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कथा
६. मिश्रकथा
७. कथा के अन्य प्रकार - कथा, अकथा, विकथा
• विकथा के प्रकार
* धर्मकथा : स्वाध्याय का एक भेव
* धर्मकथा के परिणाम
* स्त्रीकथा से ब्रह्मचर्य की हानि
१. कथा को परिभाषा
तवसंजमगुणधारी जं चरणरया सव्वजगज्जीवहियं सा उ कहा
कहेंति सम्भावं । देसिया समए ॥ ( दनि १०९ )
कथा वह है, जिसमें सद्भाव / यथार्थता का निरूपण हो और जो सब जीवों का हित करने वाली हो । २. कथा के प्रकार
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(व्र. स्वाध्याय)
( द्र. स्वाध्याय)
(व्र. ब्रह्मचर्यं)
अत्थकहा कामकहा धम्मकहा चेव मीसिया य कहा । एत्तो एक्केक्का वि य णेगविहा होइ नायव्वा ॥ (दनि ९२ )
कथा के चार प्रकार हैं - अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा । इनमें से प्रत्येक कथा के अनेक प्रकार हैं ।
३. अर्थकथा के अंग
विज्जा सिप्पमुवाओ अणिवेओ संचओ य दक्खत्तं । सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं
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च अत्थकहा || (दनि ९३ ) संचय, दक्षता, साम, उपार्जन के हेतु हैं ।
विद्या, शिल्प, उपाय, अनिर्वेद दंड, भेद और उपप्रदान- ये अर्थ इनकी कथा करना अर्थकथा है ।
४. कामकथा के अंग
रूवं वतो व वेसो दक्खिण्णं सिक्खियं च विसएसुं । दिट्ठ सुयमणुभूयं च संथवो चैव कामकहा ॥ (दनि ९५ ) रूप, वय, वेश, दक्षता, विषयकला का शिक्षण, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत तथा परिचय — ये कामकथा के अंग
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५. धर्मकथा
धम्मका बोधव्वा चउव्विहा धीरपुरिसपण्णत्ता अक्खेवण faraafr संवेगे चेव निव्वेए ॥
(दनि ९६ ) जाए सोता रंजिज्जति सा अक्खेवणी । विविहं विष्णाण - विसयादीहि खिवति विक्खेवणी । संवेगं संसारदुक्खेहितो जणेति संवेदणी । भोगेहिंतो निव्वेदणी ।
( अचू पृ ५५ )
धर्मकथा के चार प्रकार हैं
१. आक्षेपणी
आक्षेपणी कथा
आक्षेपणी कथा
२. विक्षेपणी - सन्मार्ग की स्थापना करने वाली कथा । ३. संवेजनी -- सांसारिक दुःखों का प्रतिपादन कर वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा |
४. निर्वेदनी - भोगों के प्रति उदासीन बनाने वाली
कथा ।
ज्ञान - चारित्र आदि में आकर्षण उत्पन्न करने वाली कथा |
ज्ञान, चारित्र, तप, वीर्य, विषयों से सम्बन्धित प्रज्ञापन और यही आक्षेपण कथा का रस आक्षिप्यन्ते मोहात् तत्त्वं इत्याक्षेपणी ।
विज्जा चरणं च ततो पुरिसक्कारो य समितिगुत्तीओ । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइ रसो ॥ ( दनि ९७ ) समिति और गुप्ति- -इन करना आक्षेपणी कथा है - सार है । प्रत्यनया भव्यप्राणिन
( दहावृप ११० )
भव्य जीवों को मोह से दूर कर तत्त्व के प्रति आकृष्ट करने वाली कथा आक्षेपणी कथा है ।
अक्खेवणी चतुव्विहा, तं जहा - आयारक्खेवणी, हारखेवणी, पण्णत्तअक्खेवणी, दिट्ठिवाय अक्खेवणी । १. साधुणो अट्ठारससीलंगसहस्सधारका बारस विहतवोकम्मरता दुक्करकारक त्ति आयारक्खेवणी । २. अक्खित्तम सोतारेसु एवं परूविज्जति दुरणुचरतवोजुत्ता वि साधुणो जदि किंचि अतिचरंति तो जहा अव्यवहारिस्स लोए डंडो कीरति तहा पायच्छित्तं ति ववहारक्खेवणी ।
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३. संदेहसमुग्धाते णिव्वेदकर - मधुर - सउवायपण्णत्तिगतोदाहरणेहिं पत्तियावणं पण्णत्तिअक्खेवणी |
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