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कषाय
कषाय के उदाहरण
३. जो कष-संसार के उपादान कारण हैं, वे हैं सव्वं देसो व जओ पच्चक्खाणं न जेसिमदएणं । कषाय ।
ते अप्पच्चक्खाणा सव्वनिसेहे मओऽकारो॥ २. कषाय के प्रकार
(विभा १२३२)
अप्रत्याख्यान कषाय के उदय से देश (आंशिक) सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायजं ।"(उ ३३।११)
और सर्व-दोनों प्रकार के प्रत्याख्यान नहीं होते। यहां षोडशविधत्वं चास्य क्रोधमानमायालोभानां चतुर्णा
'अकार' सर्वप्रतिषेध का वाचक है। मपि प्रत्येकमनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरण
तइयकसायाणुदए पच्चक्खाणावरणनामधिज्जाणं । संज्वलनभेदतश्चतुर्विधत्वात्। (उशावृ प ६४३)
देसिक्कदेसविरइं चरित्तलंभं न उ लहंति ।। __ कषाय-मोहनीय कर्म के १६ प्रकार हैं
(आवनि ११०) अनन्तानुबन्धी-(१) क्रोध, (२) मान, (३) माया जो सर्वप्रत्याख्यान को आवृत करते हैं, अंश को और (४) लोभ । अप्रत्याख्यानी-(५) क्रोध, (६) मान, नहीं, वे प्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। (७) माया और (८) लोभ । प्रत्याख्यानो-(९) क्रोध,
मूलगुणाणं लभं न लहइ मूलगुणघाइणं उदए । (१०) मान, (११) माया और (१२) लोभ । संज्वलन
उदए संजलणाणं न लहइ चरणं अहक्खायं ॥ (१३) क्रोध, (१४) मान, (१५) माया और (१६)
(आवनि १११) लोभ ।
मूल गुणों (महाव्रत आदि) का घात करने वाले ३. कषाय से होने वाले अभिघात
प्रत्याख्यानकषायचतुष्क आदि का उदय रहने पर मूल पढमिल्लुयाण उदए नियमा संजोयणा कसायाणं ।
गुणों की प्राप्ति नहीं होती। संज्वलन कषाय का उदय सम्मइंसणलभं भवसिद्धीयावि न लहंति ॥
होने के कारण यथाख्यात चारित्र प्राप्त नहीं होता।
(आवनि १०८) ईसि सयराहं वा संपाए वा परीसहाईणं । अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क के उदयकाल में भव्य
अलणाओ
संजलणा"॥ जीव भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर सकते।
(विभा १२४६)
संज्वलन कषाय का अर्थ है-अल्पदीप्त, शीघ्र दीप्त बिइयकसायाणुदए अपच्चक्खाणनामधेज्जाणं ।
अथवा परीषह आदि के कारण दीप्त कषाय । सम्मइंसणलभ विरयाविरइं न उ लहति ।।
(आवनि १०९) ४. कषाय की स्थिति और उत्पत्तिस्थल अप्रत्याख्यानकषायचतुष्क के उदयकाल में सम्यक् पक्ख-चउम्मास-वच्छर-जावज्जीवाणुगामिणो कमसो। दर्शन प्राप्त होता है, विरताविरति-श्रावकत्व प्राप्त नहीं देव-नर-तिरिय-नारयगइसाहणहेयवो नेया ॥ होता।
(विभा २९९२)
अप्रत्याख्यानावरण
प्रत्याख्यानावरण
स्थिति उत्पत्तिस्थल
अनन्तानुबंधी | अप्रत्याख्यानावरण | यावज्जीवन
संवत्सर नरकगति
तिर्यञ्चगति
चार मास
संज्वलन एक पक्ष
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मनुष्यगति
देवगति
५. कषाय के उदाहरण
जल-रेणु-भूमि-पव्वयराईसरिसो चउव्विहो कोहो । तिणिसलयाकट्रियसेलत्थंभोवमो माणो ।। मायावलेहि-गोमुत्ति-मेंढसिंग-घणवंसिमूलसमा । लोहो हरिद्द-खंजण-कद्दम-किमिरागसामाणो ।
(विभा २९९०,२९९१)
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