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द्रव्य परीषह : भाव परीषह
१६. दंश-मशक
१७. चर्या
१८. शय्या
१९. वध २०. रोग
२१. तृणस्पर्श
२२. जल्ल
वेदनीय
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५. परीषह और गुणस्थान
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बावीसं बायरसंपराए चउदस य सुहुमरागंमि । छउमत्थवीयराए चउदस इक्कारस जिणंमि ॥ ( उनि ७९ )
बाईस परीषह नौवें गुणस्थान (बादरसंपराय) तक हो सकते हैं। दसवें गुणस्थान में चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से होने वाले अरति आदि सात परीषह तथा दर्शन मोहनीय से उत्पन्न दर्शनपरीषह को छोड़कर शेष चौदह परीषह होते हैं । छद्मस्थ वीतराग अर्थात् ग्यारहवें - बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनि में भी ये ही चौदह परीषह हो सकते हैं । केवली में मात्र वेदनीय कर्म के उदय से होने वाले ग्यारह परीषह पाये जाते हैं ।
६. एक साथ कितने परोषह ?
जस्स चउद्दस तस्स उक्कोसपदे बारस । एक्कारस परीसहा तस्स उक्कोसपदे उदेज्जेज्जा ।
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जस्स
दस परीसहा ( उचू पृ ५० )
जिसके चौदह परीषह होते हैं, उसके एक साथ उत्कृष्ट बारह परीषह हो सकते हैं। जिसके ग्यारह परीषह होते हैं, उसके एक साथ उत्कृष्ट दस परीषह हो सकते हैं ।
वीसं उक्कोसपए वट्टति जहन्नओ हवइ एगो । सीणि चरियं निसीहिया य जुगवं न वट्टति ॥ ( उनि ८२) एक साथ उत्कृष्टत: बीस परीषह और जघन्यतः एक परीषह हो सकता है । शीत और उष्ण- दोनों एक साथ नहीं होते, इन दोनों में से कोई एक होता है । चर्या और निषद्या में से कोई एक होता है ।
नषेधिकीवत्कथं शय्याऽपि न चर्यया विरुध्यते ? उच्यते, निरोधबाधादितस्त्वङ्गनिकादेरपि तत्र सम्भवानैधिकी तु स्वाध्यायादीनां भूमिः, ते च प्रायः स्थिरतायामेवानुज्ञाता इति तस्या एव चर्यया विरोधः ।
परीषह
निषद्या की तरह शय्या परीषह भी चर्या परीषह का विरोधी क्यों नहीं है ? इसके समाधान में कहा गया है। कि मूत्र, उत्सर्ग आदि की बाधा-निवृत्ति के लिए शय्या में भी चर्या संभव है ।
निषद्या का अर्थ है- स्वाध्याय आदि की भूमि । स्वाध्यायभूमियां प्रायः स्थिरता में ही अनुज्ञात हैं । अतः निषद्या का ही चर्या से विरोध है ।
७. परीषहप्रविभक्ति अध्ययन का उत्स
कम्पवायव्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुतं । सणयं सोदाहरणं तं चेव इहंपि णायव्वं ॥ ( उनि ६९ ) कर्मप्रवादपूर्व के सतरहवें प्राभृत में परीषहों का नय और उदाहरण सहित निरूपण है । वही उत्तराध्ययन के इस दूसरे अध्ययन का उत्स है ।
८. परीषह और नय - निक्षेप
तिहपि णेगमणओ परीसहो उज्जुसुत्ताओ । तिन्हं सद्दणयाणं परीसहो संजए होइ || ( उनि ७० ) नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र की अपेक्षा परीषह संयत, असंयत और संयतासंयत- तीनों के होते हैं । शब्द आदि तीनों नयों की अपेक्षा बाईस परीषह संयत के ही होते हैं ।
परीषह का कालमान
वासग्गसो अ तिन्हं मुहुत्तमंतं च होइ उज्जुसुए । सदस्य एगसमयं परीसहो होइ नायव्वो ।
( उनि ८३ )
नगम, संग्रह और व्यवहारनय की अपेक्षा परीषह वर्षों तक हो सकते हैं । ( जैसे सनत्कुमार चक्रवर्ती ने सात सौ वर्षों तक रोग परीषह को सहन किया । )
ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त्त और तीन शब्दनयों की द्रव्य परीषह : भाव परोषह
परीषह का कालमान अपेक्षा एक समय है ।
दव्वपरीसहा दुविहा, तं जहा कम्मदव्वपरी सहा य णोकम्मदव्वपरी सहा य । जाणि परीसहवेदणिज्जाणि कम्माणि बद्धाई ताव न उदेज्जंति ते कम्मदव्वपरी सहा । तिविहा णोकम्मदव्वपरी महासचित्ताचित्तमी सगा । ( उशावृप ७८ ) सचित्तणोकम्मदव्वपरीसहा जेहिं सचित्ते हि परीसहा
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