता होने पर
एक वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना करना और उसे उस नाम से पुकारना । जैसे---आखें कमल के समान विकसित हैं। मृषाभाषा के प्रकार
कोधे माणे माया लोभे पेज्जे तहेव दोसे य । हास भये अक्खाइय उवधाते णिस्सिता दसमा ।
(दनि १७६) मृषाभाषा के दस प्रकार हैं१. क्रोधनिश्रित-क्रोध में असत्य बोलना। २. माननिश्रित-अहंकार के आवेश में बोलना। ३. मायानिश्रित-कपट सहित बोलना, दूसरे को
धोखा देने के लिए बोलना। ४. लोभनिश्रित-लोभ में आकर बोलना। ५. रागनिश्रित - प्रेम, मोह के वशीभूत होकर बोलना।
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