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आगम विषय कोश
अंगप्रविष्ट-गणधरों द्वारा रचित बारह अंग, भाव के यथार्थद्रष्टा अर्हतों ने जिन अर्थों की प्ररूपणा द्वादशांग, गणिपिटक ।
की, उन्हीं अर्थों को अर्हतों से साक्षात् प्राप्त कर परम
बुद्धिसम्पन्न तथा सर्वाक्षरसन्निपातलब्धि से युक्त गणधरों १. अंगप्रविष्ट की परिभाषा
ने सब प्राणियों के हित के लिए सूत्र रूप में उपनिबद्ध २. अंगप्रविष्ट के प्रकार
किया। यही आचार आदि द्वादशांग अंगप्रविष्ट कहलाता * अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य : श्रुतज्ञान के भेद
(द्र. श्रुतज्ञान) | २. अंगप्रविष्ट के प्रकार * अंगप्रविष्ट और अंगवाह्य की भेवरेखा।
अंगपविट्ठ दुवालसविहं पण्णत्तं, तं जहा-आयारो, (द्र. अंगबाह्य)
सूयगडो, ठाणं, समवाओ, वियाहपण्णत्ती, नायाधम्म३. ग्यारह अंगों का निर्वृहण
कहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणत्तरोववाइय* बारहवां अंग
(द्र. दृष्टिवाद)
दसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं, दिट्ठिवाओ। ४. अंगप्रविष्ट ही द्वादशांग
(नन्दी ८०) ५.द्वादशांग ही गणिपिटक
अंगप्रविष्ट बारह प्रकार का है६. द्वादशांग ही श्रुतज्ञान
१. आचार
७. उपासकदशा ७. द्वादशांग और श्रुतपुरुष
२. सूत्रकृत
८. अंतकृतदशा ८.द्वादशांग की शाश्वतता
३. स्थान
९. अनुत्तरोपपातिकदशा ९. द्वादशांग की पौरुषेयता
४. समवाय १०. प्रश्नव्याकरण * द्वादशांग के रचनाकार
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ११. विपाकश्रुत * रचना का प्रयोजन
६. ज्ञातधर्मकथा १२. दृष्टिवाद । १०.द्वादशांग के विषय
* द्वादशांग : लोकोत्तर आगम (द. आगम) | आचारांग * आगम-रचना का आधार, निरूपण शैली और आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय
(द्र. आगम) वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया११. द्वादशांग और आज्ञा की एकार्थकता
वित्तीओ आघविज्जति। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं १२. आज्ञा की विराधना-द्वादशांग की विराधना जहा-नाणायारे, सणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, १३. आराधना-विराधना के परिणाम
वीरियायारे।
आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, १. अंगप्रविष्ट की परिभाषा
संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, जे अरहंतेहि भगवंतेहिं अईयाणागयवट्टमाणदव्वखेत्त- संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। कालभावजथावत्थितदंसीहिं अत्था परूविया ते गणहरेहि से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीस परमबुद्धिसन्निवायगुणसंपण्णेहिं सयं चेव तित्थगरसगासाओ अभयणा, पंचासीई टेमणकाला नाही उवलभिऊणं सव्वसत्ताणं हितट्ठयाय सुतत्तेण उवणिबद्धा काला, अट्ठारसपयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, तं अंगपविठ्ठ, आयाराइ दुवालसविहं ।(आवच १ पृ८) अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता
अतीत, अनागत और वर्तमान के द्रव्य, क्षेत्र, काल, थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा
पाजन
भाषा
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