________________
चक्रवर्ती
२६०
काकणी रत्न
सुवर्ण जितने वजन वाला होता है। उसका प्रमाण है के अन्तर से काकणी रत्न द्वारा चन्द्रमण्डल जैसे प्रकाशक चार अंगुल । वह विषनाशक, अतुल, समतल और उनपचास मण्डलों का आलेखन करता है। वे मण्डल समचतुरस्र संस्थान वाला होता है।
चक्रनेमि संस्थान वाले, पांच सौ धनुष आयाम वाले तथा लोक में मान-उन्मान-प्रमाण इसी के आधार पर एक-एक योजन तक प्रकाश करने वाले होते हैं। इनसे प्रवत्त होते हैं। इस दिव्य प्रभावशाली रत्न की रश्मियां तमिस्रा गुफा आलोकमय, उद्योतमय बन जाती है। चक्रवर्ती की सेना में बारह योजन तक के अंधकार भरहे""कागणिरयणं परामुसति, परामुसित्ता उसभको नष्ट कर देती है। इसके प्रभाव से रात्रि भी दिन कूडस्स पुरथिमिल्लसि कडगंसि णामगं आउडेति । जैसी आलोकमय बन जाती है।
(आवचू १ पृ २००) अपर अर्धभरत क्षेत्र पर विजय पाने के लिए चक्रवर्ती चक्रवर्ती भरत ऋषभकूट पर्वत के पूर्वीय भाग में तमिस्रा गुफा में प्रवेश करता है और वहां एक-एक योजन काकणी रत्न से अपना नाम उत्कीर्ण करता है।
न
काकणी रत्न
त
को
-
त
का
-
कोई
कर.
18
१२ कोटि-क = कोर से को
८ कोण-को, = सामने तल के ऊपर बाएं = को से को
को३ = सामने तल के नीचे बाएं को से को
= सामने तल के नीचे दाएं कx = को, से को
को = सामने तल के ऊपर दाएं क, = को, से को
= पीछे तल के ऊपर दाएं कई = कोड से को,
को = पीछे तल के नीचे दाएं कर = को, से को
को = पीछे तल के नीचे बाएं क, = को, से को
को- = पीछे तल के ऊपर बाएं क = को, से को क. == को से को
६ तल–त, = सामने त४ = बाएं क११ = को५ से को
तर = दाएं त५ = ऊपर क१२ = को से को
त, = पीछे त = नीचे (इस स्थापना में 'क' कोटि का सूचक है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org