________________
नमस्कार का प्रयोजन
तो
पुज्जा
आयार- विणय-साणसाहज्जं साहवो जओ दिति । ते पंच वि तग्गुणपूयाफलनिमित्तं ॥ ( विभा २९५७, २९५८ ) गुरु (आचार्य) स्वयं आचार - सम्पन्न होते हैं और दूसरों को आचार की देशना देते हैं इसलिए पूज्य परमउपकारी गुरु नमस्करणीय हैं ।
३६९
उपाध्याय स्वयं विनयवान् होते हैं और शिष्यों को विनय की शिक्षा तथा सूत्र की वाचना देते हैं, इसलिए नमस्करणीय हैं ।
तथा
मुनि आचार और विनय से सम्पन्न होते मोक्ष - साधना में सहयोगी बनते हैं, इसलिए वे नमस्करणीय हैं।
अर्हत् आदि पांचों पूज्य हैं । उनके ज्ञान आदि गुणों की पूजा का जो फल है - मोक्षाभिमुखता तथा स्वर्गअपवर्ग की प्राप्ति, उनकी निष्पत्ति में वे कारणभूत होते हैं ।
२. नमस्कार के अनुयोग
उप्पत्ती निक्खेवो पयं पयत्थो परूवणा वत्युं । अक्व सिद्धि को पओयणफलं नमुक्कारो ॥ ( आवनि ८८७)
नमस्कार के ग्यारह अनुयोग हैं(१) उत्पत्ति ( २ ) निक्षेप (३) पद ( ४ ) पदार्थ (५) प्ररूपणा ( ६ ) वस्तु (७) आक्षेप ( ८ ) प्रसिद्धि (९) क्रम (१०) प्रयोजन और (११) फल । ३. नमस्कार की उत्पत्ति
समुट्ठाण वायणा लद्धिओ पढमे नयत्तिए तिविहं । ..... ( आवनि ८८९ ) पन्नरससुवि कम्मभूमीस पुरिसादिभावं पडुच्च, जदि उप्पन्नो कहं उप्पन्नोत्ति ? तिविहेण सामित्ते - समुत्थाणसामित्तेण वायणासामित्तेण लद्धिसामित्तेण ।... समुट्ठाणं नाम संमं आयरियादीण उपस्थापनमित्यर्थः तेन, वायणाए वायणायरियणीसाए, जहा भगवता गोयमसामी वातो, लद्धी जहा भविकस्स । ( आवचू १ पृ ५०२)
पन्द्रह कर्मभूमियों में पुरुष, काल आदि की अपेक्षा से नमस्कार मंत्र की उत्पत्ति होती है, उसके तीन रूप
१. समुत्थानस्वामित्व – आचार्य आदि की सम्यक्
उपस्थापना |
Jain Education International
नमस्कार महामंत्र
२. वाचनास्वामित्व वाचनाचार्य की निश्रा में वाचना । जैसे - महावीर ने गौतम को वाचना दी ।
३. लब्धिस्वामित्व
बिना उपदेश के भी भव्य जीव को किसी निमित्त से नमस्कार की प्राप्ति होती है ।
४. नमस्कार का प्रयोजन
इत्थ य ओयणमिणं, कम्मक्खओ मंगलागमो चेव । .... ( आवनि १०१० ) नमस्कार का प्रयोजन है— कर्म का क्षय और मंगल की प्राप्ति ।
पंच पदों के नमस्कार का हेतु मग्गे अविपणासो आयारे पंचविहनमुक्कारं
करेमि
विणयया सहायत्तं । एएहि ऊहि ॥
( आवनि ९०३ )
१. अर्हत् को नमस्कार करने से मोक्षमार्ग का बोध होता है ।
२. सिद्ध को नमस्कार करने से शाश्वत मोक्ष की ओर दृष्टि होती है।
३. आचार्य को नमस्कार करने से आचार की सम्पन्नता बढ़ती
४. उपाध्याय को नमस्कार करने से विनय का विकास होता है ।
५. साधु को नमस्कार करने से संयम जीवन में सहायता मिलती है।
कोप्पसाय हेउं च जं फलं नहि तदत्थमारंभी । न परप्पसायणत्थं किन्तु निययप्पसायत्थं ॥ (विभा ३२५३) कोपहेतुक और प्रसादहेतुक फलप्राप्ति के लिए अथवा दूसरों को प्रसन्न करने के लिए अर्हत् आदि को नमस्कार नही करना चाहिए। अपने चित्त की प्रसन्नता के लिए नमस्कार करणीय है ।
पूया परोवयाराभावे वि सिवाय जिणवराईणं । परिणामसुद्धिहे सुभकिरियाओ य बंभं व ।। ( विभा ३२६७ ) पंच परमेष्ठी नमस्कार परोपकार के अभाव में भी मोक्ष के लिए है, क्योंकि यह परिणामशुद्धि का हेतु है । ब्रह्मचर्य की भांति यह शुभ क्रिया है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org