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तीर्थंकर
९. अन्त्र -- आपने अपनी आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्टित देखा । उसके फलस्वरूप सम्पूर्ण त्रिभुवन में आपका निर्मल यश, कीर्ति और प्रताप फैलेगा।
१०. मन्दरगिरि – आपने अपने को मंदराचल पर आरूढ़ देखा है । उसके फलस्वरूप आप सिंहासनस्थ होकर देव, मनुष्य और असुर परिषद् के बीच धर्म का आख्यान करेंगे ।
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विशिष्ट अवधिज्ञान
ताइता ।
ततो सामी सालीसीसयं णाम गामो तहिं गतो । तत्थ उज्जाणे पडिमं ठितो । माहमासो य वट्टति । तत्थ कडपूयणा वाणमंतरी''सा य किल तिविट्ठेकाले अंतेपुरिया आसि । ण य तदा पडियरियत्ति पदोसं वहति । तं दिव्वं वेणं अहियासंतस्स भगवतो ओही विगसिओ । सव्वं लोगं पासितुमारद्धो । सेसं कालं गब्भातो आढवेत्ता जाव सालिसीस ताव सुरलोगप्पमाणो ओही एक्कारस य अंगा सुरलोग पमाणमेत्ता, जावतियं देवलोगेसु पेच्छि( आवचू १ पृ २९२,२९३) साधना का छठा वर्ष । महावीर शालिशीर्ष ग्राम में गए । उद्यान में प्रतिमा में स्थित हो गए । माघ का महीना था। कटपूतना नाम की बाणमंतरी वहां आई । ....त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में वह उनके अंतःपुर की एक रानी थी । उस समय सम्यक् प्रकार से परिचर्या न होने के कारण वह त्रिपृष्ठ के प्रति द्वेष से भर गई । कटपूतना द्वारा दी गई वेदना महावीर सहन कर रहे थे। ऐसा करते-करते महावीर का अवधिज्ञान अधिक विकसित हो गया । उससे वे सम्पूर्ण लोक को देखने लगे। इससे पूर्व गर्भकाल से लेकर जब वे शालिशीर्ष ग्राम में पहुंचे तब तक उनका अवधिज्ञान देवलोक तक जान सके उतना ही था । उनके शरीर के ग्यारह अंग (करण अथवा चैतन्यकेन्द्र ) अतीन्द्रियज्ञान के साधन थे । उनसे वे देवलोक तक के पदार्थों का ज्ञान कर लेते थे ।
महावीर की प्रतिमा साधना तो साट्ठितं णाम गामं गतो, तत्थ भद्दं पडिमं ठाति । केरिसिया भद्दा ? पुव्वाहुत्तो दिवस अच्छति, पच्छा रत्ति दाहिणहुत्तो अवरेण दिवस उत्तरेण रति, एवं छट्ठेण भत्तेण णिट्ठिता । तहवि ण चेव पारेति, अपारितो चेव महाभद्दं ठाति सा पुण पुव्वाए दिसाए अहोरत्तं एवं
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संगमकृत उपसर्ग
सुविचत्तारि अहोरत्ता, एवं दसमेण णिट्ठिता । ताहे अपारितो चेव सव्वतोभद्दं पडिमं ठाति सा पुण सव्वतो - भद्दा इंदाए अहोरत्तं पच्छा अग्गेयाए एवं दससुवि दिसासु सव्वासु, विमलाए जाई उड्ढलोतियाणि दव्वाणि ताणि भाति, तमाए हिट्टिल्लाई ।
( आवचू १ पृ ३०० ) श्रावस्ती में दसवां चातुर्मास पूर्ण कर महावीर सानुलष्टि ग्राम में गए। वहां भद्र प्रतिमा की । भद्र प्रतिमा का स्वरूप- दिन में पूर्व की ओर खड़े रहकर ध्यान करते, रात को दक्षिण दिशा की ओर खड़े रहकर ध्यान करते । दूसरे दिन पश्चिम दिशा की ओर खड़े रहकर ध्यान करते और रात्रि में उत्तर दिशा की ओर खड़े रहकर ध्यान करते में दो दिन और दो रात का ध्यान
।
इस प्रकार भद्र प्रतिमा तथा बेले की तपस्या
की ।
उसे संपन्न करने से पूर्व ही महावीर महाभद्र प्रतिमा में स्थित हो गए । महाभद्र प्रतिमा में चार दिन-रात का ध्यान और चौले ( चार दिन का उपवास) की तपस्या की ।
महाभद्र प्रतिमा को पूर्ण करने से पूर्व ही महावीर सर्वतोभद्र प्रतिमा में स्थित हो गए। सर्वतोभद्र प्रतिमा में दस दिन-रात का ध्यान और दस दिन की तपस्या
महावीर विमला (ऊर्ध्व दिशा) में ध्यान करते तब ऊर्ध्व लोकवर्ती द्रव्यों का ध्यान करते । तमा-अधोदिशा में ध्यान करते तो अधोलोकवर्ती द्रव्यों का ध्यान करते । संगमकृत उपसर्ग
सोहम्मकप्पवासी देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं । सामाणि संगमओ बेइ सुरिदं पडिनिविट्ठो ॥ तेलोक्कं असमत्थति बेह एतस्स चालणं काउं । अज्जेव पासह इमं मम वसगं भट्टजोगतवं ॥ अह आगओ तुरंतो देवो सक्क्स्स सो अमरिसेणं । कासी य ह उवसग्गं मिच्छद्दिट्ठी पडिनिविट्ठो ॥ धूली पिवीलिआओ उद्दंसा चैव तहय उण्होला । विछु नउला सप्पाय मूसगा चेव अट्ठमगा ॥ हत्थी हत्थीणिआओ पिसायए घोररूव वग्धो य । थेरो थेरीइ सुओ आगच्छइ पक्कणो य तहा || खरवाय कलंकलिया कालचक्कं तहेव य । पाभाइ उवसग्गे वीसइमो होइ अणुलोमो |
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