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करकण्डु
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प्रत्येकबुद्ध
तव्यो, न दृष्टान्तेन, तत्र तस्य वस्तुतोऽसत्त्वात् ।
नमि और गान्धार में नग्गति-ये चारों राजेन्द्र (आवहाव २ पृ २४८) अपने-अपने पुत्रों को राज्य सौंप कर जिनशासन में प्रवसौधर्म आदि देवों की परिषद् हो तो प्रत्याख्यान का जित हुए और श्रमणधर्म में सदा यत्नशील रहे। केवल आगमपरक अर्थ ही प्रतिपादित करना चाहिये । वसभे अ इंदकेऊ वलए अंबे अ पुप्फिए बोही । वहां दृष्टांत से समझाने की अपेक्षा नहीं होती।।
करकंडु दुम्मुहस्सा नमिस्स गंधाररणो अ ।। प्रत्येकबुद्ध-किसी एक बाह्य निमित्त से प्रतिबुद्ध
पुप्फुत्तराउ चवणं पव्वज्जा होइ एगसमएणं ।
पत्तेयबुद्धकेवलि सिद्धि गया एगसमएणं । ने वाले।
(उनि २६५, २७०) बाह्यं वसभादिकारणमभिवीक्ष्य बुद्धा पत्तेयबुद्धा
करकंड बूढ़े बैल को देखकर, द्विमुख इन्द्रध्वज को एतेसि णियमा पत्तेयं विहारो जम्हा तम्हा ते देखकर, नमि एक चडी की नीरवता को देखकर तथा पत्तेयबुद्धा । जहा करकंडमादयो। किंच-पत्तेयबुद्धाणं नग्गति मंजरी विहीन आम्र-वृक्ष को देखकर प्रतिबुद्ध जहन्नेण दुविहो उक्कोसेण णवहिहो उवधी णियमा पाउ- हआ । रणवज्जो भवति । पत्तेयबुद्धाणं नियमा पुव्वाधीतं सुतं ये चारों प्रत्येकबुद्ध एक साथ, एक ही समय में भवति । जहन्नेण एक्कारसंगी उक्कोसेण भिन्नदसपुवी। देवलोक से च्यूत हए, एक साथ प्रवजित हुए, एक ही लिंग च देवया पयच्छति लिंगवज्जितो वा भवति ।
समय में बुद्ध हुए, एक ही समय में केवली बने और एक
(आवच १ पृ ७६) साथ सिद्ध हुए। प्रत्येकबुद्ध की पहचान के मुख्य चार बिन्दु हैं -- चार प्रत्येकबुद्ध : एक परिचय १. बोधि–प्रत्येकबुद्ध बाह्य निमित्तों से प्रतिबुद्ध होते
सेअं सुजायं सुविभत्तसिंगं, जो पासिया वसहं गुट्ठमज्झे । हैं और नियमत: प्रत्येक एकाकी विहार करते हैं।
रिद्धि अरिद्धि समुपेहिया णं, २. उपधि - इनके जघन्यत: दो प्रकार की उपधि होती
कलिंगरायावि समिक्ख धम्मं ।। है रजोहरण और मुखवस्त्रिका तथा उत्कृष्टतः
जो इंदकेउं समलंकियं तु, दट्टे पडतं पविलुप्पमाणं । नौ प्रकार की उपधि होती है- पात्र, पात्रबंध,
रिद्धि अरिद्धि समुपेहिआ णं, पात्रस्थापन, पात्रकेसरिका, पटल, रजस्त्राण,
पंचालरायावि समिक्खधम्म ॥ गोच्छग, रजोहरण और मुखवस्त्र । चोलपट्ट, मात्रक वडिढच हाणि च ससीव दळं, पूरावरेगं च महानईणं । और तीन कल्प-यह पांच प्रकार की उपधि इनके
अहो अणिच्चं अधुवं च नच्चा, नहीं होती । स्थविरकल्पी मुनि के चौदह प्रकार की
पंचालरायावि समिक्ख धम्म ।। उपधि होती है (द्र. उपधि)।।
बहुआणं सदयं सोच्चा, एगस्स य असहयं । ३. श्रुत-प्रत्येक बुद्ध के श्रुत नियमत: पूर्वअधीत होता वलयाण नमीराया निक्खंतो मिहिलाहियो ।
है जघन्यतः आचार आदि ग्यारह अंग, उत्कृष्टतः जो चूअरुक्खं तु मणाभिरामं, समंजरीपल्लवपुप्फचित्तं । भिन्न दस पूर्व।
रिद्धि अरिद्धि समुपेहिया णं, ४. लिंग-इन्हें देवता लिंग प्रदान करते हैं अथवा ये
गंधाररायावि समिक्ख धम्म । लिंगविहीन भी प्रव्रजित होते हैं।
(उनि २७१-२७५) चार प्रत्येकबुद्ध : अभिनिष्क्रमण का हेतु
१. करकण्डु करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो । कलिंग जनपद । चम्पा नगरी । वहा करकण्डु नाम नमी राया विदेहेसु, गंधारेसु य नग्गई। का राजा राज्य करता था । करकण्डु गो-प्रिय था । एक एए नरिंदवसभा, निक्खंता जिणसासणे । दिन वह गोकुल देखने गया । उसने एक कृशकाय बछड़े को पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं, सामण्णे पज्जुवट्टिया ॥ देखा । उसका मन दया से भर गया । उसने आज्ञा दी
(उ १८/४५, ४६) कि इस बछड़े को उसकी मां का सारा दूध पिलाया जाए कलिंग में करकण्ड, पांचाल में द्विमुख, विदेह में और जब यह बड़ा हो जाए तो दूसरी गायों का दूध भी
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