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________________ पुरोवाक् प्रस्तुत कोश में जीव विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत मूल्यवान् सामग्री उपलब्ध है। जीव का व्यक्त लक्षण इन्द्रिय चेतना । इन्द्रिय चेतना के विकास के आधार पर जीवों के पांच वर्ग किए गए हैं - ( १ ) एकेन्द्रिय (२) दीन्द्रिय (३) त्रीन्द्रिय (४) चतुरिन्द्रिय और (५) पंचेन्द्रिय जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय का दो दृष्टियों से प्रतिपादन किया है इन्द्रिय रचना और लब्धि की दृष्टि से जीवो के पांच वर्ग बनते हैं । उपयोग इन्द्रिय की अपेक्षा सब जीव एकेन्द्रिय हैं क्योंकि एक समय में एक ही इन्द्रिय का उपयोग होता है । एकेन्द्रिय में पांचों इन्द्रियों का स्वीकार जीव विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। जिनभद्रगणी क्षमा श्रमण के अनुसार बकुल, चम्पक, तिलक, विरहक आदि वृक्षों में स्पर्श के अतिरिक्त शेष इन्द्रियां भी प्रतीत होती हैं, क्योंकि उनमें इन्द्रिय ज्ञानावरण का क्षयोपशम संभव है । सब विषयों को ग्रहण करने के कारण बकुल मनुष्य की तरह पंचेन्द्रिय है, फिर भी बाह्य इन्द्रियों का अभाव होने से उसे पंचेन्द्रिय नहीं कहा जा सकता । एकेन्द्रिय जीवों में श्रोत्र आदि द्रव्येन्द्रिय के अभाव में भी भावेन्द्रिय का ज्ञान कुछ अंशों में देखा जाता है। वनस्पति में इसके स्पष्ट चिह्न प्राप्त होते हैं, जैसेश्रोत्रेन्द्रिय-सुन्दर कंठ एवं पंचम स्वर में उद्गीत गीत श्रवण से 'बिरहक वृक्ष' पर पुष्प उग आते हैं। इससे उसमें धोत्रेन्द्रिय ज्ञान का स्पष्ट चिह्न परिलक्षित होता है । चक्षुरिन्द्रिय सुन्दर स्त्री की आंखों के कटाक्ष से 'तिलक वृक्ष' पर फूल खिल जाते हैं। इससे उसमें चक्षुरिन्द्रिय ज्ञान का स्पष्ट चिह्न परिभासित होता है। घ्राणेन्द्रिय - विविध सुगन्धित पदार्थों से मिश्रित निर्मल शीतल जल के सिंचन से 'चम्पक वृक्ष' पर फूल प्रगट हो जाते हैं । इससे उसमें घ्राणेन्द्रिय ज्ञान का स्पष्ट चिह्न दिखाई देता है । रसनेन्द्रिय – अतिशय रूप वाली तरुण स्त्री के मुख से प्रदत्त स्वच्छ स्वादु शराब के कुल्ले का आस्वादन करने से बकुल वृक्ष पर फूल निकल आते हैं। इससे उसमें रसनेन्द्रिय ज्ञान का स्पष्ट चिह्न देखा जाता है ।' भाषा का विषय आगम साहित्य और व्याख्या साहित्य में बहुत विस्तार से चर्चित है। दशवेकालिक नियुक्ति और अगस्त्य चूर्णि में भाषायोग्य द्रव्य, भाषा रूप में परिणामित और जल्प्यमान का अन्तर बहुत स्पष्ट किया गया है--- भाषा के योग्य द्रव्य द्रव्यवाक्य हैं। भाषा रूप में परिणत, बोले जाते हुए भाषा के द्रव्य, जो भावों को प्रकट करते हैं, वे भाववाक्य हैं जैसे वेदना की अनुभूति स्वयं को और पर को होती है वैसे ही जिस वचनप्रणिधान से व्यक्ति स्वयं अर्थ का अवधारण करता है, फिर दूसरे को अर्थबोध कराता है, वह भावभाषा है । द्रव्यभाषा के तीन प्रकार हैं १. ग्रहण - - वचनयोग में परिणत आत्मा के द्वारा ग्रहणकाल में भाषाद्रव्य का उपादान / ग्रहण | २. निस्सरण उर, कंठ, सिर, जिह्वामूल, तालु, नासिका, दांत और ओष्ठ पर यथास्थान सम्मूच्छित भाषाद्रव्यों का विसर्जन । ३. परापात निःसृष्ट द्रव्यों के द्वारा विघट्टित भाषाद्रव्यों की भाषा-परिणति । प्रस्तुत कोश विश्वकोश की परिकल्पना से निर्मित नहीं है। फिर भी विषय की विविधता और विस्तार की दृष्टि से यह विश्वकोश जैसा बन गया है। यह सामग्रीमात्र का संग्रह है। इस पर अनेक कोणों से मीमांसा की जा सकती है। मीमांसा की दृष्टि से यह कोश विशाल आकार ले सकता है आगम, कर्मग्रन्थ, निर्मुक्ति और १५ -- १. प्रस्तुत कोश, पृ. १४७ २. वही, पृ. ४८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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