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अश्वमित्र और समुच्छेदवाद
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निह्नव
उसे संघ से अलग कर दिया गया। वह वहां से आमल- और मृत शरीर में प्रवेश कर उन्होंने शिष्यों को योग कल्पा नगरी में आया। वहां मित्रश्री नाम का श्रमणो- साधना का क्रम पूर्ण करवाया। फिर देवरूप में प्रकट पासक था। उसने तिष्यगुप्त को प्रतिबोध देने के लिए होकर क्षमायाचना करके सारी घटना बतलाई, तब अपने घर आने का निमन्त्रण दिया। वह वहां गया। अव्यक्तवाद की दृष्टि का प्रादुर्भाव हआ। उसने उसके समक्ष खाद्य पदार्थ, वस्त्र आदि प्रस्तुत किए
श्रमणों को संदेह हो गया कि कौन जाने कौन साधु और प्रत्येक पदार्थ का अन्तिम अवयव (छोटा टुकड़ा) ह आर कान
है और कौन देव ? कोई वन्दनीय नहीं है। यदि वन्दना देने लगा। तिष्यगूप्त ने कहा- तुमने मेरा तिरस्कार
करते हैं तो असंयमी को वंदना हो जाती है । अमुक व्रती किया है। श्रावक ने कहा-यह तो आपका सिद्धांत ही है-ऐसा कहना मृषावाद है। है कि अन्तिम अवयव वास्तविक है । यदि यह सत्य है तो
बहुत समझाने पर भी आषाढ़ के शिष्यों ने अपना तिरस्कार कैसा ? यदि नहीं तो आप मिथ्या प्ररूपणा
आग्रह नहीं छोड़ा, तब उन्हें संघ से बाहर कर दिया
गया। वे वहां से विहार कर राजगृह नगर में आए। क्यों कर रहे हैं ?
वहां के राजा बलभद्र को जब ज्ञात हुआ, उसने उनको ___ इस प्रकार प्रतिबोध पाकर तिष्यगुप्त ने श्रावक
आमन्त्रित किया। उन्होंने कहा- हे श्रावक ! हम मित्रश्री से क्षमायाचना की और अपने शिष्य-परिवार
तपस्वी हैं, सन्देह न करें। राजा ने कहा- कौन जानता के साथ गुरु के पास जाकर प्रतिक्रमण किया।
है साधु के वेश में कौन चोर है? कौन चारिक है ? आज ४. आचार्य आषाढ के शिष्य और अव्यक्तवाद मैं आपका वध करूंगा। चउदस दो वाससया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स ।
मुनियों ने कहा-ज्ञान और चर्या के द्वारा श्रमण
और अश्रमण की पहचान होती है। तुम श्रावक होकर तो अव्वत्तयदिट्टी सेववियाए समुप्पण्णा ।।
सन्देह करते हो? सेयविपोलासाढे जोगे तद्दिवसहिययसूले य ।
राजा ने कहा-आपको भी परस्पर विश्वास नहीं सोहम्मनलिणिगुम्मे राय गिहे मुरियबलभद्दे ।
है तब मुझे ज्ञान और चर्या से कैसे विश्वास होगा? गुरुणा देवीभूएण समणरूवेण वाइया सीसा ।
इस प्रकार युक्ति और भय से संबोध पाकर उन्होंने सब्भावे परिकहिए अव्वत्तयदिट्ठिणो जाया ॥
राजा से क्षमायाचना की। पुनः गुरु के पास आए और को जाणइ कि साहू देवो वा तो न वंदणिज्जो त्ति ।
प्रायश्चित्त लेकर संघ में सम्मिलित हो गए। होज्जाऽसंजयनमणं होज्ज सावायममुगो त्ति ।। इय ते नाऽसग्गाहं मुयंति जाहे बहुं पि भण्णंता ।
५. अश्वमित्र और समुच्छेदवाद ता संघपरिच्चत्ता रायगिहे निवतिणा नाउं । वीसा दो वाससया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स । बलभद्देणग्घाया भणंति सावय वयं तवस्सि ति । सामुच्छेइयदिट्ठी मिहिलपुरीए समुप्पन्ना ।। मा कुरु संकमसंकारुहेसु भणिए भणइ राया ।।
मिहिलाए लच्छिघरे महगिरि कोडिन्न आसमित्ते य । को जाणइ के तुब्भे कि चोरा चारिआ अभिमर त्ति ।
नेउणियऽणुप्पवाए रायगिहे खंडरक्खा य॥ संजयरूवच्छण्णा अज्जमहं भे विवाएमि ।।
नेउणमणुप्पवाए अहिज्जिओ वत्थुमासमित्तस्स । (विभा २३५६-२३५९, २३८३-२३८५)
एगसमयाइवोच्छेयसुत्तओ नासपडिवत्ती ।। वीर निर्वाण के २१४ वर्ष व्यतीत होने पर श्वेतविका
उप्पायाणंतरओ सव्वं चिय सव्वहा विणासि त्ति । नगरी में अव्यक्तवाद की उत्पत्ति हुई।
गुरुवयणमेगनयमयमेयं मिच्छं न सव्वमयं ।। श्वेतविका नगरी के पोलाषाढ उद्यान में आचार्य
(विभा २३८९-२३९२) आषाढ ठहरे हए थे। वे शिष्यों को योगाभ्यास कराते इअ पण्णविओ विजओ न थे। एक दिन आचार्य आषाढ को हृदयशूल उत्पन्न हुआ।
पवज्जइ सो कओ तओ बज्झो । उससे उनकी मृत्यु हो गई। मरकर वे सौधर्म कल्प के
विहरंतो रायगिहे नाउं तो खंडरक्खेहि ।। नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न हुए।
गहिओ सीसेहिं सम एएऽहिमर त्ति जंपमाणेहिं । ... आचार्य आषाढ देवरूप में पोलाषाढ उद्यान में आए संजयवेसच्छण्णा, सज्जं सव्वे समाणेह ।।
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