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कोटिसहित प्रत्याख्यान
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प्रत्याख्यान
महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरह । या अतपस्वी-जो भी समर्थ है, वह जाता है। यदि अन्य
(आव ६८) शिष्य नहीं है या उस विशिष्ट कार्य को सम्पादित करने दिवसचरिम में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इस में समर्थ नहीं है तो गुरु उस उपवासी (अभक्तार्थी) शिष्य चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान किया जाता है। इसके को ही भेजते हैं। गुरु का आज्ञावर्ती होने के कारण वह चार अपवाद हैं -
आहार करता हुआ भी उपवास से होने वाली निर्जरा का १. अनाभोग--अत्यंत विस्मृति होने पर ।
भागी बनता है क्योंकि वह आहार की अभिलाषा से मुक्त २. सहसाकार-सहसा मुंह में कुछ डाल लेने पर। ३. महत्तराकार-आचार्य के द्वारा आज्ञा देने पर। ४. अनागत आदि दस प्रत्याख्यान ४. सर्वसमाधिहेतु --अचानक किसी रोग के उभरने के
अणागयमइक्कत कोडियसहियं निअंटिअं चेव । कारण औषधि आदि दिए जाने पर ।
सागारमणागारं परिमाणकडं निरवसेसं ।। अभिग्रह
संकेय चेव अद्धाए पच्चक्खाणं तु दसविहं।" अभिग्गहं पच्चक्खाइ। चउव्विहंपि आहारं-असणं
(आवनि १५६४,१५६५) पाणं खाइमं साइम, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं प्रत्याख्यान के अन्य दस प्रकार ये हैंमहत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरह।
१. अनागत - भविष्य में करणीय तप को पहले करना।
(आव ६।९) २. अतिक्रान्त-वर्तमान में करणीय तप नहीं किया जा अभिग्रह में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-इस चतुर्विध सके, उसे भविष्य में करना। आहार का प्रत्याख्यान किया जाता है । इसके चार ३. कोटिसहित एक प्रत्याख्यान का अन्तिम दिन और अपवाद हैं --
दूसरे प्रत्याख्यान का प्रारम्भिक दिन हो, वह कोटि१. अनाभोग–अत्यन्त विस्मृत होने पर।
सहित प्रत्याख्यान है। २. सहसाकार-सहसा मुंह में कुछ डाल लेने पर। ४. नियन्त्रित-नीरोग या ग्लान अवस्था में भी 'मैं ३. महत्तराकार-आचार्य के द्वारा आज्ञा देने पर। अमुक प्रकार का तप अमुक-अमुक दिन अवश्य ४. सर्वसमाधिहेतु अचानक किसी रोग के उभरने
करूंगा'-इस प्रकार का प्रत्याख्यान करना। के कारण औषधि आदि दिए जाने पर।
५. साकार-अपवादसहित प्रत्याख्यान । महत्तर आकार
६. अनाकार-अपवादरहित प्रत्याख्यान । ___ महत्तरागारेहिं -महल्लपयोयणेहि, तेण अभत्तट्ठो।
७. परिमाणकृत-दत्ति, कवल, भिक्षा, गृह, द्रव्य आदि पच्चक्खातो ताथे आयरिएहिं भण्णति—अभूगं गाम
के परिमाण से युक्त प्रत्याख्यान । गंतव्वं, तेण निवेइयं जथा मम अज्ज अब्भत्तट्ठो, जति
८. निरवशेष -अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का ताव समत्थों करेतु य, ण तरति अण्णो भत्तट्ठिओ वा जो
सम्पूर्ण प्रत्याख्यान । तरति सो वच्चतु, णत्थि अण्णो तस्स वा कज्जस्स
९. संकेत–संकेत या चिह्न सहित किया जाने वाला असमत्थो ताथे तस्स चेव अभत्तट्रियस्स गुरू विसज्जयति,
प्रत्याख्यान । एरिसस्स तं जेमंतस्स अणभिलासस्स अभत्तद्वितणिज्जरा
१०. अध्वप्रत्याख्यान --मुहूर्त, पौरुषी आदि कालमान के जा सा से भवति गुरुणिओएण। (आवहा २ पृ २३५)
आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान । महत्तराकार का अर्थ है-महान प्रयोजन । कोई ५. कोटिसहित प्रत्याख्यान संघीय सेवाकार्य आदि विशेष प्रयोजन उपस्थित होने पर पदवणओ अ दिवसो पच्चक्खाणस्स निटवणओ: आचार्य शिष्य से कहते हैं-आज तुम्हें अमुक गांव जाना जहियं समिति दुन्निवि तं भन्नइ कोडिसहियं तु ॥ है । वह निवेदन करता है-गुरुदेव ! आज मेरे उपवास
(आवनि १५७०) है। इस निवेदन के पश्चात् यदि शिष्य समर्थ है तो अन्ये त्वाहः... आचाम्लमेकस्मिन दिने कृत्वा द्वितीये उपवास भी करता है और कार्य हेतु दूसरे गांव भी चला दिने च तपोऽन्तरमनुष्ठाय पुनस्तृतीयदिने आचाम्लमेव जाता है। यदि वह समर्थ नहीं है तो अन्य शिष्य तपस्वी कुर्वतः कोटीसहितमुच्यते।
ष्ठाय पुनस्तृतीदिन
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