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गोचरचर्या
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क्षेत्र-विवेक
में परस्पर चार अंगुल की दूरी रखकर, दायें हाथ में हो, उस संबंधी मेरा दुष्कृत निष्फल हो। मखवस्त्रिका, बायें हाथ में रजोहरण धारण करना निष्क्रमण से लेकर पुनः प्रवेश तक के सामुदानिक (भिक्षा) अतिचारों का कायोत्सर्ग में चिन्तन करता
कंदं मूलं पलंबं वा, आम छिन्नं व सन्निरं । है। प्रतिसेवना का अनुक्रम से चिन्तन करता है
तुंबागं सिंगबेरं च, आमगं परिवज्जए॥
तहेव सत्तचुण्णाई, कोलचुण्णाइं आवणे । और अनुक्रम से ही उनकी गुरु के पास आलोचना करता
सक्कुलि फाणियं पूर्व, अन्नं वा वि तहाविहं ।।
विक्कायमाणं पसढं, रएण परिफासियं । गोचर-अतिचार-प्रतिक्रमण
दंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं । पडिक्कमामि गोयरचरिआए भिक्खायरिआए उग्घाड
(द ५११७०-७२) कवाड-उग्धाडणाए साणा-वच्छा-दारा-संघट्टणाए मंडी- मुनि अपक्व कंद, मूल, फल, छिला हुआ पत्ती का पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए शाक, घीया और अदरक न ले। इसी
___ शाक, घीया और अदरक न ले। इसी प्रकार सत्त, बेर सहसागारे अणेसणाए पाणभोयणाए बीयभोयणाए का चूर्ण, तिलपपड़ी, गीला गुड़, पूआ, इस तरह की हरियभोयणाए पच्छाकम्मियाए पुरेकम्मियाए अदिट्ठहडाए दूसरी वस्तुएं भी जो बेचने के लिए दुकान में रखी हों, दग-संसद्हडाए रय-संसट्ठहडाए परिसाडणियाए पारि- परन्तु न बिकी हों, रज से स्पृष्ट हो गई हों तो मुनि ट्रावणियाए ओहासणभिक्खाए जं उग्गमेणं उप्पायर्णसणाए देती हई स्त्री को प्रतिषेध करे-इस प्रकार की वस्तएं अपरिसुद्धं पडिग्गहियं परिभुत्तं वा जं च न परिट्ठवियं मैं नहीं ले सकता। तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
(आव ४।६) बहुअट्ठियं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं । मैं गोचरचर्या --गाय की भांति अनेक स्थानों से अत्थियं तिदुयं बिल्लं, उच्छृखंड व सिंबलि ।। थोडा-थोड़ा लेने वाली भिक्षाचर्या से सम्बन्धित अति- अप्पे सिया भोयणजाए, बहउझिय-धम्मिए । चारों का प्रतिक्रमण करता हूं--बंद किवाड़ को खोला
देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ हो, कुत्ते, बछड़े और बच्चे को इधर-उधर किया हो,
(द ५१११७३,७४) पकाये हए भोजन में से निकाले गए प्रथम ग्रास की भिक्षा बहुत अस्थि वाले पुद्गल, बहत कांटों वाले अनिमिष, ली हो, देवपूजा के लिए तैयार किया हुआ भोजन लिया आस्थिक, तेन्दु और बेल के फल, गण्डे हो, भिक्षाचर आदि याचकों के लिए स्थापित भोजन जिनमें खाने का भाग थोड़ा हो और डालना अधिक पडे लिया हो, शंका सहित आहार लिया हो, बिना सोचे --देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे-- इस प्रकार के शीघ्रता में आहार लिया हो, एषणा-पूछताछ किए फल आदि मैं नहीं ले सकता। बिना आहार लिया हो, प्राण, बीज और हरितयुक्त १०. क्षेत्र-विवेक आहार लिया हो, भिक्षा देने के पश्चात् उसके निमित्त
अइभूमि न गच्छेज्जा, गोयरग्गगओ मुणी। से हस्त-प्रक्षालन आदि आरंभ किया जाए वैसी भिक्षा ली हो, भिक्षा देने के पूर्व उसके निमित्त से आरम्भ
कुलस्स भूमि जाणित्ता, मियं भूमि परक्कमे ।। किया जाए वैसी भिक्षा ली हो, अनदेखे लाई हुई भिक्षा
तत्थेव पडिलेहेज्जा, भूमिभागं वियक्खणो । ली हो, सचित्त जल से स्पृष्ट वस्तु को लाकर दी जाने
सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवज्जए॥ वाली भिक्षा ली हो, सचित्त रज से स्पृष्ट वस्तु को
दगमट्टियआयाणं, बीयाणि हरियाणि य । लाकर दी जाने वाली भिक्षा ली हो, भूमि पर गिराते
परिवज्जतो चिठेज्जा, सव्विदियसमाहिए। गिराते दी जाने वाली भिक्षा ली हो, खाने-पीने के
(द ५।१।२४-२६) अयोग्य वस्तु ली हो, विशिष्ट भोज्य-पदार्थ मंगाकर गोचराग्र के लिए घर में प्रविष्ट मुनि अतिभूमि लिए हों, उद्गम, उत्पादन और एषणा के दोषों से युक्त (अननुज्ञात) में न जाये, कुल-भूमि को जानकर मितभूमि आहार लिया हो, खाया हो, उसका परिष्ठापन न किया (अनुज्ञात). में प्रवेश करे।
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