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पुरोवाक्
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व्याख्या साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन करने पर मीमांसा का क्षेत्र बहुत व्यापक बन सकता है। जयाचार्य ने आगम और नियुक्ति का तुलनात्मक अध्ययन कर दोनों के अन्तर का निर्देश दिया था। वह मीमांसा की दष्टि से एक उदाहरण के रूप में यहां प्रस्तुत है--
आगम और आवश्यक नियुक्ति में तथ्यगत अंतर---- सिद्ध की उत्कृष्ट पूर्व अवगाहना
५०० धनुष
ओवाइयं १८७ ५२५ धनुष
आवनि १५३,१५७,१६३ सनत्कुमार चक्रवर्ती की गति
मोक्ष
ठाणं ४।१ तृतीय कल्पविमान
आवनि ४२४ अर्हतमल्लि की दीक्षा और
पौष शुक्ला ११
नायाधम्मकहाओ ८।२२२,२२५ कैवल्य-प्राप्ति
मृगशिर शुक्ला ११
आवनि २६२ अर्हत अजित के गणधर
समवाओ ९०२
आवनि २८८ अर्हत् पार्श्व के गणधर
समवाओ ८८
आवनि २६८ (प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, थिरावली अधिकार २०१३६-५१ के आधार पर) प्रस्तुत कोश में द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग और धर्म कथानुयोग-इन चारों का समावेश है। तीन अनुयोग का संग्रह मूल में है । धर्मकथा का संकेत-संग्रह परिशिष्ट में है।
वि० सं० २०१२ औरंगाबाद में महावीर जयन्ती के अवसर पर 'आगम-सम्पादन' की घोषणा की गई । सम्पादन के विविध पक्षों पर विचार चल रहा था। उस समय आगम विषय कोश की भी कल्पना की गई। यात्रा और अन्य प्रवृत्तियों के कारण यह कार्य अवरुद्ध रहा। इस अवधि में आगम शब्द कोश, एकार्थक कोश, निरुक्त कोश और देशी शब्द कोश निर्मित हुए । जैन आगम साहित्य पर इस प्रकार के कोश प्रथम बार ही सामने आये। सन् १९९० से आगम विषय कोश का कार्य प्रारम्भ हुआ।
यह कोश जैन दर्शन के गंभीर चितन, अतीन्द्रिय दृष्टि और सूक्ष्म सत्यों की खोज का प्रतिनिधि ग्रन्थ बन गया है। इसका निर्माणकाल प्रारम्भ में जितनी कठिनाइयों में रहा, उतना ही निष्पत्तिकाल सुखद अनुभूतियों से भरा हआ है। इस कार्य में साध्वी विमलप्रज्ञा व साध्वी सिद्धप्रज्ञा ने श्रमपूर्ण साधना की है। मुनि दुलहराजजी उस साधना की सफलता के आरोहण में स्वयंभू सफल बने हैं। डॉ० सत्यरंजन बनर्जी भी समय-समय पर इसका निरीक्षण और परीक्षण करते रहे हैं समणी उज्ज्वलप्रज्ञा का प्रतिलिपि, परिशिष्ट आदि में पर्याप्त सहयोग रहा। साध्वी संचितयशा की प्रतिलिपि और यंत्रों के निर्माण में सहभागिता रही।
यह 'श्रीभिक्ष आगम विषय कोश' कोश का प्रथम चरण है, प्रतीक्षा है अग्रिम चरणों की। वह दिन बहत उल्लासपूर्ण होगा जिस दिन कोश का समग्र रूप पाठक वर्ग के सामने प्रस्तुत होगा। तेरापंथ धर्मसंघ में यह एक नया उच्छवास है कि साध्वियां इस प्रकार के गंभीर ग्रन्थों का संग्रहण और सम्पादन कर रही हैं।
जैन विश्व भारती
लाडन १ सितम्बर १९९६
गणाधिपति तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ
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