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प्रत्याख्यान के परिणाम
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प्रत्याख्यान
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किइकम्माइविहिन्न उवओगपरो अ असढभावो अ। फासियं नाम जदि सो कालो अभग्गपरिणामेण अंतं संविग्गथिरपइन्नो पच्चक्खावितओ भणिओ॥ णीयो भवति । फासियं नाम जं अंतरा न खंडेति असुद्धइत्थं पुण चउभंगो जाणगइअरंमि गोणिनाएणं । परिणामो वा अंतं नेति । ....""पुणो पूणो पडिसुद्धासुद्धा पढमंतिमा उ सेसेसु अ विभासा ।। जागरति तेण तं पालियं। सोभितं नाम जो भत्तपाणं
(आवनि १६१४-१६१६) आणेत्ता पुव्वं दाऊणं सेसं भुजति दायव्वपरिणामेण वा, जो प्रत्याख्यान-विधि के ज्ञाता हैं, मूलगूण, उत्तरगूण जदि पुण एक्कतो भुंजति ताहे न सोहियं भवति । पारियं तथा श्रद्धा आदि की शुद्धि से सम्पन्न हैं, वे गुरु नाम जदि पुन्नमेत्तए पच्चक्खाणे जेमेति, ताहे परं प्रत्याख्यान कराने वाले होते हैं।
नीतं णो तीरियं, तीरियं पुण जं पुन्नेऽवि मुहुत्तमेत्तं जो कृतिकर्म आदि विनयविधि में कुशल, उपयोग- अच्छति असणं निरंभति । किट्टियं जदि जेमणवेलाए परायण, शृद्ध भावधारायुक्त, मोक्ष के अभिलाषी और उक्कित्तेति, जहा मए अमुगं पच्चक्खायन्ति, तुण्हिक्कएणं दढप्रतिज्ञ हैं, वे शिष्य प्रत्याख्यान करने वाले होते हैं। भुंजतेणं ण कड्ढियं भवति, एवं सवेहिं आराहियं इनके चार विकल्प हैं
अणुपा लियं भवति । अनुपालियं नाम अनुस्मृत्यानुस्मृत्य १. जिसमें प्रत्याख्यान कराने वाला और प्रत्याख्यान तीर्थकरवचनं प्रत्याख्यानं पालयियव्वं । (आव २ पृ३१४) करने वाला-दोनों उपयोगयुक्त हैं, वह शुद्ध स्वीकृत प्रत्याख्यान के निर्वहन का क्रम इस प्रकार हैप्रत्याख्यान है।
० स्पृष्ट - अशुद्ध परिणामों का परिहार कर त्याग का २. जिसमें प्रत्याख्यान कराने वाला उपयोगयुक्त है, अखंड पालन करना। प्रत्याख्यान को विधियुक्त
प्रत्याख्यान करने वाला किसी प्रयोजनवश उस क्षण ग्रहण करना। उपयोगयुक्त नहीं है किन्तु बाद में उपयोगयुक्त हो . पालित-बार-बार उसके प्रति जागत होना। जाता है तो वह प्रत्याख्यान भी शुद्ध है।
० शोभित भक्तपान लाकर पहले गुरु आदि को देना, ३. जिसमें प्रत्याख्यान कराने वाला उपयोगशून्य और शेष बचने पर स्वयं उपभोग करना अथवा देने के प्रत्याख्यान करने वाला उपयोगयुक्त है, वह प्रत्याख्यान परिणाम से भक्तपान लाना। यदि अकेला ही खाता भी शुद्ध है।
है तो वह शोभित नहीं होता। ४. जिसमें प्रत्याख्यान कराने बाला और प्रत्याख्यान ० पारित-प्रत्याख्यान की अवधि पूर्ण होते ही भोजन करने वाला-दोनों उपयोगशून्य हैं, वह प्रत्याख्यान आदि कर लेना। अशुद्ध ही है।
. तीरित-प्रत्याख्यान की अवधि पूर्ण हो जाने पर इस प्रसंग में गौ का दृष्टांत मननीय है-यदि गायों
भी मुहर्त्तमात्र तक आहार का निरोध करना। का प्रमाण मालिक और ग्वाला-दोनों जानते हैं तो . कीर्तित-भोजन की वेला में—'मैने यह प्रत्याख्यान मूल्य चुकाने और ग्रहण करने में सुविधा होती है।
किया था, अब वह पूर्ण हो गया है'-इस प्रकार ११. प्रत्याख्येय
उच्चारण करता हुआ भोजन करे। मौन भाव से, दब्वे भावे य दुहा पच्चक्खाइव्वयं हवइ दुविहं ।
बिना कुछ कहे, यदि भोजन करता है तो वह दव्वंमि अ असणाई अन्नाणाई य भावंमि ॥
'कीर्तित' नहीं कहलाता । (आवनि १६१७)
__ . आराधित- इन सभी प्रकारों से पालन किया हआ प्रत्याख्येय वस्तु के दो प्रकार हैं
प्रत्याख्यान आराधित कहलाता है। द्रव्य–अशन आदि का प्रत्याख्यान ।
० अनुपालित-तीर्थंकर के वचनों का बार-बार भाव – अज्ञान आदि का प्रत्याख्यान ।
स्मरण कर प्रत्याख्यान का पालन करना। १२. प्रत्याख्यानपालन विधि
१३. प्रत्याख्यान के परिणाम फासियं पालियं चेव, सोहियं तीरियं तहा ।
पच्चक्खाणेणं आसवदाराइं निरुंभइ। (उ २९।१४) किट्टिअमाराहिलं चेव, एरिसयंमी पयइयव्वं ।।
पच्चक्खाणंमि कए आसवदाराइं हंति पिहियाई । (आवनि १५९३) आसववुच्छेएणं तण्हावुच्छेअणं होइ ।।
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