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एषणासमिति
पुरेकम्मेण हत्थे, दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥
(द ५।१1३२ )
पुराकर्म कृत हाथ, कड़छी और बर्तन से भिक्षा देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे - इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता ।
संसट्ठेयर हत्थो मत्तो विय दव्व सावसेसियरं । एएस अट्ठ भंगा नियमा गहणं तु ओएसु ॥ (पिनि ६२६ ) द्वितीयादिषु भंगेषु द्रव्ये निरवशेषे पश्चात्कर्मसम्भवान्न कल्पते, प्रथमादिषु तु पश्चात्कर्मासम्भवात्कल्पते । (पिनिवृप १६९ ) असंसृष्ट और संसृष्ट के आठ विकल्प होते हैं-१. संसृष्ट हस्त संसृष्ट मात्र ( पात्र ) सावशेषद्रव्य । २. संसृष्ट हस्त संसृष्ट मात्र निरवशेषद्रव्य । ३. संसृष्ट हस्त असंसृष्ट मात्र सावशेषद्रव्य । ४. संसृष्ट हस्त असंसृष्ट मात्र निरवशेषद्रव्य । ५. असंसृष्ट हस्त संसृष्ट मात्र सावशेषद्रव्य । ६. असंसृष्ट हस्त संसृष्ट मात्र निरवशेषद्रव्य । ७. असंसृष्ट हस्त असंसृष्ट मात्र सावशेषद्रव्य । ८. असंसृष्ट हस्त असंसृष्ट मात्र निरवशेषद्रव्य ।
इनमें दूसरे, चीथे, छठे और आठवें विकल्प में पश्चात् कर्म की संभावना होने के कारण उन रूपों में भिक्षा लेने का निषेध और शेष रूपों में उसका विधान है ।
३. मिक्षिप्त
असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा । उदगम होज्ज निक्खित्तं, उत्तिगपणगेसु वा ॥ ..... उम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए ॥ तं भवे भत्तपाणं तू संजयाण अकप्पियं । ....
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(द ५३१।५९,६१,६२)
यदि अशन, पानक, खाद्य और स्वाद्य पानी, उत्तिंग और पनक पर निक्षिप्त ( रखा हुआ ) हो, अग्नि पर निक्षिप्त हो और अग्नि का स्पर्श कर दे तो वह भक्तपान संयती के लिए अकल्पनीय होता है ।
४.
पिहित
सच्चित्ते अच्चित्ते मीसग पिहियंमि होइ चउभंगो । आइतिगे पडिसेहो चरिमे भंगंमि भयणा उ ॥
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संहृत
गुरु गुरुणा गुरु लहुणा लहुयं गुरुएण दोऽवि लहुयाई । अच्चित्ते वि पिहिए चउभंगो दोसु अग्गेज्भं ॥ (पिनि ५५८, ५६२) सचित्त, अचित्त, मिश्र - इन तीन पदों के आधार पर पिहित वस्तु की तीन चतुभंगियां बनती हैं । प्रथम चतुर्भंगी -
१. सचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु २. मिश्र से पिहित सचित्त देय वस्तु ३. सचित्त से पिहित मिश्र देय वस्तु ४. मिश्र से पिहित मिश्र देय वस्तु ये चारों विकल्प अकल्पनीय (अग्राह्य) हैं । द्वितीय चतुभंगी
१. सचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु २. अचित्त से पिहित सचित्त देय वस्तु ३. सचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु
४. अचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु
इनमें प्रथम तीन विकल्प अकल्पनीय हैं । चतुर्थ विकल्प में भजना है।
तृतीय चतुभंगी -
१. मिश्र से पिहित मिश्र देय वस्तु
२. मिश्र से पिहित अचित्त देय वस्तु ३. अचित्त से पिहित मिश्र देय वस्तु ४. अचित्त से पिहित अचित्त देय वस्तु इनमें प्रथम तीन विकल्प अकल्पनीय । चतुर्थ विकल्प में भजना है। इस चतुर्थ विकल्प की चतुभंगी बनती है
१. भारी वस्तु से पिहित भारी देय वस्तु २. हल्की वस्तु से पिहित भारी देय वस्तु ३ भारी वस्तु से पिहित हल्की देय वस्तु
४. हल्की वस्तु से पिहित हल्की देय वस्तु
इनमें प्रथम और तृतीय भंग अग्राह्य है, द्वितीय और चतुर्थ भंग ग्राह्य है ।
५. संहृत
मत्तेण जेण दाहि तत्थ अदिज्जं तु होज्ज असणाई । छोढु तयन्नहि तेणं देई अह होइ साहरणं ॥ (पिनि ५६५ )
जिस पात्र से भिक्षा दी जा रही हो, उसमें यदि
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