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जीव
३. तद्भवजीव जो जीव स्वस्थान से उद्वृत्त होकर पुन: उसी स्थान में उत्पन्न होते हैं, वे तद्भवजीव हैं। इनके दो प्रकार हैं- मनुष्य और तियंच ।
८. सूक्ष्म जीवों के प्रकार
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सिहं पुप्फसुमं च पाणुत्तिगं तहेव य पण बीय हरियं च अंड
अद्रुमं ॥
(द ८।१५ अबू पृ १०० जिचू पृ २७८ )
सूक्ष्म जीव आठ प्रकार के हैं
स्नेह सूक्ष्म – ओस, हिम, कुहासा, ओला और उद्भिद जलबिन्दु ।
पुष्प सूक्ष्म - बड़, उम्बर आदि के फूल या उन जैसे वर्ण वाले दुर्विभाव्य फूल ।
प्राण सूक्ष्म - कुंथु, जो चलने पर जाना जाता है किन्तु स्थिर अवस्था में दुर्ज्ञेय है। उसिंग सूक्ष्म कीटिकानगर, जहां प्राणी दुर्ज्ञेय हों । पनक सूक्ष्म - काई । यह पांच वर्ण की होती है । बीज सूक्ष्म सरसों और शाल के अग्रभाग पर होने वाली कणिका ।
हरित सूक्ष्म - जो तत्काल उत्पन्न, पृथ्वी के समान वर्ण वाला और दुर्ज्ञेव हो, वह अंकुर । अंड सूक्ष्म मधुमक्खी, कीडी, मकडी, ब्राह्मणी और गिरगिट के अंडे | जीवनिकाय - पृथ्वी आदि जीवों के छह वर्ग १. छह जीवनिकाय
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पृथ्वीकाय
• अप्काय
० तेजस्काय
• वायुकाय ० वनस्पतिकाय
* त्रसकाय
२. स्थावर जीव
• स्थावर जीवों के म
* तेजस्-वायु त्रस हैं
३. पृथ्वीका की परिभाषा
जीवत्वसिद्धि
०
० प्रकार
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(प्र. प्रस)
(प्र. प्रस)
सचित-अचित मिश्र पृथ्वी
• अचित्त पृथ्वी का उपयोग
पृथ्वीका की स्थिति आदि
०
४. अकाय की परिभाषा
० जीवत्यसिद्धि
० प्रकार
सचित-अचित्त मिश्र जल
• अटकाव की स्थिति आदि
५. तेजस्काय की परिभाषा ० जीवत्वसिद्धि
० प्रकार
• सचित मिश्र अग्नि
• सर्वाधिक तेजस्काय का उत्पत्तिकाल • तेजस्काय की स्थिति आदि
६. वायुकाय की परिभाषा • जीवत्वसिद्धि
० प्रकार
० सचित-अचित्त मिश्र वायु
• वायुकाय की स्थिति आदि
७. वनस्पतिकाय की परिभाषा
• जीवत्वसिद्धि
* वनस्पति में पांच इन्द्रियों का अस्तित्व
० प्रकार
• बादर वनस्पति के प्रकार
• साधारण शरीरी
• प्रत्येक शरीरी
जीवनिकाय
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(प्र. इन्द्रिय)
• अग्रबीज आदि
० सचित्त मिश्र वनस्पति
अचित्त वनस्पति का उपयोग
• वनस्पति की स्थिति आदि वनस्पति के आठ प्रकार • वनस्पति की दस अवस्थायें पृथ्वी आदि की अवगाहना ९. पृथ्वी आदि में उच्छ्वास आदि अव्यक्त १०. पृथ्वी आदि की सघन मूर्च्छा का हेतु
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