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बुद्धि
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ब्रह्मचर्य
एक बार उसने कुछ सुगन्धित पदार्थों से युक्त मोदक उपलब्धि मानते हैं। अर्हत-प्रवचन का परिज्ञान ही अतिमात्रा में खा लिए। उसे अजीर्ण हो गया और उसके वस्तुतः श्रुतज्ञान है। मुंह से दुर्गन्ध आने लगी। राजकुमार सोचने लगा-- बोधिदर्लभ भावना बोधि (सम्यक्त्व या सही यह शरीर कैसा अशुचिमय है। सुन्दर और मनोहर
दृष्टिकोण) की दुर्लभता का वस्तुएं इस शरीर के संयोग से अशचि बन जाती हैं।
बार-बार चिन्तन करना । इस प्रकार अशौच अनुप्रेक्षा से उसके अध्यवसाय
(द्र. अनुप्रेक्षा) शुभ-शुभतर होते गए और उसने एक मुहूर्त्तमात्र में केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। यह पारिणामिकी - अवस्था
ब्रह्मचर्य-इन्द्रिय-संयम, मैथुन-विरति, आत्मके साथ-साथ परिपक्व होने वाली बुद्धि का उदाहरण है।
रमण। (औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियों के शेष सम्पूर्ण
१. ब्रह्मचर्य का निर्वचन उदाहरणों के लिए देखें-नन्दीमवृ प १४४-१६७;
२. ब्रह्मचर्य का अर्थ आवहावृ १ पृ २७७-२८२)
३. ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार ७. बुद्धि के गुण : श्रुतग्रहण की प्रक्रिया
४. अब्रह्मचर्य के प्रकार सुस्सूसइ उ सोउं सुयमिच्छइ सविणओ गुरुमहाओ । ५. ब्रह्मचर्य-समाधि के स्थान पडिपुच्छइ तं गहियं पुणो वि नीसंकियं कुणइ ।।। ६. ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थानों की उपेक्षा के परिणाम सुणइ तदत्थहीउं गहणे हावायधारणा तस्स ।
७. ब्रह्मचर्य की साधना के विघ्न सम्म कुणइ सुयाणं अन्नपि तओ सुयं लहइ ।।
* ब्रह्मचर्य : एक महाव्रत (द्र. महाव्रत) (विभा ५६२, ५६३)
८. ब्रह्मचर्य महाव्रत का स्वरूप १. शुश्रूषा-श्रुत को गुरुमुख से सविनय सुनने की
९. ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावना इच्छा करना।
* ब्रह्मचर्य : श्रावक का एक व्रत (द्र. श्रावक) २. प्रतिपृच्छा-गृहीत श्रुत में शंकित अथवा विस्मृत
१०. ब्रह्मचर्य के परिणाम शब्दों को पुनः पुनः पूछना।
* कामभोग (अब्रह्मचर्य) के परिणाम ३. श्रवण-श्रुत के अर्थ को सुनना।
(द्र. कामभोग) ४. ग्रहण-सूत्र और अर्थ का अध्ययन कर श्रुत का सम्यक् ग्रहण करना।
१. ब्रह्मचर्य का निर्वचन ५. ईहा-सूत्र और अर्थपदों की मार्गणा-गवेषणा
बहति बंहितो वा अनेनेति ब्रह्म। (उच पृ २०७) करना।
__ जो संयम का बृहण/पोषण करता है वह ब्रह्म/ ६. अवाय-'यह ऐसा ही है, अन्य प्रकार से नहीं
ब्रह्मचर्य है। है'-इस प्रकार निश्चय करना । ७. धारण-परिवर्तना और अनूप्रेक्षा के द्वारा उसका २. ब्रह्मचय का अथ स्थिरीकरण करना।
__बंभे-समणधम्मो पवयणमायाओ। ८. करण-श्रुत में प्रतिपादित अनुष्ठान का सम्यक
(आव २ पृ १३७) आचरण करना।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है श्रमणधर्म और समिति-गुप्ति आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहि अट्ठहिं दिळें । रूप प्रवचनमाता। बिंति सूयनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा ॥
अब्रह्म-वस्त्यनियमलक्षणं विपरीतं ब्रह्म। (नन्दी १२७४२)
(आवहाव २ पृ १८१) बद्धि के आठ गुण आगमशास्त्र के अर्थग्रहण में अब्रह्मचर्य का अर्थ है-वस्ति असंयम । ब्रह्मचर्य का कारणभत/हेतुभूत हैं। जो पूर्वो के पारगामी और धीर अर्थ है-वस्तिसंयम, मैथनविरति । पुरुष हैं, वे इस आगम ज्ञान के ग्रहण को ही श्रतज्ञान की
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