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आहार
आहार : सात आलोक
८. आश्रव : भवभ्रमण का हेतु
१६. सम्भोज-प्रत्याख्यान के परिणाम .."अज्झत्थहेउं निययस्स बन्धो ।
१७. मुनि का आहार संसारहेउं च वयंति बन्धं । (उ १४।१९) १८. आहारलुब्ध व्यक्ति को वृत्ति आत्मानं प्रति यद् वर्तते तदध्यात्म। तच्च राग
* अतिमात्र और प्रणीत आहार : ब्रह्मचर्य का विघ्न द्वेषमोहमिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः ।
(द्र. ब्रह्मचर्य) * आहारग्रहण-विधि (उचू पृ २२६) |
(द्र. गोचरचर्या) * आहार-प्राप्ति के दोष
(द्र. एषणा) राग-द्वेष, मोह, मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय
* आचार्य के प्रायोग्य आहार
(द. आचार्य) और योग---ये आत्मा के आन्तरिक दोष ही उसके बंधन
* अल्प आहार
(द्र. ऊनोदरी) के हेतु हैं और बन्धन ही संसार का हेतु है। आश्रव भावना--कर्मों के आकर्षण के हेतभत १. आहार के प्रकार साधनों का अनुचिन्तन करना।
असणं पाणगं चेव, खाइमं साइमं तहा ।
एसो आहारविही, चउविहो होइ नायव्यो ।। __ (द्र. अनुप्रेक्षा)
आसुं खुह समेई, असणं पाणावग्गहे पाणं । आहार भोजन । भूख-प्यास को शांत करने खे माइ खाइमं ति य, साएइ गुणे तओ साई ।। वाले, शरीर को पोषण देने वाले पदार्थों
(आवनि १५८७,१५८८) का ग्रहण । यहां मुनि से संबद्ध आहार के असिज्जइ खुहितेहिं जं तमसणं जहा कूरो एवमाविधि-निषेध का आकलन है।
दीति । पिज्जतीति पाणं, जहा मुद्दियापाणगं एवमाइ।
खज्जतीति खादिमं, जहा मोदओ एवमादि । सादिज्जति । १. आहार के प्रकार
सादिमं, जहा सुंठिगुलादी। (दजिचू पृ १५२) २. आहार : सात आलोक
आहार के चार प्रकार हैं - ३. आहार से पूर्व आलोचना
१. अशन ... जो क्षुधा का शीघ्र शमन करता है, भूखे ० कायोत्सर्ग
व्यक्ति द्वारा जिसे खाया जाता है, उसे अशन कहते ० स्वाध्याय
हैं। जैसे ओदन आदि। ० सामिकों को निमन्त्रण
२. पान ---जो प्राणों का उपग्रह करता है, जिसे पीया • आहार का स्थान
जाता है, उसे पान कहते हैं। जैसे-द्राक्षा का ४. आहार करने की विधि
पानक आदि। ५. आहार और भावना
३. खाद्य-जो मुखविवर में समा जाता है, जिसे ६. आहार-विवेक
खाया जाता है, उसे खादिम या खाद्य कहते हैं। ७. आहार-परिमाण
जैसे-मोदक, खजूर आदि । ८. अपेय वर्जन
४. स्वाद्य-जिसका स्वाद लिया जाये, जो मुखवास ९. परिष्ठापनीय आहार और परिष्ठापन विधि
के रूप में काम आए, उसे स्वादिम अथवा स्वाद्य १०. सात्विक आहार का फल
कहते हैं । जैसे –ताम्बूल, सोंठ आदि । ११. आहार करने के हेतु
२. आहार : सात आलोक १२. आहार न करने के हेतु
ठाणदिसिपगासणया भायणपक्खेवणे य गुरुभावे । १३. आहार: मांडलिक दोष
सत्तविहो आलोको सयावि जयणा सुविहियाणं ॥ १४. संभोजी और असंभोजी मुनि
(ओनि ५५०) १५. मंडली आहार का प्रयोजन
आहार करते समय सात तथ्य विशेष ध्यान देने
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