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________________ प्राणायुप्रवाद पूर्व ४२५ पूर्व सकर्म-अकर्म जीवों के वीर्य का प्रवाद/कथन है। इसमें पगति-द्विति-अणुभाग-प्पदेसादिएहिं भेदेहि अण्णे हि य सत्तर लाख पद हैं। उत्तरुत्तरभेदेहिं जत्थ वणिज्जति तं कम्मप्पवाद, तस्स अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व वि पदपरिमाणं एगा पदकोडी असीति च पदसहस्साणि भवंति । चउत्थं अत्थिणत्थिप्पवादं, जं लोए जहा अत्थि जहा (नन्दीचू १७६) वा णत्थि, अहवा सितवादभिप्पादतो तदेवास्ति नास्ती कर्मप्रवाद आठवां पूर्व है। इसमें ज्ञानावरणीय त्येवं प्रवदतीति अत्थिणत्थिप्पवादं भणितं, तं पि आदि आठ कर्म, उनकी प्रकृति-स्थिति-अनुभाग-प्रदेश पदपरिमाणतो सद्रिं पदसतसहस्साणि । (नन्दीच प्र७५) तथा मूल-उत्तर प्रकृतियां वर्णित हैं। इसका पदपरिमाण चतुर्थ पूर्व है अस्तिनास्तिप्रवाद । यह स्याद्वाद की है र है-एक करोड़ अस्सी हजार पद । दृष्टि से लोक में अस्ति और नास्ति (जो जैसे है या जो प्रत्याख्यान पूर्व जैसे नहीं है) का कथन करता है। इसमें साठ लाख पद णवमं पच्चक्खाणं, तम्मि सव्वपच्चक्खाणसरूवं वणिज्जति ति अतो पच्चक्खाणप्पवादं, तस्स य ज्ञानप्रवाद पूर्व पदपरिमाणं चतुरासीति पदसतसहस्साणि भवंति ।। पंचमं णाणप्पवादं ति, तम्मि मतिणाणाइपंचकस्स (नन्दीचू पृ ७६) नौवां पूर्व है-प्रत्याख्यान । इसमें सब प्रकार के सप्रभेदं प्ररूवणा जम्हा कता तम्हा णाणप्पवाद, प्रत्याख्यानों का स्वरूप वर्णित है। इसका पदपरिमाण तम्मि पदपरिमाणं एका पदकोडी एकपदूणा ।। है-चौरासी लाख पद । (नन्दीचू पृ ७५) ज्ञानप्रवाद पांचवां पूर्व है। इसमें मतिज्ञान आदि पांच विद्यानुप्रवाद पूर्व ज्ञानों का भेद-प्रभेद सहित प्ररूपण किया गया है। दसम विज्जणुप्पवातं, तत्थ य अणेगे विज्जातिसया इसका पदपरिमाण है-एक कम एक करोड पद। वण्णिता, तस्स पदपरिमाणं एगा पदकोडी दस य पदसतसत्यप्रवाद पूर्व सहस्साणि । (नन्दीचू पृ ७६) दसवें विद्यानुप्रवादपूर्व में अनेक प्रकार की विद्याओं छटठं सच्चप्पवाद, सच्चं-संजमो सच्चवयण वा, का अतिशय/विशिष्ट विद्याओं का वर्णन है। इसका पदतं सच्चं जत्थ सभेदं सपडिवक्खं च वणिज्जति तं परिमाण है-एक करोड दस लाख पद ।। सच्चप्पवाद, तस्स पदपरिमाणं एगा पदकोडी छप्पदाधिया। (नन्दीचू पृ ७५,७६) ___ अवन्ध्य पूर्व छठा पूर्व है-सत्यप्रवाद । सत्य का अर्थ है संयम एकादसमं अवंझ ति, वंझ णाम णिप्फलं, ण वंझअथवा सत्य वचन । इसका विषय है-सत्य और असत्य मवंझ, सफलेत्यर्थः, सव्वे णाण-तव-संजमजोगा सफला के भेदों का वर्णन। इसका पदपरिमाण है--एक करोड़ वणिज्जति, अप्पसत्था य पमादादिया सव्वे असुभफला छह पद । वण्णिता, अतो अवंझं, तस्स वि पदपरिमाणं छव्वीसं पदआत्मप्रवाद पूर्व कोडीओ। __ (नन्दीचू पृ ७६) सत्तमं आयप्पवातं, आय त्ति -आत्मा सो णेगहा ग्यारहवें अवन्ध्य पूर्व में ज्ञान, तप व संयमयोगों की जत्थ णयदरिसणेहिं वणिज्जति तं आयप्पवादं. तस्स सफलता/सार्थकता तथा प्रमाद आदि अप्रशस्त योगों वि पदपरिमाणं छव्वीसं पदकोडीओ। (नन्दीच १७६) की असफलता/व्यर्थता वर्णित है। इसका पदपरिमाण __ आत्मप्रवाद सातवां पूर्व है। इसमें नाना नय- है छब्बीस करोड़ पद । दृष्टियों से आत्मा का निरूपण किया गया है। इसमें प्राणायुप्रवाद पूर्व छब्बीस करोड़ पद है। बारसमं पाणायु, तत्थ आ\-प्राणविधाणं सव्वं सभेदं कर्मप्रवाद पूर्व अण्णे य प्राणा वण्णिता, तस्स पदपरिमाणं एगा पदकोडी अट्टम कम्मप्पवादं, णाणावरणाइयं अटुविधं कम्मं छप्पण्णं च पदसतसहस्सा। (नन्दीचू पृ ७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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