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निषेध के हेतु
दायक ८. कोढी
पन्द्रह प्रकार के व्यक्तियों के हाथ से भिक्षा लेने का - ९. खड़ाऊ पहने हुए
निषेध है। १०. हथकड़ी पहने हुए
निषेध के हेतु ११. बेड़ियों से बद्ध
कब्बढिग अप्पाहण दिन्ने अन्नन्न गहण पज्जत्तं । १२. हाथ-पैर कटे हुए
खंतिय मग्गणदिन्ने उड्डाह पओस चारभडा ।। १३. नपुंसक
थेरो गलंतलालो कंपणहत्थो पडिज्ज वा देंतो । १४. गर्भवती स्त्री
अपहुत्ति य अचियत्तं एगयरे वा उभयओ वा ॥ १५. स्तनपान कराती हुई स्त्री
अवयास भाणमेओ वमणं असुइत्ति लोग गरिहा य । १६ भोजन करती हुई स्त्री
एए चेव उ मत्ते वमणविवज्जा य उम्मत्ते ।। १७. दधिमन्थन करती हुई स्त्री
वेविय परिसाडणया पासे व छभेज्ज भाणभेओ वा । १८. चने भुनती हुई स्त्री
एमेव य जरियंमिवि जरसंकमणं च उड्डाहो।। १९. गेहूं आदि पीसती हुई स्त्री
उड्डाह कायपडणं अंधे भेओ य पास छहणं च । २०. ऊखल में चावल आदि कूटती हुई स्त्री तद्दोसी संकमणं गलंतभिसभिन्नदेहे य । २१. शिला पर तिल आदि पीसती हुई स्त्री पाउयदुरूढपडणं बद्ध परियाव असुइखिसा य । २२. रूई धुनती हुई स्त्री
करछिन्नासुइ खिसा ते च्चिय पायेऽवि पडणं च ।। २३. कपास लोठती हुई (बीनती हुई)
आयपरोभयदोसा अभिक्खगहणं मि खोभण नपुंसे । २४. सब्जी काटती हुई
लोगदुगुंछा संका एरिसया नूणमेएऽवि ॥ २५ चरखा चलाती हुई
गुम्विणि गब्भे संघट्टणा उ उठेंतुवेसमाणीए ।
बालाई मंसुंडग मज्जाराई विराहेज्जा ।। २६. हाथ में सचित्त जल, वनस्पति आदि हों
भुंजती आयमणे उदगं छोटी य लोगगरिहा य । २७. सचित्त लवण आदि को नीचे रखती हई
घुसुलंती संतत्ते करंमि लित्ते भवे रसगा । २८. छह काय को पैरों से चालित करती हुई
दगबीए संघट्टण पीसणकंडदल भज्जणे उहणं । २९. छहकाय का शरीर से स्पर्श करती हुई
पिंजंत रुचणाई दिन्ने लित्ते करे उदगं ।। ३०. छहकाय की हिंसा करती हई
लोणं दग अगणि वत्थी फलाइ, मच्छाइ सजिय हत्थंमि । ३१. दही आदि से लिप्त हाथ
पाएणोगाहणया संघट्टण सेसकाएणं ॥ ३२. दही आदि से लिप्त पात्र
खणमाणी आरभए मज्जइ धोयइ व सिंचए किंचि । ३३. बड़े पात्र से निकाल कर देती हुई
छेयविसारणमाई छिदइ छठे फुरुफुरुते ॥ ३४. दूसरों की वस्तु दे
संसज्जिमम्मि देसे संसज्जिमदव्वलित्तकरमत्ता ।
संचारो ओयत्तण उक्खिप्पतेऽवि ते चेव ॥ ३५. चोरी की वस्तु दे
साधारणं बहूणं तत्थ उ दोसा जहेव अणिसिट्ठे । ३६. अग्रकवल निकालती हुई
चारियए गहणाई भयए सुण्हाइ वा दंते ।। ३७. गिरने आदि की सम्भावना हो
पाहुडि ठवियगदोसा तिरिउड् ढमहे तिहा अवायाओ। ३८. अन्य साधु के लिए स्थापित कर देती हई
धम्मियमाई ठवियं परस्स परसंतियं वावि ।। ३९. जान-बूझकर अशुद्ध देती हुई
अणुकंपा पडिणीयट्ठया व ते कुणइ जाणमाणोऽवि । ४०. अनजान में अशुद्ध देती हुई।
एसणदोसे बिइओ कुणइ उ असढो अयाणतो।। इनमें से बाल आदि पच्चीस तक की संख्या वाले
(पिनि ५७९-५९०, ५९३-५९६) व्यक्तियों के हाथ से भिक्षाग्रहण की भजना है-विशेष यदि मुनि छोटे बच्चे से (जो घर में अकेला है) प्रयोजन होने पर इनसे भिक्षा ली जा सकती है। शेष भिक्षा लेता है तो प्रद्वेष और जनापवाद हो सकता है कि
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