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नय की परिभाषा
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आचार्य ने समाधान देते हुए कहा - अर्हत्, आचार्य और उपाध्याय नियमतः साधु हैं क्योंकि साधु गुण उनमें विद्यमान हैं । साधु में अर्हत् आदि की भजना है । मात्र साधु को नमस्कार करने से अर्हत् आदि के विशिष्ट गुणों को नमन नहीं होता, अतः उससे निष्पन्न फल भी प्राप्त नहीं होता । जैसे - अर्हत् मोक्षमार्ग के उपदेष्टा हैं, अतः अर्हत्-नमस्कार मोक्षमार्ग की प्राप्ति का हेतु है । इस प्रकार हेतुभेद से पंचविध नमस्कार युक्तियुक्त है । ६. नमस्कारपदों का क्रम
अरहंतुवएसेणं सिद्धा नज्जंति तेण अरिहाई । न कोई परिसाए पणमित्ता पणमई रण्णो ॥ यद्येवमाचार्यादिस्तर्हि क्रमः प्राप्तः, अर्हतामपि तदुपदेशेन संवित्ते रिति । अत्रोच्यते, न इहाईत सिद्धयोरेवायं वस्तुतस्तुल्यबलयोविचारः श्रेयान् परमनायकभूतत्वाद्, आचार्यस्तु तत्परिषत्कल्पा वर्तन्ते ।
( आवनि १००९ हावृ १ पृ ३०१ ) अर्हत् के उपदेश से अथवा आगम से सिद्धों की अवगति मिलती है, अतः सर्वप्रथम अर्हत् को नमस्कार किया गया है ।
आचार्य के उपदेश से अर्हतों की अवगति मिलती है, तब सर्वप्रथम आचार्यों को नमस्कार क्यों नहीं किया गया ? इसके समाधान में कहा गया है कि वस्तुतः तुल्य बल वालों के क्रम का विचार श्रेयस्कर है । शक्तिसम्पन्नता और कृतकृत्यता की दृष्टि से अर्हत् और सिद्ध प्राय: समान ही हैं। दोनों परम नायक हैं। आचार्य उनकी परिषद् के समान हैं । कोई भी व्यक्ति परिषद् को प्रणाम कर राजा को प्रणाम नहीं करता ।
नय -- अनंत धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म को ग्रहण कर अन्य धर्मों का निराकरण न करने वाला दृष्टिकोण |
१. नय का निर्वचन
२. नय की परिभाषा
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३. सात नय
नैगम
संग्रह
० व्यवहार
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० शब्द
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ऋजसूत्र
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समभिद एवंभूत
४. चार नय
५. द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय
६. अर्थनय - शब्दनय
निश्चयनय-व्यवहारनय
७.
८. ज्ञाननय क्रियानय
९. सम्यक्नय- मिथ्यानय
१०. नय: विभिन्न वृष्टांत • गज का दृष्टांत
• रत्नावलि का दृष्टांत
• प्रस्थक, वसति और प्रदेश का दृष्टान्त भी युक्त
अयुक्त
११. नयविधि से १२. कालिकत और नय
• नय के अपृथक्करण का हेतु * नय : अनुयोग का प्रवेशद्वार 'हिंसा, अहिंसा और नय * सामायिक और नय निक्षेप में नय का अन्तर्भाव
नय
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( व्र. अनुयोग)
( द्र. अहिंसा)
( व्र. सामायिक ) (x. Freia)
१. नय का निर्वचन
स नयइ तेण तर्हि वा तओऽहवा वत्थुणो व जं नयणं । बहुहा पंज्जायाणं संभवओ
सो
नओ नाम ॥
( विभा ९१४ ) वक्ता संभावित पर्यायों से वस्तु का बोध कराता है, वहन है ।
अथवा जिससे अर्थ का परिच्छेद होता है, वह नय है । २. नय की परिभाषा
गेण वत्थुणो गधम्णो जमवधारणे णेव । नयणं धम्मेण तओ होइ नओ ॥ ( विभा २१८० ) नयति - अनेकांशात्मकं वस्त्वेकांशावलम्बनेन प्रतीतिपथमारोपयति नीयते वा तेन तस्मिस्ततो वा नयनं वा नयः - प्रमाणप्रवृत्त्युत्तरकालभावी परामर्श इत्यर्थः । ( उशावृ प ६७ )
अनेक धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म ( अंश) का अवलम्बन लेकर उसे प्रतीति का विषय बनाना नय
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