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चौदह रत्न
३. चौदह रत्न और उनका विवरण
सेणावइ गाहावर पुरोहिय गय तुरंग वड्ढइग इत्थी । चक्कं छत्तं चम्मं मणि कागिणि खग्ग दंडो य ॥ ( उशावृप ३५० ) १. सेनापति - यह दलनायक होता है तथा गंगा और सिन्धु नदी के पार वाले देशों को जीतने में बलिष्ठ होता है ।
२. गृहपति - चक्रवर्ती के गृह की समुचित व्यवस्था में तत्पर रहने वाला ।
३. पुरोहित - ग्रहों की शांति के लिए उपक्रम करने
वाला ।
४.
५.
अपन}
अत्यन्त वेग और महान् पराक्रम से युक्त । ६. वर्ध की - गृह, निवेश, सेतु आदि के निर्माण का कार्य करने वाला ।
७. स्त्री - अत्यन्त अद्भुत काम-जन्य सुख को देने वाली होती है ।
८. चक्र -- सभी आयुधों में श्रेष्ठ तथा दुर्दम शत्रु पर विजय पाने में समर्थ ।
९. छत्र - धूप, हवा, वर्षा से बचाने में समर्थ । १०. चर्म - बारह योजन लम्बे-चौड़े छत्र के नीचे प्रातःकाल में बोए गए शाली आदि बीजों को मध्याह्न में
उपभोग योग्य बनाने में समर्थ ।
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सुसेणं सेणावइरयणं
से सेणावई बलस्स णेता भरहे वासंमि वीसुतजसे महाबलपरक्कमे महत्पा ओसी तेज लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारदे चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निक्खुडाणं णित्राण य दुग्गमाण य दुक्खपवेसणाणं वियाणए अत्थसत्थकुसले |
चक्रवर्ती
भरत चक्रवर्ती के सुषेण नाम का सेनापति रत्न था । वह महापराक्रमी, ओजस्वी और तेजलक्षणयुक्त था । वह म्लेच्छ भाषाओं का ज्ञाता, मंजुलभाषी, सम-विषमदुर्गम पथों को पार करने में समर्थ तथा अर्थशास्त्र में निपुण था ।
गृहपति रत्न
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तस् य अणइवरं चारुरूवं सिलणिहिअत्थमंत सेतू सालिजवगोधूममुग्गमास तिल कुलत्थसद्विगणिप्फावचणकोद्दवकोत्थंभरिकंगुवराल अणेगधन्नाव रत्तहारितगअल्लकमूलकहलिद्दिला उकत उसतुंव का लिंगक विट्ठअंबअंबिलियसव्वfroफाद सुकुसले गाहावतिरयणेत्ति सव्वजणवीसुतगुणे । गाहावतरणे भरहस्स रन्नो तद्दिवसपइन्नणिप्फादितपूइताणं सव्वधन्नाणं अणेगाई कुंभसहस्साई उवट्ठवेति । ( आवचू १ पृ १९७,१९८ ) गृहपति रत्न शालि, यव आदि सब धान्यों और शाकसब्जियों के निष्पादन में कुशल होता है । वह चर्मरत्न पर सुबह बोये गये धान्यों को उसी दिन सूर्यास्त से पहले ही हजारों कुम्भों में भरकर चक्रवर्ती के समक्ष उपस्थित करता है ।
११. मणि - यह बारह योजन में विस्तृत चक्रवर्ती की सेना में सर्वत्र प्रकाश बिखेरता है । इसके प्रभाव से सभी प्रकार के उपद्रव तथा रोग नष्ट हो जाते हैं । १२. काकणी - तमिस्रगुहा में यह अन्धकार को समूल नष्ट कर देता है। इसकी किरणें बारह योजन तक फैलती हैं ।
अश्व रत्न
..... कमलामेलगंणाम आसरयणं दुरूहति, तए णं तं १३. असि - संग्राम भूमि में इसकी शक्ति अप्रतिहत होती मायतं बत्तीसंगुलमूसितसिरं चउरंगुलकन्नाकं वीसतिअसीत मंगुलसितं णवणउतिमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुल - है । इसका वार खाली नहीं जाता ।
१४. दंड - शत्रुओं की सेनाओं को नष्ट करने में समर्थ । सेनापति रत्न
अंगुल बाहाक चतुरंगुलजन्तुकं सोलस अंगुलजंघाकं चतुरंगुलमूसितखुरं सुजातं अमरमणपवणगरुलजइणचवल सिग्धगामि ईसिमिव खंतिखमए सुसीसमिव पच्चखतो विणीतं उदगहुतवहपासाणपंसुकद्दमससक्करसवालुइल्लतडकडगविसमपब्भारगिरिदरीसु लंघणपीलण - णित्थारणासमत्थं । (आवचू १ पृ १९५) चक्रवर्ती के अश्वरत्न का नाम था कमलामेलक । उसकी ऊंचाई अस्सी अंगुल, मोटाई निन्यानवे अंगुल और ( आवचू १ पृ १९० ) लम्बाई एक सौ आठ अंगुल थी । उसका सिर बत्तीस
गज रत्न
..... आभिसेगं च हत्थिरयणं पडिकप्पेहत्ति ''अंजणगिरिकूडसंनिभं गवति णरवती दुरूढे ।
( आवचू १ पृ १८४) चक्रवर्ती भारत के अभिषेक्य नाम का हस्ति रत्न था । उसका वर्ण अंजनगिरिकूट के समान श्यामल था।
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