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देव-आयुष्य बंध के कारण
देव
जिलो
उक्कोस सत्त रयणी, उत्तरवेउव्विया जहण्णा अंगुलस्स ३. अग्नि में जलकर मरना । असंखेज्जतिभागो उक्कोसा जोयणलक्खं । एवं णागादिया- ४. जल में डूबकर मरना । णवि णवण्हं, णवरं उत्तरवेउव्विया उक्कोसा जोयण- ५. भूख और प्यास से क्लांत होकर मरना। सहस्सं ।
(अनुचू पृ५५) जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया। असुरकुमार देवों के भवधारणीय शरीर की जघन्य सीलवंता सवीसेसा, अद्दीणा जंति देवयं ।। अवगाहना अंगुल का असंख्येय भाग तथा उत्कृष्ट सात
(उ ७।२१) हाथ है। उनकी उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अवगाहना जिनके पास विपुल शिक्षा है, वे शीलसम्पन्न और अंगुल का असंख्यातवां भाग तथा उत्कृष्ट एक लाख योजन उत्तरोत्तर गुणों को प्राप्त करने वाले पराक्रमी पुरुष है। इसी प्रकार नागकुमार आदि भवनपति देवों की मूलधन-मनुष्यत्व का अतिक्रमण करके देवत्व को प्राप्त अवगाहना भी इतनी है, केवल उत्तर वैक्रिय की उत्कृष्ट होते हैं। अवगाहना एक हजार योजन है।
ताणि ठाणाणि गच्छति, सिक्खित्ता संजमं तवं । (व्यन्तर और ज्योतिष्क देवों की अवगाहना असुर
भिक्खाए वा गिहत्थे वा, जे संति परिनिव्वुडा । कुमार देवों जितनी होती है ।""अनुत्तरोपपातिक देवों
(उ ५।२८) की अवगाहना एक हाथ की होती है।
जो उपशान्त होते हैं, वे संयम और तप का अभ्यास देखें-पन्नवणा २११७०,७१ ।
कर देव-आवासों में जाते हैं, भले फिर वे भिक्ष हों या ११. देव-आयुष्य बंध के कारण
गृहस्थ । देवाउयं निबंधइ, सरागतवसंजमो।
इहजीवियं अणियमेत्ता, पब्भट्ठा समाहिजोएहिं । अणुव्वयधरो दंतो, सत्तो बालतवम्मि य ।
ते कामभोगरसगिद्धा, उववज्जति आसुरे काए । बालतवे पडिबद्धा, उक्कडरोसा तवेण गारविया ।
(उ ८।१४) वेरेण य पडिबद्धा, मरिऊणं जति असूरेसू ।।
जो इस जन्म में जीवन को अनियंत्रित रखकर रज्जुग्गहणे विसभक्खणे य जलणे य जलपवेसे य।।
समाधि-योग से परिभ्रष्ट होते हैं, वे कामभोग और रसों तण्हाछुहाकिलंता, मरिऊणं हंति वंतरिया ॥
में आसक्त बने हुए पुरुष असुरकाय में उत्पन्न होते हैं।
(उसु प ६७) देवों की सम्पदा देव-आयुष्य बंध के कारण
उत्तराई विमोहाई, जुइमंताणुपुव्वसो । १. सराग तप-संयम का पालन ।
समाइण्णाइं जक्खेहिं, आवासाइं जसंसिणो । २. अणुव्रतों का पालन ।
दीहाउया इड्ढिमंता, समिद्धा कामरूविणो। ३. इन्द्रिय और मन का दमन ।
अहुणोववन्नसंकासा, भुज्जो अच्चिमालिप्पभा । ४. बाल तप में आसक्त ।
(उ ५।२६,२७) असुरदेव-आयुष्य बंध के कारण
देवताओं के आवास उत्तरोत्तर उत्तम, मोहरहित १. अज्ञान तप में प्रतिबद्धता ।
और द्यतिमान तथा देवों से आकीर्ण होते हैं। उनमें २. प्रबल क्रोध करना।
रहने वाले देव यशस्वी, दीर्घायु, ऋद्धिमान्, दीप्तिमान्, ३. तप का अहं करना।
इच्छानुसार रूप धारण करने वाले, अभी उत्पन्न हुए हों ४. वैर में प्रतिबद्धता।
ऐसी कान्ति वाले और सूर्य के समान अतितेजस्वी ज्यन्तरदेव-आयुष्य बंध के कारण
होते हैं। १. फांसी पर लटक कर आत्महत्या करना।
सौधर्मादिषु ह्यनुत्तरविमानावसानेषु पूर्वपूर्वापेक्षया २ विष-भक्षण।
प्रकर्षवन्त्येव विमोहत्वादीनि । (उशावृ प २५२)
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