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पौरुषी का कालमान
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कालविज्ञान
ही वे काल की प्रतिलेखना कर उपाध्याय को ज्ञापित कर उत्तरायणस्स अंते दक्खिणायणस्स य आदीए एक्कं दिणं आचार्य को जगाते । आचार्य एकाग्रचित्त हो स्वाध्याय भवति । अतो परं अट्ठ एकसटिभागा अंगुलस्स दक्खिकरते । वृषभ और गीतार्थ साधु सो जाते। तीसरे प्रहर णायणे वड्ढंति, उत्तरायणे य ह्रस्संति । के अतिक्रांत होने पर तथा चौथे प्रहर के प्रारंभ होने पर
(नन्दीचू पृ ५८) कालप्रतिलेखक वैरात्रिक काल की प्रतिलेखना कर आचार्य पौरुषी के प्रकरण में 'पुरुष' शब्द के दो अर्थ हैंको ज्ञापित करते। आचार्य काल का प्रतिक्रमण कर सो (१) पुरुष-शरीर और (२) शंकु । पुरुष द्वारा उसका जाते और शेष सोए हए सभी साधुओं को जागत कर माप होता है, इसलिए उसे 'पौरुषी' कहा जाता है। दिया जाता। वे सभी वैरात्रिक स्वाध्याय में रत हो (शंकु २४ अंगुल प्रमाण का होता है और पैर से जान जाते।
तक का प्रमाण भी २४ अंगुल होता है।) जिस दिन वस्तु ६. प्रतिलेखना काल
की छाया उसके प्रमाणोपेत होती है, वह दिन उत्तरायण
का अन्तिम दिन व दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है। ""अरुणावासग पुव्वं परोप्परं पाणिपडिलेहा ।।
पौरुषी का छाया प्रमाण दक्षिणायन में प्रतिदिन एते उ अणाएसा अंधारे उग्गएवि हु न दीसे।
हे अंगुल बढता है और उत्तरायण में प्रतिदिन घटता मुहरयनिसिज्जचोले कप्पतिगदुपट्टथुई सूरो॥
(ओनि २६९,२७०) प्रभातकालीन प्रतिलेखना काल के चार अभिमत
पौरुषी का कालमान १. सूर्योदय का समय-प्रभास्फाटन का समय ।
पोरिसीमाणमनिययं दिवसनिसावढिहाणिभावाओ। २. सूर्योदय के पश्चात्-प्रभास्फाटन होने के पश्चात् ।।
हीणं तिन्नि मुहत्तद्धपंचमा माणमुक्कोसं ॥ ३. परस्पर जब मुख दिखाई दे।
वुड्ढी बावीसुत्तरसयभागो पइदिणं मुहत्तस्स । ४. जिस समय हाथ की रेखा दिखाई दे।
एवं हाणी वि मया, अयणदिणभागओ नेया ।। . ये अनादेश माने गए हैं। निर्णायक पक्ष यह है कि
(विभा २०७०,२०७१) मुनि प्रतिक्रमण के पश्चात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र की तीन दिवस अथवा रात्रि का चौथा भाग पौरुषी है। स्तुति करे, फिर मुखवस्त्र, रजोहरण, दो निषद्याएं,
पौरुषी का मान अनियत होता है। दिन-रात की वृद्धिचोलपट्ट, तीन उत्तरीय, संस्तारकपट्ट और उत्तरपट्ट--
हानि के आधार पर इसके कालमान का निश्चय होता इनकी प्रतिलेखना के अनन्तर ही सूर्योदय हो जाए, वह
है। दिवस-पौरुषी का जघन्य मान मकर संक्रान्ति के प्रतिलेखना का काल है।
दिन तीन मुहर्त (छह घटिका) का होता है। रात्रि जेट्टामूले आसाढसावणे छहिं अंगुलेहि पडिलेहा ।
पौरुषी का जघन्य मान कर्क संक्रान्ति के दिन तीन महत
(छह घटिका) का होता है। दिवस-पौरुषी का उत्कृष्ट अट्टहिं बीयतिथंमी तइए दस अट्ठहिं चउत्थे ॥
मान कर्क-संक्रान्ति के दिन साढे चार महत (नौ घटिका) (उ २६।१६)
का होता है। रात्रि पौरुषी का उत्कृष्ट मान मकरज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण -इस प्रथम त्रिक में छह,
__ संक्रान्ति के दिन साढे चार मुहूर्त (नौ घटिका) का होता भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक-इस द्वितीय त्रिक में आठ, मृगशिर, पौष, माघ-इस तृतीय त्रिक में दश और
प्रतिदिन १३ मुहूर्त पौरुषी बढ़ती व घटती है । फाल्गुन, चैत्र, वैशाख-इस चतुर्थ त्रिक में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखना का समय होता है।
और एक अयन में १८३ अहोरात्र होते हैं। इसलिए एक
अयन में १६३५१ =३=१३ मुहूर्त कालमान बढ़ता पौरुषो का अर्थ
है। इस प्रकार तीन मुहूर्त की जघन्य पौरुषी में १३ पुरिसो त्ति संकू पुरिससरीरं वा, ततो पुरिसातो मुहर्त मिलाने पर पौरुषी का उत्कृष्ट कालमान ४३. निप्फण्णा पोरिसी, एवं सव्वस्स वत्थुणो जदा स्वप्रमाणा मुहर्त होता है। च्छाया भवति तदा पोरिसी भवति, एतं पोरिसीप्रमाणं
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