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कायोत्सर्ग
चेट्ठाउस्सग्गो चेद्वातो निष्कण्णो जथा गमनागमणादिसु काउस्सग्गो कीरति । ( आवचू २ २४८) चेष्टा से निष्पन्न कायोत्सर्ग चेष्टा कायोत्सर्ग है । गमन - आगमन, स्वप्न नदी - संतरण आदि-ये चेष्टा कायोत्सर्ग के स्थान हैं ।
अभिभव कायोत्सर्ग
अविपय कम्मं अरिभूयं तेण तज्जयट्ठाए । अभुट्टिया उ तवसंजमंमि कुव्वंति निग्गंथा ॥ ( आवनि १४५६ )
अभिभवो णाम अभिभूतो वा परेणं परं वा अभिभूय कुणति । परेणाभिभूतो, जथा हूणादीहि अभिभूतों सव्वं सरीरादि वो सिरामित्ति काउस्सग्गं करेति । परं वा अभिभूय काउस्सग्गं करेति । जथा तित्थगरो देवमणुयादिणो अणुलोमपडिलोमकारिणो भयादी पंच अभिभूय काउस्सगं कातुं प्रतिज्ञां पूरेति । ( आवचू २ पृ २४८)
अष्टविध कर्मशत्रु को अभिभूत करने के लिए निग्रंथ अभिभव कायोत्सर्ग करते हैं । अभिभव कायोत्सर्ग के दो प्रकार हैं
१. पराभिभूत- हूण, शक आदि आक्रामक लोगों से अभिभूत होकर 'मैं शरीर आदि सबका व्युत्सर्ग करता हूं'- इस संकल्प के साथ कायोत्सर्ग करना । २. पराभिभव - अनुलोम- प्रतिलोम उपसर्ग करने वाले देव, मनुष्य आदि को तथा भय, क्षुधा, अज्ञान, ममत्व और परीषह - इन पांचों को अभिभूत कर कायोत्सर्ग का संकल्प करना ।
४. चेष्टा कायोत्सर्ग : उच्छ्वास और लोगस्सपरिमाण
साय सयं गोसऽद्धं तिन्नेव सया हवंति पक्खमि । पंच य चाउम्मासे अट्टसहस्सं च वारिसए || चत्तारि दो दुवाल वीसं चत्ता य हुंति उज्जोआ । देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे अ वरिसे य ॥ ( आवनि १५३०, १५३१ )
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सायंकालीन कायोत्सर्ग में श्वासोच्छ्वास का परिमाण सौ, प्रातःकालीन में पचास, पाक्षिक में तीन सौ, चातुर्मासिक में पांच सौ और वार्षिक में दैवसिक कायोत्सर्ग - सौ श्वासोच्छ्वास । देवसिक प्रतिक्रमण के चार, रात्रिक के दो,
१००८ है । इस प्रकार पाक्षिक के
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कायोत्सर्ग : उच्छ्वास और '''''
बारह, चातुर्मासिक के बीस और वार्षिक प्रतिक्रमण के चालीस उद्योतकर (लोगस्स) होते हैं ।
गमणागमण विहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे राओ । नावान इसतारे इरियावहिया डिक्कमणं ॥ ( आवनि १५३३ ) गमन, आगमन विहार, शयन, स्वप्नदर्शन तथा नौका आदि से नदीसंतरण करने पर ईर्यापथिकी प्रतिक्रमण में पच्चीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग किया जाता है ।
उद्देससमुद्दे से सत्तावीसं अणुन्नवणियाए । अट्ठेव य ऊसासा पट्ठवणप डिक्कमणभाई ॥
अकाल पढिया एसु दुट्टु अ पडिच्छियाईसु । समणुन्नस मुद्दे से काउस्सग्गस्स करणं तु ॥ ( आवनि १९५३४, १५३५ )
सूत्र के उद्देश और समुद्देश के समय सत्तावीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग तथा अनुज्ञा, प्रस्थापना एवं काल-प्रतिक्रमण में आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना होता है ।
इसी प्रकार अकाल में स्वाध्याय करने, अविनीत को वाचना देने तथा दूसरों को पढ़ाने और अर्थ की वाचना देने में भी कायोत्सर्ग करना होता है ।
पाणवह मुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव । सयमेगं तु अणूणं ऊसासाणं हविज्जाहि ॥
( आवनि १५३८ ) स्वप्न में प्राणिवध, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह का सेवन करने पर पूरे सौ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना होता है ।
मेहुणे दिट्ठीविप्परिया सियाए
सतं, इत्थीए सह ( आवचू २ पृ २६७)
स्वप्न में मैथुन - दृष्टिविपर्यास होने पर सौ उच्छ्वास तथा स्त्री- विपर्यास होने पर एक सौ आठ उच्छ्वास का कायोत्सर्ग किया जाता है।
असयं ।
आयंबिल विसज्जणे विगयविसज्जणे य सत्तावीसं उवस्यदेवयाए य सत्तावीसं कालग्गहणे पट्ठवणे य अणेसणाए पडिक्कमणे अट्ठ उसासा ।
( आवचू २ पृ २६६ )
आयंबिल और निर्विकृति
के पारणे में उपाश्रयदेवता हेतु
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२७ उच्छ्वास का कायोत्सर्ग २७
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