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इन्द्रिय
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उपयोग इन्द्रिय
निवत्ति इन्द्रिय
निवृत्ति और उपकरण में अन्तर निवत्तिर्नाम प्रतिविशिष्ट: संस्थानविशेषः । सापि
उपकरणं-खड्गस्थानीयाया बाह्यनिवृत्तेर्या खड्गद्विधा-बाह्या अभ्यन्तरा च । तत्र बाह्या कर्णपर्पटकादि- धारासमाना स्वच्छतरपुद्गलसमूहात्मिका अभ्यन्तरा रूपा। सापि विचित्रा-न प्रतिनियतरूपतयोपदेष्टुं
निवत्ति:-तस्याः शक्तिविशेषः । इदं चोपकरणरूपं शक्यते । तथाहि -मनुष्यस्य श्रोत्रे भ्रूसमे नेत्रयोरुभय
द्रव्येन्द्रियमान्तरनिर्वत्तेः कथञ्चिदर्थान्तरं, शक्तिशक्तिपार्श्वतः संस्थिते । बाजिनोः मस्तके नेत्रयोरुपरिष्टाद- मतोः कथञ्चिद्भेदात् । कथञ्चिभेदश्च सत्यामपि भाविनी तीक्ष्णे चाग्रभागे इत्यादिजातिभेदान्नानाविधाः ।। तस्यामान्तरनिर्वृत्तौ द्रव्यादिनोपकरणस्य विघातसम्भवात् । आभ्यन्तरा तु निर्वृत्तिः सर्वेषामपि जन्तूनां समाना । तथाहि-सत्यामपि कदम्बपुष्पाद्याकृतिरूपायामान्तरस्पर्शनेन्द्रियनिर्वृत्तेः प्रायो न बाह्याभ्यन्तरभेदः । निवृत्तावतिकठोरतरघनजितादिना शक्त्युपघाते सति न
(नन्दीमवृ प ७५) परिच्छेत्तुमीशते जन्तवः शब्दादिकमिति। पुप्फ कलंबुयाए धन्नमसूराइमुत्तचंदो य ।।
(नन्दीमवृ प ७५) होइ खरप्पो नाणागिई य सोइंदियाईणं ॥
तलवार के समान है बाह्य निर्वत्ति । तलवार की (विभा २९९५)
धार के समान है आभ्यन्तर निर्वत्ति । वह स्वच्छतर निवत्ति का अर्थ है इन्द्रिय का अपना संस्थान
पुद्गलसमूह से निष्पन्न है। आभ्यन्तर निर्वृत्ति की शक्ति आकार रचना । उसके दो प्रकार हैं बाह्य और
विशेष का नाम है उपकरण । शक्ति और शक्तिमान् किसी
अपेक्षा से भिन्न हैं। अत: आभ्यन्तर निर्वत्ति और आभ्यन्तर । कर्ण विवर आदि का बाह्य आकार भिन्नभिन्न होता है, वह प्रतिनियत नहीं है। जैसे मनुष्य के
उपकरण भी किसी दृष्टि से भिन्न हैं। इसलिए आभ्यन्तर कान भौंहों की समरेखा में नेत्रय गल के दोनों पावों में
निवत्ति होने पर किसी द्रव्य आदि से उपकरण इन्द्रिय संस्थित हैं । घोड़े के कान आंखों से ऊपर मस्तक पर
का विघात भी हो सकता है। जैसे-कदम्ब पुष्प के होते हैं। उनका अग्रभाग तीक्ष्ण होता है। इस प्रकार
समान आकार वाली श्रोत्र की आभ्यन्तर निर्वत्ति भिन्न-भिन्न जातियों में इन्द्रियों की बाह्य आकृति
विद्यमान है, पर भयंकर गर्जारव आदि से उपकरण शक्ति भिन्न-भिन्न होती है। आभ्यन्तर निवृत्ति-भीतरी का उपघात हो जाने पर प्राणी शब्द का परिच्छेद आकार रचना सब जीवों की समान होती है। स्पर्शन नहीं कर सकता। इन्द्रिय की नित्ति में बाह्य-आभ्यन्तर का भेद नहीं है। ५. भावेन्द्रिय के प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय का आभ्यंतर आकार कदम्ब पुष्प के समान, लवओगा भाविदियं....। (विभा २९९७) चक्षरिन्द्रिय का मसूर धान्य के समान, घ्राणेन्द्रिय का
भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं-लब्धि और उपयोग । अतिमुक्तक पुष्पचन्द्रिका के समान, रसनेन्द्रिय का क्षुरप्र
लब्धि इन्द्रिय के समान होता है। स्पर्शनेन्द्रिय का आभ्यंतर आकार नाना प्रकार का होता है।
..'लद्धित्ति जो खओवसमो।
होइ तदावरणाणं तल्लाभे चेव सेसंपि ॥ उपकरण इन्द्रिय
(विभा २९९७) विसयग्गहणसमत्थं उवगरणं इंदियंतरं तंपि ।
लब्धिः श्रोत्रेन्द्रियादिविषयः सर्वात्मप्रदेशानां तदाजं नेह तदुवघाए गिण्हइ निव्वत्तिभावे वि ॥ वरणक्षयोपशमः।
(नन्दीमवृ प ७५) (विभा २९९६) सब आत्मप्रदेशों में इन्द्रियों के आवारक कर्म (इन्द्रियजो विषय ग्रहण करने में समर्थ पौद्गलिक शक्ति ज्ञानावरण) का जो क्षयोपशम है, वह लब्धि-इन्द्रिय है । है, वह उपकरण इन्द्रिय है। निर्वृत्ति इन्द्रिय के होने उपयोग इन्द्रिय पर भी यदि उपकरण इन्द्रिय का उपघात हो जाता है तो जो सविसयवावारो सो उवओगो. ॥ विषय का ग्रहण नहीं हो सकता।
(विभा २९९८)
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