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पुद्गल
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पुद्गल की स्थिति और अंतर
परमाणु
प्रकर्षेणान्त्यत्वात्प्रदेशान्तराभावतः क्वचिदप्यनुगत- जा सकता, उस (व्यावहारिक) परमाणु को सिद्धपुरुष रूपाभावलक्षणेन दिश्यते-प्राग्वदुपदिश्यत इति प्रदेशो- (केवली) प्रमाणों का आदि बतलाते हैं। निरंशो भागस्तत्प्रदेश: ।
(उशावृ प ३७२) (व्यावहारिक परमाणु तलवार आदि शास्त्रों के स्कन्ध का निविभाग भाग प्रदेश कहलाता है। वह द्वारा अच्छेद्य, अभेद्य, अग्नि के द्वारा अदाह्य, जल में स्कन्ध का अंतिम भाग होता है, उसमें प्रदेशान्तर का रहकर भी अनार्द्र और सडान से परे हैं। वर्तमान में अभाव होता है और वह वस्तु से संलग्न होता है । वैज्ञानिकों ने परमाणु को तोड़ा है। जैनदर्शन का अभि
मत है कि परमाणु अविभाज्य है, उसे तोड़ा नहीं जा
सकता। इन दोनों अवधारणाओं में विरोधाभास प्रतीत परमाणू दव्वतो एगदव्वं । खेत्ततो एगपदेसोगाढं । कालतो जहन्नेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं।।
होता है । इस विरोध में समन्वय का सूत्र खोजा जा सकता
है। सूक्ष्म अथवा नैश्चयिक परमाण निरवयव होने के
(आवचू १ पृ १०८) परमाणु द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य–एक संख्या
कारण अविभाज्य है, उसे तोड़ा नहीं जा सकता। किन्तु वाला, क्षेत्र की अपेक्षा एक प्रदेश में अवगाढ तथा काल
व्यावहारिक परमाणु सावयव है इसलिए उसे तोड़ना
___ संभव है। यहां सुतीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा छेदन-भेदन का की अपेक्षा जघन्य एक समय, उत्कृष्ट असंख्येय काल
निषेध किया गया है, यह तात्कालीन शस्त्रों की अपेक्षा वाला है।
किया गया है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने जिन सुतीक्ष्ण कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः ।
उपकरणों का निर्माण किया है, उनसे उसका भेदन भी एकरसवर्णगंधो द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ।।
हो सकता है।) __ (उशावृ प २४)
परमाणु का सप्रदेशत्व-अप्रदेशत्व भाव की अपेक्षा परमाणु एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो अविरुद्ध स्पर्श वाला होता है तथा अपने
दव्वओ परमाणू अपदेसो, सेसा सपदेसा। खेत्तओ कार्य रूप द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कंधों से एगपदसोगाढो अपदेसो सेसा सपदेसा। कालओ एकसमयजाना जाता है। वह अपने कार्यों का अन्तिम कारण,
ट्ठितिओ अपदेसो, सेसा सपदेसा। भावतो एगगुणकालओ सूक्ष्म और नित्य होता है।
अपदेसो, सेसा सपदेसा। अहवा वण्णगंधरसफासेहिं चउहा
सपदेसत्तं वा अपदेसत्तं वा। (आवचू २ पृ ४,५) ५. परमाणु के प्रकार
द्रव्य से-एक परमाणु अप्रदेश है, शेष सप्रदेश । परमाणू दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य वावहारिए क्षेत्र से -एक प्रदेशावगाढ परमाणु अप्रदेश है, शेष य।
(अनु ३९६) सब सप्रदेश। परमाण के दो प्रकार हैं -सूक्ष्म और व्यावहारिक । काल से-एक समय की स्थिति वाला परमाण व्यावहारिक परमाणु
अप्रदेश है, शेष सब सप्रदेश । ___ वावहारिए -अणंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं भाव से एक गुण काला परमाणु अप्रदेश, शेष सब समुदयसमितिसमागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले सप्रदेश ।
अथवा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के आधार पर परमाण निप्फज्जइ।..
के सप्रदेशत्व-अप्रदेशत्व के चार विकल्प बनते हैं। सत्येण सुतिखेण वि, छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का । तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आई पमाणाणं ॥ ६. पुद्गल की स्थिति और अंतर
(अनु ३९८) संतइं पप्प तेऽणाई, अपज्जवसिया वि य । अनन्त सूक्ष्म परमाणुपुद्गलों के समुदय, समिति और ठिइं पड़च्च साईया, सपज्जवसिया विय ।।
(उ ३६।१२) समागम से एक व्यावहारिक परमाणुपुद्गल निष्पन्न होता
स्कंध और परमाणु प्रवाह की अपेक्षा से अनादि सूतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन भेदन नहीं किया अनंत हैं तथा स्थिति (एक क्षेत्र में रहने) की अपेक्षा से
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